चैरासी लाख योनियों में मनुष्य योनी सर्वश्रेष्ठ योनी- संत निरंकारी

चैरासी लाख योनियों में मनुष्य योनी सर्वश्रेष्ठ योनी है और इस मनुष्य योनी में पूर्ण साधु की संगत से ही ईश्वर की प्राप्ति होती है। उक्त उद्गार संत निरंकारी सत्संग भवन, रेस्ट कैम्प, देहरादून के तत्वावधान में आयोजित रविवारीय सत्संग कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुये राजीव बिजल्वाण (ज्ञान प्रचारक) ने सद्गुरु माता सविन्दर हरदेव जी महाराज का पावन सन्देश देते हुए व्यक्त किये। उन्होंने मनुष्य जीवन का उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुये कहा कि निरकार ईश्वर ने मनुष्य को दिमाग (सोच) दी है यह सोच किसी और अन्य योनी (पशु-पक्षी या जीव) को नही दी है। इसलिए मनुष्य योनी ही एक ऐसी योनी है जो सच-झूठ, भले-बुरे की पहचान कर सकती है। मनुष्य ही इस अनुमोलक जीवन के उद्देश्य की प्राप्ति कर सकता है।
  इसलिए मनुष्य जीवन का कल्याण सिर्फ और सिर्फ मनुष्य योनी में ही सम्भव है। जैसे कहा भी गया है कि -भई परापति मानुख देहुरीआ, गोबिंद मिलन की इह तेरी बरीआ।अवरि काज तेरै कितै न काम, मिलु साध संगति भजु केवल नाम।अर्थात् ईश्वर की प्राप्ति मनुष्य योनी के हिस्से में ही आई है ‘बाणी’ में आया है कि मनुष्य तन सबसे उत्तम तन है। बाकी सभी योनियां, भोग योनी भोग रहे हैं। इंसान को कर्म करने का अधिकार मिला है। इंसान चाहे तो अपना जीवन संवार सकता है। क्योंकि निरकार ईश्वर एक परम शक्ति है और इस एक शक्ति के अनेक नाम हैं। लोग मात्र नाम के जपने को ही ईश्वर प्राप्ति समझ बैठे हैं। केवल नाम से ही काम नही चलने वाला। क्योंकि परमात्मा हमारे अंग-संग है इससे साक्षात्कार करना जरूरी है। यानी वस्तु और नामी की प्राप्ति केवल सद्गुरू की कृपा से ही प्राप्त होती है। सत्संग समापन से पूर्व अनेकों भक्तों ने विभिन्न भाषाओं का सहारा लेकर गीत, भजन और विचारों द्वारा सत्गुरु का गुण ज्ञान किया। मंच संचालक  सचिन पवांर ने किया

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