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Showing posts from September 8, 2018

उत्तराखंड में खाली होते चीन के सीमांत गांव

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देहरादून– उत्तराखंड में खाली होते सीमांत के गांव पलायन का ऐसा दंश लगा इस प्रदेश को  कि अब  सरकार पलायन की समस्या से निजात पाने के लिए कसरत कर रही है,मगर खाली होते गांव  अपनी व्यथा  स्वयं ही  व्यक्त कर रहे हैं, अब हिमालय जड़ी-बूटियों को  बेचकर वहां के युवा रोजगार प्राप्त कर रहे थे,  हरे-भरे बुग्यालों में कैंपिंग करा कर युवकों को रोजगार मिल रहा था, पानी से राफ्टिंग करवाकर रोजगार मिल रहा था,  लेकिन यह सब एनजीटी ने बंद करवा कर तो युवा  को पलायन की ओर बढ़ावा दिया है,वही  कह रहे हैं कि हिमालय का महत्व उसके आस-पास के देशों के लिये ही नहीं बल्कि यह विश्व स्तर की जलवायु को प्रभावित करता है। हिमालय ही वह एक वजह है जिसके कारण भारत, नेपाल और पाकिस्तान और बांग्लादेश को प्रचुर मात्रा में जल प्राप्त होता है। भारत को औषधीय पौधों, चूना पत्थर, हिमालय नमक, फलों की खेती और अन्य वन संसाधनों से आर्थिक सहायता प्राप्त होती है। अगर हम हिमालय के संसाधनों का सही तरीके से इस्तेमाल करे तो पलायन की समस्या से पूरी तरह से निजात पा सकते हैं, हिमालय केवल पलायन की समस्या का समाधान नहीं करता बल्कि जीवन की समस्याओं से

हिमालयी संसाधनों से पलायन की समस्या होगी दूर

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ऋषिकेश–हिमालय संरक्षण के प्रति जनसमुदाय को जागरुक करने तथा विश्व स्तर के पर्यावरणविद्, वैज्ञानिक एवं प्रकृति प्रेमियों को एक साथ लाकर मिलकर हिमालय एवं अन्य प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित करने हेतु हिमालय दिवस के अवसर पर परमार्थ निकेतन में ऐतिहासिक हिमालय चिंतन वार्ता का आयोजन किया जा रहा है इस परिपेक्ष्य में आज परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती, डाॅ अनिल जोशी, जीवा की अन्तर्राष्ट्रीय महासचिव साध्वी भगवती सरस्वती ने पत्रकार बन्धुओं को सम्बोधित किया।हिमालय दिवस की शुरुआत 2010 में की गयी। जिसका उद्देश्य था कि हिमालय पारिस्थितिक तंत्र, ग्लेश्यिर, हिमालयी वनस्पति, जड़ी-बूटियों का संरक्षण कर रोजगार के अवसर उपलब्ध करना। यह मुहिम हिमालय पारिस्थितिक तंत्र एवं जैव विविधता आदि के संरक्षण की एक विशिष्ट पहल है। परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि हिमालय, भारत के लिये सिर्फ एक रक्षा कवच नहीं है या केवल सिंध, गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों का उद्गम स्थल है बल्कि हिमालय के कण-कण में हिन्दुत्व, बुद्धिज्म और विभिन्न संस्कृतियों का समाहित है। हिमालय हमें अपनी