अब बाँधों का भय कम पर विरोध जारी रहेगा
संसार भर में बांधों की अनुपयोगिता, दावें झूठे सिद्ध होना, लाभों का कमतर होते जाना, पर्यावरणीय नुकसानों की पूर्ति ना हो पाने, झीलों में गाद भरना, दावे के अनुरूप बिजली उत्पादन न होना, सिंचाई के आंकलन भी कम होते जाना, लम्बे समय के बाद भी जनहक के सवालों का हल ना निकल पाना आदि अनेक ऐसे कारण हुए जिनसे बाँधों में निवेश अब कम हो रहा हैं। उदाहरण के लिए जे. पी. कंपनी कई सालों विष्णुप्रयाग बाँध को एनरौन, टाटा पॉवर आदि को बेचने की घोषणा कर रही है किन्तु अभी तक कोई खरीदार नहीं आया है। अब बड़े बांधों का जमाना धीरे धीरे बीते दिनों की बात हो रहा है। किन्तु हमारी सरकार जरूर बांधों की पैरोकार बनी हुई है। श्री रवि चोपड़ा ने यह बात विमल भाई की नई प्रकाशित पुस्तक ‘मुक्त बहने दो’ के विमोचन के समय कही। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर बनी जून, 2013 में बांधों के असरो पर विषेशज्ञ समिति के अध्यक्ष रहे, वैज्ञानिक व पर्यावरणविद रवि चोपड़ा ने कहा पुस्तक में लिखे वाक्य ‘विकल्प बांधों का नहीं, इच्छाओं का होना चाहिए’ को उद्दृत करते हुए कहा कि अधिक अधिक बिजली का उपभोग विकास नहीं होता। बिजली का दुरूपयोग कम करना चाह...