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Showing posts from October 25, 2018

गौरा देवी के जन्म दिवस पर शत् शत् नमन

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देहरादून– गौरा देवी का जन्म 25 अक्टूबर 1925  में उत्तराखंड के चमोली जिले के लाता गाँव में हुआ था. इन्होने 5वीं तक शिक्षा ग्रहण की हैं. इनका विवाह मेहरबान सिंह से हुआ था. ये लोग जीवनयापन करने के लिए पशुपालन, ऊनी कारोबार और खेती किया करते थे. जीविका चलाने के लिए इन्हें तमाम तरह के कष्टों को सहना पड़ता था.अलकनंदा में 1970 में प्रलयकारी बाढ़ आई, जिससे यहाँ के स्थानीय लोगों में बाढ़ को रोकने के प्रति जागरूकता बढ़ी और इस कार्य के लिये चण्डी प्रसाद भट्ट ने पहल की. भारत-चीन युद्ध के बाद भारत सरकार को चमोली की सुध आई और यहाँ पर सैनिकों के लिए सुगम मार्ग बनाने के लिए पेड़ों की कटाई की शुरूआत हुई. बाढ़ से प्रभावित लोग के हृदय में पेड़ों और पहाड़ो के प्रति संवेदना जागी और महिला मंगल दलों की स्थापना हुई. 1972 में गौरा देवी को रैणी गाँव की “महिला मंगल दल”का अध्यक्ष चुना गया और धीरे-धीरे हर गाँव में महिला मगल दलों की स्थापना हुई और महिलाओं ने इसमें अपना भरपूर सहयोग दिया. पेड़ो को बचाने के लिए महिलाओं ने अपनी जान की परवाह किये बिना वो ठेकेदारों से लड़ जाती थी और उन्हें बन्दूक के द्वारा धमकी और अन्य कई अपमान

राजनीति की भेंट चढ़ता एनआईटी

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श्रीनगर गढ़वाल– उत्तराखंड में 2013 की आपदा के बाद श्रीनगर में बने एनआईटी परिसर का विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है अस्थाई रूप से पॉलिटेक्निक कॉलेज में  बने एनआईटी अपने भविष्य के लिए चिंतित हैं  वही काफी दिनों से चल रहे छात्रों का आंदोलन एकाएक नए मोड़ पर आ गया छात्रों ने कॉलेज के छात्रावास में तालाबंदी कर कॉलेज छोड़कर  अपने अपने घरों को निकल पड़े छात्रों की मांग है कि उन्हें स्थाई परिसर दिया जाए वही श्रीनगर  एनआईटी को लेकर राजनीति भी हो रही है राज्य सरकार इस मसले का अभी तक समाधान नहीं निकाल पाई है  जहां एनआईटी को  लगभग 300 एकड़ भूमि की आवश्यकता है  वहीं सरकार अभी तक इन्हें भूमि मुहैया नहीं करा पा रही है सुमाड़ी में  आवंटित की भूमि  पर एनआईटी  का निर्माण होने से पहले ही विवाद हो गया  उसके बाद एक अन्य जगह  पर जमीन चिन्हित की गई मगर वह जमीन  केंपस  के हिसाब से काफी नहीं थी इसी कारण  छात्रों को अभी तक अलग-अलग जगह रहना पड़ रहा था और एक कमरे में छः छः छात्र रह रहे थे  जोकि रहने के लायक नहींनहीं हैं,एन आई टी छोड़ने वाले छात्रों के उत्तराखंड के स्थायी कैंपस का मुद्दा बुधवार को दिल्ली पहुंच

आधुनिक शोध भारतीय ज्ञान परम्परा पर आधारित हो

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देहरादून–दून विश्वविद्यालय के प्रबन्धशास़्त्र विभाग द्वारा शोध छात्रों के लिये आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला के उद्घाटन सत्र को सम्बोधित करते हुए दून विश्वविद्यालय के कुलपति डा0 चन्द्रशेखर नौटियाल ने कहा कि भविष्य के पूर्वानुमान व आगणन के लिये शोध प्रविधि का चयन शोधार्थियों के लिये महत्वपूर्ण कदम है।यदि पूर्वानुमान सटीक व सही समय पर हो तो मानव कल्याण एवं सामाजिक उत्थान के कार्यक्रम कारगर तरीके से नियोजित एवं संचालित किये जा सकते हैं। शोध का विषय मात्र उपाधि प्राप्त करने तक ही सीमित नहीं होना चाहिये यह जीवन पर्यन्त चलने वाला विषय है। इसलिये इस तरह के कार्यशालाओं से सीखी हुई तकनीक ताउम्र व्यक्ति को जीवन के पथ पर अग्रसर करने में सहायक होती है। विशिष्ट अतिथि गुरूकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय हरिद्वार के प्रबन्धशास़्त्र के पूर्व संकायाध्यक्ष प्रो0एस सी धमीजा ने कहा कि आधुनिक शोध में भारतीय ज्ञान परम्परा का समावेश होना चाहिये। आज के वैश्विक परिवेश में पश्चिमी देशों के आधार पर विकसित माॅडल भारतीय समाज में सत प्रतिशत कारगर होंगे यह सत्य नहीं है। इसलिये हमें वैश्विक परिदृश्य के अनुरूप भारतीय ज्ञान