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Showing posts from May 27, 2019

चारधाम यात्रा में साथियों से बिछड़े यात्री को पुलिस मिलाया परिजनों

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 चमोली – पुलिस चौकी पीपलकोटी क्षेत्र में पुलिस कर्मियों को  एक व्यक्ति मिला जो बहुत परेशानी लग रहा था, उक्त व्यक्ति से पूछताछ की गई तो पता चला कि वह हिंदी बोलने एवं समझने में असमर्थ है एवं सिर्फ़ तेलगू भाषा ही बोल एवं समझ सकता है, पुलिस द्वारा अन्य किसी तेलगू बोलने वाले व्यक्ति को ढूंढ कर उस व्यक्ति का नाम पता पूछा गया  तो व्यक्ति द्वारा खुद नाम एवं पता वेंकटेश्वरल पुत्र आदिया निवासी पेढलामनापुरी थाना राजपाल्यम जिला गुंटुर आंध्र प्रदेश बताया पुलिस द्वारा आंध्र प्रदेश पुलिस से संपर्क कर उक्त व्यक्ति का नाम पता बताया कर उक्त व्यक्ति के सम्बंध में जानकारी प्राप्त की गई तो आंध्र प्रदेश पुलिस द्वारा उस व्यक्ति के पुत्र  से संपर्क करवाया गया, चौकी पीपलकोटी पुलिस कर्मियों द्वारा उक्त व्यक्ति के पुत्र से संपर्क कर उक्त व्यक्ति की बात करवाई गई व जो  परिवार के सदस्य चारधाम यात्रा हेतु आए थे उनके मोबाइल नंबर  लेकर संपर्क किया गया एवं चौकी पीपलकोटी बुलाकर  उक्त व्यक्ति को उनके सुपुर्द किया गया। यात्रियों द्वारा पीपलकोटी पुलिस का धन्यवाद किया गया एवं चमोली पुलिस के कार्य की प्रशंसा की गयी।   

मोक्षघाट तक पारंपरिक ढोल नगाड़ों के साथ शव यात्रा

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उत्तरकाशी– आज तक आपने किसी शवयात्रा को पारंपरिक वाद्य यंत्रों  ढोल नगाड़ों की थाप के साथ नृत्य करते हुए ले जाने की बात न सुनी होगी न देखी होगी,,,, लेकिन,,,, उत्तरकाशी जिले में खासकर रवाईं यमुनाघाटी में अभी भी जिंदा है एक अनोखी संस्कृति, जहां किसी बुजुर्ग के मरने पर शव यात्रा को मोक्षघाट तक गाजे बाजों व पारंपरिक ढोल नगाड़ों रणसिंघो के साथ नृत्य करते हुए ले जाया जाता  है शमशान घाट तक।सुनने व देखने मे जरूर अटपटा लग सकता है लेकिन यही विचित्र भी है, और सत्य भी है,,, अद्भुत भी है अकल्पनीय भी,,, अभी 22 मई 2019 को मैं अपने रिश्तेदार चैन सिंह जयाड़ा  उम्र 87 वर्ष, सेवानिवृत्त पंचायत राज अधिकारी निवासी डख्याट गांव, बड़कोट की मृत्यु का समाचार सुन उनके अंतिम दर्शन व उनकी शवयात्रा में शामिल होने के लिए गया।। उनकी शवयात्रा को  भव्य रूप से दर्जनों ढोल, नगाड़ों, रणसिंघो के साथ ले जाया गया । सैकड़ों लोग इस शवयात्रा में शरीक थे।रास्ते में यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर बड़कोट में शवयात्रा को एक जगह रोककर गढ़वाली पहाड़ी पारंपरिक वाद्य यंत्रों ढोल बाजे नगाड़े व रणसिंघो के साथ करीब 30 मिनट तक  नृत्य किया गया है।