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Showing posts from January 24, 2019

घर-घर में ढोल बजेंगे, बेटी-बेटा दोनो हमारी खुशी बनेंगे

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देहरादून—राष्ट्रीय बालिका दिवस के अवसर पर रेसकोर्स स्थित गुरूरामराय पब्लिक स्कूल में जिलाधिकारी एस.ए मुरूगेशन द्वारा ‘बेटी बचाओ, बेटी पढाओ’ विषय पर आयोजित कार्यशाला का शुभारम्भ किया गया। कार्यक्रम में ‘बेटी बचाओ, बेटी पढाओ’ विषय पर भाषण प्रतियोगिता, नुक्कड़ नाटक, वाद-विवाद प्रतियोगिता, गीतगायन में अच्छा प्रदर्शन करने वाले बालक-बालिकाओं को पुरस्कार वितरण, रंगोली कार्यक्रम का आयोजन भी किया गया, जिसमें बालक-बालिकाओं सहित शिक्षक-शिक्षिकाओं और मुख्य अतिथि और विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रतिभाग कर रहे महानुभवों ने अपने विचार व्यक्त किये। ‘‘गर्भ से ही सबको पुकार रही है, माता पिता ईश्वर समाज। मुझे जन्म लेने दो, दुनिया में आने दो।।’’ ‘‘ कोख में ना मारो बाबुल, बेटी हूॅ तुम्हारी’ रूखी-सूखी रोटी देना, जो दोगे उसी पर पर गुजारा करूॅगी।।’’ यह सन्देश भावुक मन से रूॅदे कंठ से विद्यालय की बालिकाओं ने कार्यक्रम के दौरान देते हुए उस पुरूष प्रभूत्व समाज को संदेश देने की कोशिश की, कि - ‘‘ मै भी पढना चाहती हूॅ, मै भी बढना चाहती हूॅ।धर्म जाति, पंथ-संप्रदाय से उपर उठकर,सेवा देश की करना चाहती हॅू।’’जिलाधिकार

मनुष्य की समस्या के अध्ययन में सामाजिक विज्ञान की महत्वपूर्ण भूमिका

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देहरादून — दून विश्वविद्यालय द्वारा रिसर्च मैथोडोलोजी विषय पर आयोजित दस दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला के समापन समारोह में मुख्य अतिथि इंडियन सांइस एकेडमी के फैलो एवं सुप्रसिद्व शिक्षाविद् तथा हे0न0ब0 गढवाल विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो0 एस0पी0 सिंह ने कहा कि शोध का विषय सत्य की खोज करना है और इस यात्रा में मिथक को तोड़कर सत्य के मार्ग पर अग्रसर होकर मनुष्य समाज की समस्याओं का अध्ययन करने में सक्षम होता है एवं उनके समाधान के विकल्प तैयार करता है। और इस प्रक्रिया में शोधार्थियों की जिम्मेदारी महत्वपूर्ण है। प्रो0 सिंह ने कहा कि आज का सामाजिक विज्ञान का दायरा वैश्विक है, इसलिये शोध की परिकल्पना को एक विस्तृत परिपेक्ष में समझने के साथ-साथ मानव कल्याण के लिये उपयोगी सिद्व करना है। शोध कार्य एवं पीएच0डी0 उपाधि के लिये किये गये कार्यो मे अन्तर किया जाना आवश्यक है। शोध का विषय ज्ञान के सृजन में वृद्वि करने से होना चाहिए, यदि शोध ज्ञान के सृजन करने में सक्षम नहीं है तो वह शोध समाज के लिये उपयोगी नहीं हो सकता।उन्होंने शोधार्थियों को जनोपयोगी शोध कार्यों को प्रोत्साहित करने का आह्वान किया। विशि