बाबा बमराड़ा ने जनसंघ के नेताओं के साथ आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाई
देहरादून --उत्तराँचल प्रेस क्लब में उत्तराखंड राज्य आंदोलन की नींव रखने वालों में शुमार बाबा बमराड़ा को श्रद्धांजलि अर्पित की गई. इसके पश्चात अभियान के वरिष्ठ सदस्य रघुबीर बिष्ट ने बाबा बमराड़ा के जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि बाबा मथुरा प्रसाद बमराड़ा के जीवन के उतार चढ़ाव को देखें तो अनशनों और आंदोलनों में ही बाबा का जीवन गुजर गया । उन्हाने कई राजनीतिक और सामाजिक आंदोलनों में भागीदारी की। १९७६ में दिल्ली में अलग उत्तराखण्ड राज्य की मांग के लिए दस दिनों की भूख हड़ताल हो या गढ़वाल विश्वविद्यालय आंदोलन बाबा हमेशा अग्रिम मोर्चे पर रहे। कश्मीर बचाओ के लिये तत्कालीन जनसंघ के नेता
श्यामाप्रसाद मुखर्जी के साथ आंदोलन में बाबा ने प्रमुख भूमिका निभाई। इसके अलावा जेपी आंदोलन में तिहाड़ जेल की यातना भी बाबा ने भुगती । इसके बाद युवा छात्र नेता सचिन थपलियाल ने कहा कि उत्तराखण्ड राज्य आदोलन तो बाबा बमराड़ा की भूमिका के बगैर माना ही नहीं जा सकता है। उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद जनता की उन उपेक्षाओं और मुद्दों को दरकिनार कर दिया गया जिनके लिए आंदोलनकारियों ने वर्षों तक सड़कों पर आंदोलन किया, आंदोलन में अपना सब कुछ लुटाने वाले आंदोलनकारियों को सरकार की घोर उपेक्षा का दंश झेलना पड़ा। अभियान के सदस्य एवं आंदोलनकारी रविंद्र जुगरान ने कहा कि बाबा बमराड़ा किस हाल में थे , किस तरह जीवन यापन कर रहे थे , उनकी सुध भाजपा या कांग्रेस की सरकारों ने तो दूर, उस उक्रांद के बैनर पर मंत्री बने नेताओं ने भी नहीं ली, जो उक्रांद खुद को इस राज्य के निमार्ण का सूत्रधार कहता है।इसके पश्चात अन्य वक्ताओं ने कहा कि बाबा बमराडा को अपने प्रदेश मे सरकार की उपेक्षा और उपहास के चलते जिस तरह अनशन करना पड़ा उससे साफ है कि अब शायद राज्य में आंदोलनकारियों का कोई स्थान नहीं बचा है।उत्तराखंड राज्य आंदोलन की नींव रखने वालों में शुमार बाबा बमराड़ा के जीवन के आखरी दिनों के बारे में यही कहा जाता रहा कि उत्तराखंड बनने के बाद उन जैसे आंदोलनकारी की घोर उपेक्षा हुई है। सच्चाई यही है कि उत्तराखंड बन जाने के बाद सत्ता में आई राजनीतिक पार्टियों ने तो उन्हें नजरअंदाज किया ही, उत्तराखंड क्रांति दल और आंदोलनकारी संगठनों के लिए भी उनकी कोई अहमियत नहीं रही। राष्ट्रीय मजदूर आन्दोलन के प्रणेता,और उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन के बुनियादी स्तम्भ बाब मथुराप्रसाद बमराड़ा का निधन एक समग्र
आन्दोलन का देहवसान है । उनके यौवन के दिनों में संघर्ष और बाबा बमराड़ा पर्यायवाची हुआ करते थे। एक तरफ गरीबी तंगहाली और दूसरी तरफ बेहद उंची पहुंच के बावजूद बाबा ने सिर्फ जन आन्दोलनों को ही अपनी नियति माना और उस उंची पहुंच के ही कालर पकडते रहे । किन्तु पंथ निरपेक्ष, समाजवादी और मानवतावादी । आजन्म जनसंघर्षी, विद्रोही कवि और संस्कृति के मर्मज्ञ बाब मथुरा प्रसाद बमराड़ा को भावपूर्ण श्रद्धांजलि ।पर ये अकाट्य सत्य है कि बाबा, उत्तराखण्ड राज्य निर्माण की बुनियाद के पहले पाषाण हैं और उन्हें जो सम्मान मिलना चाहिए था, वो राज्य निर्माण के बाद सत्तासीन होने वाले रहनुमाओं ने कभी नहीं दिया..जिसके लिए बाबा की आत्मा उन्हें कभी क्षमा नहीं करेगी..शायद उनके श्राप से प्रदेश के अहसान फरामोश रहनुमाओं का भी अभिशप्त होकर बुरा अन्त हो जाए... श्रद्धाजलि सभा में मोहन उत्तराखंडी, प्रदीप कुकरेती, लक्ष्मी प्रसाद थपलियाल, मोहन भुलानी, हेमा देवराडी, राम लाल खंडूरी, वी एस रावत, प्रकाश थपलियाल, हरी किशन किमोठी, भगवती प्रसाद मैन्दोली, पुष्कर नेगी, मदन भण्डारी, गोपाल गुसाईं, देवेन्द्र नेगी, सूरज भट्ट आदि लोग मौजूद रहे।
श्यामाप्रसाद मुखर्जी के साथ आंदोलन में बाबा ने प्रमुख भूमिका निभाई। इसके अलावा जेपी आंदोलन में तिहाड़ जेल की यातना भी बाबा ने भुगती । इसके बाद युवा छात्र नेता सचिन थपलियाल ने कहा कि उत्तराखण्ड राज्य आदोलन तो बाबा बमराड़ा की भूमिका के बगैर माना ही नहीं जा सकता है। उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद जनता की उन उपेक्षाओं और मुद्दों को दरकिनार कर दिया गया जिनके लिए आंदोलनकारियों ने वर्षों तक सड़कों पर आंदोलन किया, आंदोलन में अपना सब कुछ लुटाने वाले आंदोलनकारियों को सरकार की घोर उपेक्षा का दंश झेलना पड़ा। अभियान के सदस्य एवं आंदोलनकारी रविंद्र जुगरान ने कहा कि बाबा बमराड़ा किस हाल में थे , किस तरह जीवन यापन कर रहे थे , उनकी सुध भाजपा या कांग्रेस की सरकारों ने तो दूर, उस उक्रांद के बैनर पर मंत्री बने नेताओं ने भी नहीं ली, जो उक्रांद खुद को इस राज्य के निमार्ण का सूत्रधार कहता है।इसके पश्चात अन्य वक्ताओं ने कहा कि बाबा बमराडा को अपने प्रदेश मे सरकार की उपेक्षा और उपहास के चलते जिस तरह अनशन करना पड़ा उससे साफ है कि अब शायद राज्य में आंदोलनकारियों का कोई स्थान नहीं बचा है।उत्तराखंड राज्य आंदोलन की नींव रखने वालों में शुमार बाबा बमराड़ा के जीवन के आखरी दिनों के बारे में यही कहा जाता रहा कि उत्तराखंड बनने के बाद उन जैसे आंदोलनकारी की घोर उपेक्षा हुई है। सच्चाई यही है कि उत्तराखंड बन जाने के बाद सत्ता में आई राजनीतिक पार्टियों ने तो उन्हें नजरअंदाज किया ही, उत्तराखंड क्रांति दल और आंदोलनकारी संगठनों के लिए भी उनकी कोई अहमियत नहीं रही। राष्ट्रीय मजदूर आन्दोलन के प्रणेता,और उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन के बुनियादी स्तम्भ बाब मथुराप्रसाद बमराड़ा का निधन एक समग्र
आन्दोलन का देहवसान है । उनके यौवन के दिनों में संघर्ष और बाबा बमराड़ा पर्यायवाची हुआ करते थे। एक तरफ गरीबी तंगहाली और दूसरी तरफ बेहद उंची पहुंच के बावजूद बाबा ने सिर्फ जन आन्दोलनों को ही अपनी नियति माना और उस उंची पहुंच के ही कालर पकडते रहे । किन्तु पंथ निरपेक्ष, समाजवादी और मानवतावादी । आजन्म जनसंघर्षी, विद्रोही कवि और संस्कृति के मर्मज्ञ बाब मथुरा प्रसाद बमराड़ा को भावपूर्ण श्रद्धांजलि ।पर ये अकाट्य सत्य है कि बाबा, उत्तराखण्ड राज्य निर्माण की बुनियाद के पहले पाषाण हैं और उन्हें जो सम्मान मिलना चाहिए था, वो राज्य निर्माण के बाद सत्तासीन होने वाले रहनुमाओं ने कभी नहीं दिया..जिसके लिए बाबा की आत्मा उन्हें कभी क्षमा नहीं करेगी..शायद उनके श्राप से प्रदेश के अहसान फरामोश रहनुमाओं का भी अभिशप्त होकर बुरा अन्त हो जाए... श्रद्धाजलि सभा में मोहन उत्तराखंडी, प्रदीप कुकरेती, लक्ष्मी प्रसाद थपलियाल, मोहन भुलानी, हेमा देवराडी, राम लाल खंडूरी, वी एस रावत, प्रकाश थपलियाल, हरी किशन किमोठी, भगवती प्रसाद मैन्दोली, पुष्कर नेगी, मदन भण्डारी, गोपाल गुसाईं, देवेन्द्र नेगी, सूरज भट्ट आदि लोग मौजूद रहे।
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