हरदा ने इंदिरा विरोध के वावजूद नैनीताल से टिकट लिया

देहरादून–उत्तराखण्ड की पांचों लोकसभा सीट के लिए कांग्रेस ने अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर दी हैं।इसके साथ ही ये असमंजस भी खत्म हो गया कि कांग्रेस किस पर दांव खेलेगी तकरीबन वही नाम फाइनल हुए जो पिछले कई दिनों से चर्चा में थे।हरिद्वार लोकसभा सीट पर जरूर कांग्रेस ने अम्बरीष कुमार को टिकट देकर सबको चौंकाया हैं।क्योंकि इस सीट पर अलग अलग नाम सामने आ रहे थे।
उत्तराखण्ड टिकट वितरण में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की खूब चली उन्होंने स्वयं के लिए नैनीताल सीट से टिकट तो लाया ही साथ ही अपने शिष्य राज्यसभा सांसद प्रदीप टम्टा को भी अल्मोड़ा से टिकट दिलवाया इतना ही नही हरिद्वार सीट पर भी अपने करीबी अम्बरीश कुमार को टिकट दिलवा दिया। गढ़वाल सीट पर मनीष खण्डूड़ी का भी उन्होंने ही नाम आगे रखा जरूर टिहरी सीट पर प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह की चली और वो स्वयं के लिए टिकट लेकर आए इन सबके बीच यदि कोई नेता खाली हाथ रहा तो वो है कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय इस बार भी हरीश रावत और प्रीतम सिंह के सामने किशोर ही साबित हुए।टिहरी सीट पर किशोर की दावेदारी थी लेकिन उनको नजरअंदाज कर प्रीतम सिंह को टिकट दिया गया,किशोर का नाम हरिद्वार के लिए भी उछला पर वहाँ भी किशोर न जा सके।किशोर उपाध्याय पिछले कुछ दिनों से अपनी उपेक्षा से बेहद आहत भी बताए जाते हैं।कभी हरीश रावत के बेहद करीबी रहे किशोर उपाध्याय को प्रदेश अध्यक्ष रहते राज्यसभा सांसद का टिकट भी न मिल सका था और उनकी जगह प्रदीप टम्टा को राज्यसभा का टिकट मिला,फिर 2017 के विधान सभा चुनाव में भी किशोर की परम्परागत टिहरी सीट के बजाय उन्हें सहसपुर से टिकट दिया गया जहाँ वो हार गए,वहीं दूसरी तरफ नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश भी हरीश रावत के सामने बौनी ही साबित हुई।राजनीति के चतुर खिलाडी हरीश रावत ने इंदिरा के भारी विरोध के वावजूद भी नैनीताल से अपना टिकट पक्का करा लिया।वहाँ की जातीय समीकरण और कांग्रेस के परम्परागत वोट बैंक को साधने की तरफ बढ़े हैं।
हालांकि हरीश रावत 2017 में किच्छा और हरिद्वार ग्रामीण से विधानसभा चुनाव में हार हुई हैं। लेकिन फिर भी उनका कद कांग्रेस और राहुल गांधी की नजर में बढ़ता ही गया वे कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्य और राष्ट्रीय महासचिव भी हैं। हरीश रावत एक मिलनसार सक्रिय और वाकपटु नेता के तौर पर जाने जाते हैं। साथ ही वो अपने करीबियों को सदैव याद रखते हैं। जिसकी झलक इस बार के टिकट वितरण में भी दिखी। कांग्रेस के पांच टिकटों में से टिहरी गढ़वाल लोकसभा सीट पर जनजाति एस टी से आने वाले प्रीतम सिंह को टिकट मिला तो गढ़वाल से पूर्व सीएम बी सी खण्डूरी के बेटे और हाल ही में कांग्रेस में शामिल हुए मनीष खण्डूरी को टिकट दिया जो कि ब्राह्मण हैं।वही इतने विरोध के बाद भी हरीश रावत नैनीताल से उम्मीदवार हैं। वही हरीश रावत ठाकुर चेहरे हैं।अल्मोड़ा से कांग्रेस के अनुसूचित जाति के  बड़े चेहरे प्रदीप टम्टा हैं। पिछड़ी जाति से ताल्लुक रखने वाले अमरीश कुमार को हरिद्वार से टिकट दिया हैं। ये वहीं अमरीश हैं जो पहले सपा से विधायक भी रहे हैं। और  उसके बाद पिछले कई विधान सभा चुनाव में लगातार हारते रहे हैं।अब जबकि कांग्रेस ने भी अपने प्रत्याशी तय कर दिए हैं। तो उत्तराखण्ड में बीजेपी कांग्रेस समेत सभी पार्टियों ने कमर कस ली है।कांग्रेस टिकट वितरण में भले ही हरीश रावत की खूब चली हो लेकिन असली चुनौती अब हाईकमान के विश्वास को बनाये रखने की होगी।यदि हरीश रावत समेत कांग्रेस के उम्मीदवार इस चुनाव को जीतने में कामयाब हुए तो निसन्देह हरीश रावत का कद राष्ट्रीय राजनीति में काफी ऊँचा हो जायेगा।विभिन्न गुटों और जनता के बीच एक दम अलग थलग पड़ी कांग्रेस को नेता कैसे उभारते है।अब जबकि समय बहुत कम है और काम काफी अधिक इन चुनौतियों से किस तरह निकलकर जनता की उम्मीदों पर खरा उतरते हैं। कांग्रेस के प्रत्याशी को ये देखना दिलचस्प होगा। इस बार मोदी magic की लहर भी इतनी नही हैं।फिलहाल कांग्रेस उत्तराखण्ड में जनता के समक्ष किस तरह से प्रचार अभियान को चलाती हैं। और कैसे अपने रूसो को मनाती है और किस प्रकार से अपने कैडर को सुरक्षित रखकर जनता के बीच अपने खोये जनाधार को बढाती है।

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