अधिक ऊचाई वाले क्षेत्रों में पेड़ कटान व कृषि की रक्षा हेतु जंगली सूअरो को मारने की अनुमति दी जाए- मुख्यमंत्री
नई दिल्ली-मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने नई दिल्ली में केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री डाॅ. हर्षवर्धन से भेंट की। मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र ने प्रदेश में वन भूमि हस्तांतरण तथा क्षतिपूर्ति सम्बंधी प्रावधानों में सरलीकरण, डिग्रेडेड फोरेस्ट लेण्ड ही क्षतिपूर्ति वृक्षारोपण के लिये उपलब्ध कराये जाने, भागीरथी इको सेंसेटिव जोन से सम्बंधित अधिसूचना के प्राविधानों में संशोधन किये जाने, केम्पा के प्राविधानों में सरलीकरण, 1000 मीटर से अधिक ऊचाई वाले क्षेत्रों में पेड़ कटान की अनुमति तथा जंगली सूअर से मानव एवं कृषि की रक्षा हेतु जंगली सूअरो को मारने की अनुमति दिये जाने आदि से सम्बंधित राज्य हित से सम्बंधित विभिन्न विषयों पर आवश्यक सहमति प्रदान करने का अनुरोध किया। इसके अतिरिक्त उन्होने वन अधिनियम के नियमों से राज्य में विकास परियोजनाओं में आ रही बाधाओं, प्रदेश के अन्तर्गत नियोजित विकास में सहयोग,
बेहतर वन प्रबन्धन तथा मानव एवं कृषि को जंगली पशुओं से क्षति की रोकथाम हेतु भी समुचित उपाय किये जाने की आवश्यकता पर केन्द्रीय वन मंत्री से चर्चा की। मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र ने वन भूमि हस्तान्तरण तथा क्षतिपूर्ति वृक्षारोपण सम्बंधी प्राविधानों में सरलीकरण किये जाने पर बल देते हुए केन्द्रीय वन मंत्री डाॅ. हर्षवर्धन को बताया कि भारत सरकार द्वारा पूर्व में 01 हेक्टयर तक वन भूमि हस्तान्तरण के कतिपय प्रकरणों में स्वीकृति निर्गत करने हेतु राज्य सरकार को अधिकृत किया गया है जिसकी अवधि 18 दिसम्बर, 2018 को समाप्त हो रही है। चारधाम आॅल वैदर रोड, पी.एम.जी.एस.वाई. ग्रामीण विद्युतीकरण तथा नमामि गंगे आदि कतिपय परियोजनाओं के लिये वन भूमि हस्तान्तरण के विषयों पर शीघ्र निर्णय आवश्यक है। अतः कार्यहित में 05 हैक्टयर तक के प्रकरणों में स्वीकृति प्रदान करने हेतु राज्य सरकार को दिया गया अधिकार सम्पूर्ण राज्य क्षेत्र तथा सभी परियोजनाओं के संदर्भ में आगामी 05 वर्षो तक के लिए बढ़ाया जाना जनहित में आवश्यक है। किन्तु पी.एम.जी.एस.वाई. की सड़क निर्माण परियोजनााअें के साथ-साथ राज्य सरकार की समस्त परियोजनाओं के निमित्त क्षतिपूर्ति वृक्षारोपण हेतु दोगुनी मात्रा में सिविल भूमि की अनिवार्यता की गयी है। मानकों में यह भिन्नता औचित्यपूर्ण नहीं है। उन्होने बताया कि प्रदेश का 71 प्रतिशत भूभाग वनाच्छादित होने, शेष अन्य सिविल भूमि में भी अधिकांश भूमि दुर्गम व पथरीली होने के कारण वनीकरण न होने, काफी भूमि आबादी से आच्छादित एवं कृषि/बागवानी कार्यों के निमित्त आवश्यक होने तथा कुल वन भूमि में से भी लगभग 26 प्रतिशत Degraded Forest Land होने के कारण ऐसी भूमि में भी अतिरिक्त वनीकरण की अन्यन्त आवश्यकता एवं पूर्ण संभाव्यता होने के दृष्टिगत केन्द्र पोषित, बाह्य सहायतित अथवा राज्य पोषित समस्य परियोजनाओं के लिए सर्वप्रथम Degraded Forest Land ही क्षतिपूर्ति वृक्षारोपण हेतु उपलब्ध कराये जाने की अनुमति प्रदान की जाय। इसके अतिरिक्त मुख्यमंत्री ने केन्द्रीय वन मंत्री के समक्ष यह समस्या रखी कि भारत सरकार द्वारा अन्तराष्ट्रीय सीमा क्षेत्र में लाइन आफ एक्चुअल कन्ट्रोल से 100 कि.मी. एरियल डिस्टेंस बी.आर.ओ. तथा आई0टी0बी0पी0 के लिये 2 लेने मार्ग निर्माण की योजनाओं के सम्बंध में वन भूमि हस्तांतरण के सभी प्रकरणों में अनुमति देने हेतु राज्य सरकार को अधिकृत किया गया है किन्तु भारत सरकार के निर्देशों में उक्त व्यवस्था केवल देश के पूर्वी एवं पश्चिमी सीमा के लिये अनुमन्य किया गया है। अतः इन निर्देशों पर पुनर्विचार कर चीन नेपाल सीमा पर स्थित उत्तराखण्ड जैसे उत्तर पूर्वी सीमा क्षेत्रों के लिये भी समान व्यवस्था लागू किया जाना आवश्यक है,उत्तराखण्ड का अधिकांश क्षेत्र अन्तराष्ट्रीय सीमा से जुडा है। आन्तरिक सुरक्षा की दृष्टि से राज्य सरकार द्वारा वित्त पोषित सड़क परियोजनायें भी स्थानीय निवासियों के साथ-साथ आई0टी0बी0पी0 अथवा अन्य सुरक्षा इकाइयों के लिये भी सहायक होती है। अतः सीमा क्षेत्र में 100 कि0मी एरियल डिस्टेंस में पडने वाली समस्त सड़क परियोजनाओं को वन भूमि हस्तांतरण के लिये राज्य सरकार को अधिकृत किया जाय।
बेहतर वन प्रबन्धन तथा मानव एवं कृषि को जंगली पशुओं से क्षति की रोकथाम हेतु भी समुचित उपाय किये जाने की आवश्यकता पर केन्द्रीय वन मंत्री से चर्चा की। मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र ने वन भूमि हस्तान्तरण तथा क्षतिपूर्ति वृक्षारोपण सम्बंधी प्राविधानों में सरलीकरण किये जाने पर बल देते हुए केन्द्रीय वन मंत्री डाॅ. हर्षवर्धन को बताया कि भारत सरकार द्वारा पूर्व में 01 हेक्टयर तक वन भूमि हस्तान्तरण के कतिपय प्रकरणों में स्वीकृति निर्गत करने हेतु राज्य सरकार को अधिकृत किया गया है जिसकी अवधि 18 दिसम्बर, 2018 को समाप्त हो रही है। चारधाम आॅल वैदर रोड, पी.एम.जी.एस.वाई. ग्रामीण विद्युतीकरण तथा नमामि गंगे आदि कतिपय परियोजनाओं के लिये वन भूमि हस्तान्तरण के विषयों पर शीघ्र निर्णय आवश्यक है। अतः कार्यहित में 05 हैक्टयर तक के प्रकरणों में स्वीकृति प्रदान करने हेतु राज्य सरकार को दिया गया अधिकार सम्पूर्ण राज्य क्षेत्र तथा सभी परियोजनाओं के संदर्भ में आगामी 05 वर्षो तक के लिए बढ़ाया जाना जनहित में आवश्यक है। किन्तु पी.एम.जी.एस.वाई. की सड़क निर्माण परियोजनााअें के साथ-साथ राज्य सरकार की समस्त परियोजनाओं के निमित्त क्षतिपूर्ति वृक्षारोपण हेतु दोगुनी मात्रा में सिविल भूमि की अनिवार्यता की गयी है। मानकों में यह भिन्नता औचित्यपूर्ण नहीं है। उन्होने बताया कि प्रदेश का 71 प्रतिशत भूभाग वनाच्छादित होने, शेष अन्य सिविल भूमि में भी अधिकांश भूमि दुर्गम व पथरीली होने के कारण वनीकरण न होने, काफी भूमि आबादी से आच्छादित एवं कृषि/बागवानी कार्यों के निमित्त आवश्यक होने तथा कुल वन भूमि में से भी लगभग 26 प्रतिशत Degraded Forest Land होने के कारण ऐसी भूमि में भी अतिरिक्त वनीकरण की अन्यन्त आवश्यकता एवं पूर्ण संभाव्यता होने के दृष्टिगत केन्द्र पोषित, बाह्य सहायतित अथवा राज्य पोषित समस्य परियोजनाओं के लिए सर्वप्रथम Degraded Forest Land ही क्षतिपूर्ति वृक्षारोपण हेतु उपलब्ध कराये जाने की अनुमति प्रदान की जाय। इसके अतिरिक्त मुख्यमंत्री ने केन्द्रीय वन मंत्री के समक्ष यह समस्या रखी कि भारत सरकार द्वारा अन्तराष्ट्रीय सीमा क्षेत्र में लाइन आफ एक्चुअल कन्ट्रोल से 100 कि.मी. एरियल डिस्टेंस बी.आर.ओ. तथा आई0टी0बी0पी0 के लिये 2 लेने मार्ग निर्माण की योजनाओं के सम्बंध में वन भूमि हस्तांतरण के सभी प्रकरणों में अनुमति देने हेतु राज्य सरकार को अधिकृत किया गया है किन्तु भारत सरकार के निर्देशों में उक्त व्यवस्था केवल देश के पूर्वी एवं पश्चिमी सीमा के लिये अनुमन्य किया गया है। अतः इन निर्देशों पर पुनर्विचार कर चीन नेपाल सीमा पर स्थित उत्तराखण्ड जैसे उत्तर पूर्वी सीमा क्षेत्रों के लिये भी समान व्यवस्था लागू किया जाना आवश्यक है,उत्तराखण्ड का अधिकांश क्षेत्र अन्तराष्ट्रीय सीमा से जुडा है। आन्तरिक सुरक्षा की दृष्टि से राज्य सरकार द्वारा वित्त पोषित सड़क परियोजनायें भी स्थानीय निवासियों के साथ-साथ आई0टी0बी0पी0 अथवा अन्य सुरक्षा इकाइयों के लिये भी सहायक होती है। अतः सीमा क्षेत्र में 100 कि0मी एरियल डिस्टेंस में पडने वाली समस्त सड़क परियोजनाओं को वन भूमि हस्तांतरण के लिये राज्य सरकार को अधिकृत किया जाय।
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