युवा दिवस की आप सभी को हार्दिक शुभकमनाएं
देहरादून – भारत को विश्व में सर्वोच्च स्थान दिलाने वाले शिकागो में हुए विश्व धर्म सम्मेलन की तारीख 9/11 (1893) को इसलिए भी तरजीह देते हुए याद रखना है कि उस दिन स्वामी विवेकानंद ने दुनियाभर के लोगों को प्रेम ,भाईचारा ,सद्भावना, मानवता, समानता, किसी भी प्रकार का भेदभाव ना करने व बसुधेव कुटुंबकुम का पाठ पढ़ाया था।
गुलाम भारत में पाश्चात्य देशों की नज़रों में निम्न समझे जाने वाले भारतीयों में से एक भारतीय ने दुनिया को सनातन धर्म का ऐसा पाठ पढ़ाया की दुनिया हमेशा-हमेशा के लिए उसकी मुरीद हो गई । अमेरिका के अखबार न्यूयॉर्क हेराल्ड समेत कई अखबारों ने भी लिखा धर्म सम्मेलन में विचार तो कई धर्मावलंबियों ने रखे पर स्वामी विवेकनन्द के सामने सब फिके पड़ गए। सभी धर्मावलंबी स्वामी जी के विचारों के सामने नतमस्तक हो गए थे।
जब दुनियां के धर्मावलंबी अपने अपने धर्म को श्रेष्ठ बताने में लगे हों तब सभी धर्मो का लक्ष्य एक होने का पाठ पढ़ाना अपने आप में अद्वितीय था। उन्होंने कहा जिस प्रकार अनेक छोटी मोटी जल धाराएं टेडे -मेडे रास्तों से होकर आखिरी में एक ही दरिया में मिल जाती हैं वैसे ही हमारे धर्म भी हैं हमारे रास्ते अलग अलग हो सकते हैं पर लक्ष्य सभी का एक है उस परम परमात्मा को पाना,अच्छाई के मार्ग पर चलना।
उनके भाषण के सुरुआती पांच शब्द सुनते ही लोगो की तालियों की गड़गड़ाहट शूरु हो गई थी और दो मिनट से ज्यादा तक बजती रही। वो शुरुआती पांच शब्द थे…
Sisters and brothers of America…
उनके इन्हीं शब्दों में झलक गया था कि दुनिया के सभी लोगों के लिए उनमें कितनी आत्मीयता भरी है।धर्म सम्मेलन में पहले व्यक्ति थे जिन्होंने अमरीका वासियों को भाई बहिन से संबोधित किया था.उन्होंने बताया कि हमारा हिन्दू धर्म सनातन धर्म कितना सहिष्णु है जिसमें सभी धर्मों के लोग आसानी से शमा सकते हैंमित्रोंत्य देशों के लोगों को भी बड़ी शर्मनदगी हुई कि वे है उस देश में धर्मप्रचार के लिए मिशनरीज भेजते हैं जहां विवेकानंद जैसे विद्वान रहते हैं।दुनिया में भारत का डंका बज चुका था अनेक विदेशी विवेकानंद के शिष्य बन चुके थे। उसके बाद स्वामी जी ने सोए हुए भारतीयों को जगाने के बहुत से प्रयास किये। वो कहते थे मुझे 1000 समर्पित शिष्य मिल जाएं तो में दुनिया में बहुत बड़ा परिवर्तन ला जाऊंगा। पर दुर्भाग्य तब से आज तक कोई दूसरा विवेकानंद नहीं निकल सका।
युवा मित्रो आपमें से ज्यादातर के आदर्श विवेकानंद होंगे। जरा गौर से सोचना भारत का डंका शिकागो विश्व धर्म सम्मेलन में क्यों बजा। इसीलिए की सनातन धर्म की भाईचारा और सद्भाव के बातों को उन्होंने उजागर किया था वरना मैं बड़ा मैं बड़ा तो सभी कर रहे थे वहां और आप ये भी विचार करना की आजकल भारत देश में भी धर्म संसद हो रही है जहां पर जहर उगला जा रहा है क्या वो हमको शीर्ष पर ले जाने का काम करेगा या गर्त पर। उन संतों के कर्मो पर भी नजर रखना जो धर्म का चोला ओढ़ के घृणित कामों को अंजाम दे रहे हैं। आप देख भी रहे होगे ऐसे बहुत से तथाकथित संत जेल की हवा भी खा रहे हैं। ऐसे लोग निश्चित रूप से भारतीयता को क्षति पहुंचते हैं। धर्म बुरी चीज नहीं है और धर्म का मतलब यह भी नहीं है कि हिंदू, मुसलमान ,सिख ,इसाई ,जैन ,पारसी ।धर्म का अर्थ तो धारण करना है अर्थात जो हमारी प्रकृति है ।हम मानव है तो मानवता हमारा धर्म है। आप संविधान की प्रस्तावना में भी देखते होंगे कि वहां पर पंथनिरपेक्ष लिखा गया है धर्मनिरपेक्ष नहीं क्योंकि धर्म से कोई भी अलग नहीं हो सकता ।तो आप लोग भी धर्म का सही अर्थ समझाएं और विवेकानंद की तरह आगे बढ़ें। और भारत को प्रगति के मार्ग पर ले चलें।
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