आंदोलनकारियों के हक की लडाई आखिरी सांस तक लडेंगे -आप
देहरादून – उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी सम्मान परिषद के पूर्व अध्यक्ष व आम आदमी पार्टी नेता रवीन्द्र जुगरान समेत कई आप पदाधिकारी कचहरी स्थित शहीद स्थल पहुंचे,जहां उन्होंने शहीदों की याद में दो मिनट का मौन रखकर शहीदों को नमन किया। इसके बाद सभी आप कार्यकर्ताओं ने शहीद के परिजनों और आंदोलनकारियों के हक की लड़ाई लड़ने का संकल्प लिया गया। आप नेता,रविंद्र जुगरान ने कहा, आंदोलनकारियों की शहादत के बाद इस राज्य का गठन हुआ। हजारों लोग इस राज्य की मांग के लिए जेल तक गए। लेकिन आज उनको दिए अधिकार और आरक्षण पर मौजूदा सरकार गंभीर नहीं है
उन्होंने कहा, जिन आंदोलनकारियों को आरक्षण के तहत अलग अलग विभागों में नौकरी दी गई थी कोर्ट ने उस आरक्षण पर रोक लगाने का फैसला लिया और इस सरकार ने स्टे लेने की जगह या कानून बनाने की जगह सभी विभागों को आंदोलनकारियों को हटाने के फरमान जारी कर दिए। जो सीधे तौर पर उन शहीदों और आंदोलनकारी का अपमान है जिनकी बदौलत राज्य निर्माण का सपना साकार हुआ । रविंद्र जुगरान ने कहा,आप किसी भी कीमत पर आंदोलनकारियों के हक को नहीं मरने देगी।उन्होंने कहा कि अगर सरकार में थोडी भी नैतिकता होती तो वो विधानसभा में एक विधेयक लाकर इस पर एक कानून बनाती और आंदोलनकारियों की इस समस्या का निवारण करती ,लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया बल्कि विभागों को इन आंदोलनकारियों को हटाने का फरमान जारी कर दिया। उन्होंने आगे कहा कि प्रदेश के 500 से 600 आंदोलनकारियों को सरकार द्वारा नोटिस भेजा जा रहा है कि हाईकोर्ट द्वारा आरक्षण समाप्त कर दिया गया है तो आप लोग अब अपनी सेवाएं सरकार को नहीं दे सकते ,जबकि 12 से ज्यादा वर्षों से ये लोग कई सरकारी विभागों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि क्या इस दिन को देखने के लिए इस राज्य की लडाई लडी गई थी कि आंदोलनकारियों के बलिदान को ही सरकार भूल जाएगी। उन्होंने कहा कि एक ओर बडे नेताओं के रिश्तेदारों को बैकडोर एंट्री से विधानसभा और अन्य विभागों में समायोजित किया जा रहा है जबकि आंदोलनकारियों के लिए सरकार ने लडना भी मुनासिब नहीं समझा। उन्होंने कहा कि जिस सरकार को आंदोलनकारियों के संरक्षक की भूमिका में आगे आना चाहिए था उसी सरकार ने इनसे पीठ फेरने का काम किया है। आंदोलनकारीयों को सरकारी सेवाओं में दिये जा रहे क्षैतिज आरक्षण का वाद वर्ष 2011 से उत्तराखंड उच्च न्यायालय में विचाराधीन था किन्तु सरकारों की असंवेदनशीलता, लापरवाही,लचर पैरवी व इच्छा शक्ति के अभाव में उच्च न्यायालय उत्तराखंड ने वर्ष 2018 मार्च में 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण को निरस्त कर दिया। उत्तराखंड सरकार को चाहिए था की, इस आदेश को निष्प्रभावी करने हेतु व विधानसभा में विधेयक पारित करवाकर 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण के लिए कानून एक्ट बनाती या फिर उच्च न्यायालय के फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देती पर सरकार ने ऐसा नहीं किया उल्टे वर्ष 2018 में ही उच्च न्यायालय के फैसले के बाद शासनादेश जारी कर इसको समाप्त कर दिया । विदित हो कि अभी हाल ही में अपर सचिव गृह द्वारा एक आदेश निकाल कर सरकारी सेवा रत आंदोलनकारीयो को उच्च न्यायालय के आदेश के क्रम में नोटिस जारी किये जा रहे हैं। आप उपाध्यक्ष विशाल चौधरी ने कहा, आज आप पार्टी ने संकल्प लिया है कि जिन आंदोलनकारियों पर ये संकट आया है आप पार्टी उनकी इस लडाई में उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर साथ खडी है और ये संघर्ष तक तक जारी रहेगा जबतक इस लडाई का फैसला आंदोनकारियों के हक में नहीं आ जाता।
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