लाॅकडाउन के कारण स्कूल बंद लाखों बच्चे पौष्टिक भोजन, खेल-कूद और शारीरिक व्यायाम से वंचित
ऋषिकेश – एम्स के तत्वावधान में राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया गया। वेबिनार में बच्चों में बढ़ते मोटापे की वृद्धि को रोकने के लिए जंक फूड पैकेजों में चीनी, नमक व वसा के चेतावनी लेवल को दर्शाने की आवश्यकता पर जोर दिया गया। इस दौरान एम्स निदेशक प्रोफेसर रवि कांत ने कहा कि इस मामले में ठोस नीति बनाने की नितांत आवश्यकता है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, एम्स ऋषिकेश ने वेबिनार के माध्यम से पैकेज फूड्स में चीनी, नमक और वसा के चेतावनी लेवल को दर्शाने के लिए जनजागरुकता मुहिम की शुरुआत की है।
विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों में होने वाली मोटापे की वृद्धि स्वास्थ्य की दृष्टि से खतरनाक है। राष्ट्रीय स्तर के इस वेबीनार में देश के विभिन्न मेडिकल संस्थानों के स्वास्थ्य विशेषज्ञों और चिकित्सकों ने प्रतिभाग किया। उन्होंने बताया कि जंक फूड में चीनी, नमक और वसा पर चेतावनी लेबल और इनकी मात्रा का उल्लेख होने से भारत में बच्चों में बढ़ती मोटापे की वृद्धि को रोका जा सकता है। बच्चों के लिए एक स्वस्थ और पौष्टिक भोजन सुनिश्चित करने के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि बचपन के मोटापे के कई दीर्घकालिक प्रभाव होते हैं, जिनमें से कुछ अपरिवर्तनीय हैं। लिहाजा हमें डिब्बा बंद खाद्य पदार्थों में नमक, चीनी और वसा की उच्च सांद्रता पर साक्ष्य-आधारित सीमाएं निर्धारित करने की आवश्यकता है, जिससे कि इन उत्पादों को खरीदते समय लोगों को इसकी जानकारी रहे। उन्होंने नमक, चीनी और अन्य अवयवों को सीमित करने के लिए कड़े नियम बनाने की आवश्यकता बताई। कहा कि फूड पैकेजों पर पैकेज लेबलिंग (एफओपीएल) प्रिंट होने से इसे खरीदते समय बच्चों के माता-पिता को पैकेज में मौजूद कैलोरी और हानिकारक पोषक तत्वों की मात्रा समझने में आसानी होगी। उन्होंने वर्तमान में देश में मोटापे के शिकार 14.4 लाख से अधिक बच्चों के स्वास्थ्य के प्रति भी चिंता जताई और बताया कि मौजूदा वक्त में इस मामले में भारत विश्व में दूसरे स्थान पर है। विशेषज्ञों द्वारा कहा गया कि वर्ष -2025 तक मोटापे से ग्रसित बच्चों की यह संख्या 17 लाख को पार कर जाएगी।एम्स ऋषिकेश जैसे प्रमुख संस्थानों का प्रतिनिधित्व करने वाले विशेषज्ञ इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ लीवर एंड बिलियरी साइंसेज ने कहा कि मोटापे की इस बढ़ती महामारी को नियंत्रित करने का एकमात्र तरीका हानिकारक अवयवों के लिए कट-ऑफ लिमिट और पैक किए गए उत्पादों पर फ्रंट ऑफ पैक लेबल (एफओपीएल) स्थापित करना है।बताया गया कि भारत एक ऐसा देश है जो कुछ समय पहले तक बच्चों की कुपोषण की समस्या से जूझ रहा था। भारत में बच्चों के मोटापे में लगातार वृद्धि का कारण आहार संबंधी आवश्यकताओं में बदलाव और फूड पैकेजिंग का अधिक उपयोग है। यह खाद्य उद्योग देश में रिकॉर्ड गति से बढ़ रहा है। इस प्रकार के शुगर युक्त पेय पदार्थों के उत्पादन में भारत विश्व के 5 वैश्विक बाजारों में से दूसरे नंबर पर है। विशेषज्ञों के अनुसार इस बात के प्रमाण मिल रहे हैं कि कोविड-19 महामारी के कारण बच्चों में मोटापे की समस्या आ सकती है। लाॅकडाउन के कारण स्कूल बंद हैं और लाखों बच्चे पौष्टिक भोजन, खेल-कूद और पर्याप्त शारीरिक व्यायाम से वंचित हो चुके हैं।उनका कहना है कि अधिक वजन या मोटापे का सीधा संबंध हृदय रोग, मधुमेह और कैंसर जैसी जानलेवा रोगों से है। इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स एनसीडी प्रिवेंशन एकेडमी की चेयरपर्सन डॉ. रेखा हरीश के अनुसार, मोटापा कैलोरी की खपत और खर्च की गई कैलोरी के बीच असंतुलन का परिणाम है। यह 21वीं सदी की सबसे गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौतियों के रूप में तेजी से उभर रहा है। अध्ययनों से पता चला है कि 75 से 80 प्रतिशत गंभीररूप से मोटे बच्चे वयस्कों के रूप में मोटे रहेंगे। भारत में कम से कम 15 प्रतिशत बच्चे मोटे या अधिक वजन वाले हैं।अब तक दुनियाभर के 11 देशों ने फ्रंट ऑफ पैकेजिंग लेबलिंग (एफओपीएल) को अनिवार्य बनाने वाले कानून बनाए हैं। 2018 में भारतीय खाद्य सुरक्षा मानक प्राधिकरण ने इसके लिए मसौदा विनियमन प्रकाशित किया, जिसे बाद में आगे के विचार-विमर्श के लिए वापस ले लिया गया। दिसंबर- 2019 में एफओपीएल को सामान्य लेबलिंग नियमों से अलग कर दिया। दिसंबर- 2020 में इस प्रक्रिया को फिर से शुरू किया, वर्तमान में भारत के स्वास्थ्य विशेषज्ञ भी इसकी मांग कर रहे हैं। एम्स ऋषिकेश में इस प्रोजेक्ट का संचालन कम्यूनिटी एवं फेमिली मेडिसिन विभाग के एसोशिएट प्रोफेसर डाॅ. प्रदीप अग्रवाल कर रहे हैं।
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