डर और घृणा के ख़िलाफ़ महिलाओं की आवाज़
देहरादून-महिला उत्पीड़न के खिलाफ महिला मार्च निकाला गया अपनी मांगों को लेकर महिलाएं लामबंद होते हुए गांधी पार्क से घंटाघर तक रैली में शामिल हुई।देश में घृणा और हिंसा से भरे मौजूदा वातावरण के ख़िलाफ़ और लोकतान्त्रिक व्यवस्था में एक नागरिक के तौर पर अपने संवैधानिक अधिकारों की माँग के लिए पूरे भारत में इस मार्च का उद्देश्य देश में महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों को निशाना बनाए जाने के ख़िलाफ़ असंतोष की आवाज़ को एकजुट करना है।देश में हिंसा की बढ़ोतरी और समाज में हिंसा के परिणामस्वरूप महिलाओं के जीवन पर गहरा असर पड़ा हैं. दलितों , ईसाइयों और ख़ासकर मुस्लिम अल्पसंख्यकों पर होते हमलों ने विभिन्न रूप अख़्तियार कर लिए हैं जिनमें फ़र्ज़ी मुठभेड़ और तथाकथित गौ - रक्षकों की भीड़ द्वारा हत्याएँ किया जाना शामिल है जिसने कुल मिलाकर समाज में भय और असुरक्षा का भाव ही पैदा किया है . समानता के लिए बुनियादी संवैधानिक प्रतिबद्धता और क़ानून के राज में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है . उनके नाज़ुक आर्थिक आधार तबाह हो गए हैं और पर्यावरण विनाश ने उन्हें बुरी तरह से प्रभावित किया है .पिछले कुछ बरसों में ख़ासकर अभिव्यक्ति की आज़ादी बोलने , लिखने ,खाने और चुनाव कर सकने की आज़ादी जिसने महिलाओं को असम्बद्ध रूप से प्रभावित किया है .
असंतोष के स्वरों को सिलसिलेवार तरीक़े से शांत कर दिया गया है। एक तरफ़ सुधा भारद्वाज , शोभा सेन और कई अन्य जेलों में बंद हैं तो दूसरी तरफ़ गौरी लंकेश जैसी महिलाओं को बोलने और अभिव्यक्ति के अपने अधिकारों की क़ीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी है। हमेशा इस बात को याद रखें कि जातिवादी, साम्प्रदायिक और विघटनकारी ताक़तों के ख़िलाफ़ हम एकजुट हों जिनसे हमारे देश के ताने - बाने को छिन्न - भिन्न कर दिए जाने का ख़तरा है . हमारा वोट हमारी और साथी देशवासियों की क़िस्मत का फ़ैसला करने के लिए निर्णायक रूप से महत्वपूर्ण है। महिलाओं और ट्रांसजेन्डरों की हर क्षेत्र में तत्काल आवश्यकता है। छात्र , एक्टिविस्ट , पेशेवर , घरेलू कामगार , शिक्षाविद , नौकरशाह , पत्रकार , वकील , सेक्स वर्कर , किसान और आदिवासी सभी को एकसाथ फासीवाद , हिंसा,घृणा , भेदभाव और युद्ध के ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ बुलंद करनी है। ज़रूरी हो गया है कि हम अपने गणतंत्र को फिर से हासिल करें।सबसे महत्वपूर्ण है कि अपने सिकुड़ते लोकतान्त्रिक दायरे और असंतोष पर अंकुश लगाने के ख़िलाफ़ हम मुखर हों.भारत में महिलाओं का मार्च उनके अलग - अलग समुदायों के लिए एक समावेशी मंच है जो उत्पीड़न की मौजूदा व्यवस्था को ख़त्म कर एक न्यायपूर्ण तथा शांतिपूर्ण भविष्य की दिशा में प्रयास करना चाहते हैं।यह एक राष्ट्रीय स्तर पर किया गया आह्वान है जिससे 4 अप्रैल को शहरों ,क़स्बों , ताल्लुका , गाँवों और जहाँ कहीं भी संभव हो वहाँ महिला मार्च आयोजित किया ।
असंतोष के स्वरों को सिलसिलेवार तरीक़े से शांत कर दिया गया है। एक तरफ़ सुधा भारद्वाज , शोभा सेन और कई अन्य जेलों में बंद हैं तो दूसरी तरफ़ गौरी लंकेश जैसी महिलाओं को बोलने और अभिव्यक्ति के अपने अधिकारों की क़ीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी है। हमेशा इस बात को याद रखें कि जातिवादी, साम्प्रदायिक और विघटनकारी ताक़तों के ख़िलाफ़ हम एकजुट हों जिनसे हमारे देश के ताने - बाने को छिन्न - भिन्न कर दिए जाने का ख़तरा है . हमारा वोट हमारी और साथी देशवासियों की क़िस्मत का फ़ैसला करने के लिए निर्णायक रूप से महत्वपूर्ण है। महिलाओं और ट्रांसजेन्डरों की हर क्षेत्र में तत्काल आवश्यकता है। छात्र , एक्टिविस्ट , पेशेवर , घरेलू कामगार , शिक्षाविद , नौकरशाह , पत्रकार , वकील , सेक्स वर्कर , किसान और आदिवासी सभी को एकसाथ फासीवाद , हिंसा,घृणा , भेदभाव और युद्ध के ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ बुलंद करनी है। ज़रूरी हो गया है कि हम अपने गणतंत्र को फिर से हासिल करें।सबसे महत्वपूर्ण है कि अपने सिकुड़ते लोकतान्त्रिक दायरे और असंतोष पर अंकुश लगाने के ख़िलाफ़ हम मुखर हों.भारत में महिलाओं का मार्च उनके अलग - अलग समुदायों के लिए एक समावेशी मंच है जो उत्पीड़न की मौजूदा व्यवस्था को ख़त्म कर एक न्यायपूर्ण तथा शांतिपूर्ण भविष्य की दिशा में प्रयास करना चाहते हैं।यह एक राष्ट्रीय स्तर पर किया गया आह्वान है जिससे 4 अप्रैल को शहरों ,क़स्बों , ताल्लुका , गाँवों और जहाँ कहीं भी संभव हो वहाँ महिला मार्च आयोजित किया ।
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