उत्तराखंड के वीर सपूतों ने युद्धों में अपने प्राणों की आहुति दी - यूकेडी
देहरादून – उत्तराखंड क्रांति दल का स्वर्गी इंद्रमणि बडोनी की प्रतिमा के नीचे एकदिवसीय धरने में बैठे नेताओं ने कहा कि भारत में विगत लगभग 40 वर्षो से आतंकवाद से जूझ रहा है।हमारी सेना और अर्ध सैनिक बल आतंकवाद के खिलाफ लड़ते -लड़ते अपनी जान को देश की रक्षा के लिए जान न्योछावर करते आ रहे है।देश की सीमा हो या आतंकवाद हो इस लड़ाई में हमारे वीर सैनिको की शहादत आम हिंदुस्तानी को झकजोर रही है।अभी हाल में हुए पुलवामा आतंकी हमले में हम ही नही बल्कि बाहरी देश भी निंदा कर रहे है।चाहे 1962 में चीन से, 1965 में पाकिस्तान,फिर 1971 पाकिस्तान चाहे कारगिल का युद्ध रहा हो उत्तराखंड ने सैकड़ो लाल इन युद्धों में खो दिए।उन वीर सैनिको की शहादत को कभी भुलाया नही जा सकता है।उत्तराखण्ड के वो वीर सपूत शहीद गबर सिंह तथा 1962 के युद्ध मे जसवंत सिंह की गाथा विश्व पटल पर विख्यात है।
आतंकवाद की लड़ाई में उत्तराखण्ड के वीर सैनिकों के बलिदान को सरकार अपनी सहानुभूति तो कर रही है लेकिन हकीकत है कि सब राजनीति से प्रेरित है।पुलवामा आतंकी हमले में 40 वीर सैनिक शहादत दे चुके है जो पेरा मिलट्री से है शहीद का दर्जा नही,इससे बड़ा अपमान क्या हो सकता है। पुलवामा शहीदों के नाम पर मोहल्लों के सड़को एवं चौराहों के नाम रखने की बात सरकार कर रही है चाहे निगम ही क्यो न हो।क्या हमारे इन शहीदों की स्मृतियों को यही तक रखे ये सोच और शहीदों की शहादत की इस राजनीति को अलग रखकर उत्तराखण्ड क्रान्ति दल मांग करता है कि देश की सीमा की रक्षा व आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ते हुए उत्तराखंड के वीर सैनिक जो शहीद हुए है उनके नाम पर सरकार जनकल्याणकारी योजना चलाई जाय।अभी हाल में हुए आतंकी हमले में उत्तराखण्ड के वीर सपूतों के नाम पर देहरादून में नव निर्मित फ्लाईओवर के नाम रखा जाय। देश की सुरक्षा व आतंकवाद के खिलाफ अर्द्ध सैनिक बल की शहादत को शहीद का दर्जा नही दिया जाता जबकि इन रणबांकुरों अपनी कुर्बानी देश के लिए दी।इसलिए केंद्र सरकार का अधिकार क्षेत्र है लेकिन राज्य सरकार इन शहीदों को शहीद का दर्जा दे व केंद्र सरकार को प्रस्ताव बनाकर भेजे।शहीद वीर सैनिको के लिए उनके परिवार को सरकार के द्वारा सहायता घोषणा पर अमल किया जाय वह घोषणा ही बनकर न रहे।
अर्ध सैनिक को सैनिक का दर्जा दिया जाय। धरने में बी०ड़ी० रतूड़ी, हरीश पाठक,लताफत हुसैन,पंकज व्यास,सुनील ध्यानी,शांति भट्ट, रेखा मिया,गीता बिष्ट,विजय बौड़ाई,समीर मुखर्जी,शैलेन्द्र पैन्यूली,आशीष गुप्ता आदि थे।।
आतंकवाद की लड़ाई में उत्तराखण्ड के वीर सैनिकों के बलिदान को सरकार अपनी सहानुभूति तो कर रही है लेकिन हकीकत है कि सब राजनीति से प्रेरित है।पुलवामा आतंकी हमले में 40 वीर सैनिक शहादत दे चुके है जो पेरा मिलट्री से है शहीद का दर्जा नही,इससे बड़ा अपमान क्या हो सकता है। पुलवामा शहीदों के नाम पर मोहल्लों के सड़को एवं चौराहों के नाम रखने की बात सरकार कर रही है चाहे निगम ही क्यो न हो।क्या हमारे इन शहीदों की स्मृतियों को यही तक रखे ये सोच और शहीदों की शहादत की इस राजनीति को अलग रखकर उत्तराखण्ड क्रान्ति दल मांग करता है कि देश की सीमा की रक्षा व आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ते हुए उत्तराखंड के वीर सैनिक जो शहीद हुए है उनके नाम पर सरकार जनकल्याणकारी योजना चलाई जाय।अभी हाल में हुए आतंकी हमले में उत्तराखण्ड के वीर सपूतों के नाम पर देहरादून में नव निर्मित फ्लाईओवर के नाम रखा जाय। देश की सुरक्षा व आतंकवाद के खिलाफ अर्द्ध सैनिक बल की शहादत को शहीद का दर्जा नही दिया जाता जबकि इन रणबांकुरों अपनी कुर्बानी देश के लिए दी।इसलिए केंद्र सरकार का अधिकार क्षेत्र है लेकिन राज्य सरकार इन शहीदों को शहीद का दर्जा दे व केंद्र सरकार को प्रस्ताव बनाकर भेजे।शहीद वीर सैनिको के लिए उनके परिवार को सरकार के द्वारा सहायता घोषणा पर अमल किया जाय वह घोषणा ही बनकर न रहे।
अर्ध सैनिक को सैनिक का दर्जा दिया जाय। धरने में बी०ड़ी० रतूड़ी, हरीश पाठक,लताफत हुसैन,पंकज व्यास,सुनील ध्यानी,शांति भट्ट, रेखा मिया,गीता बिष्ट,विजय बौड़ाई,समीर मुखर्जी,शैलेन्द्र पैन्यूली,आशीष गुप्ता आदि थे।।
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