दुर्लभं भारते जन्म, हिमालये तत्र दुर्लभं’’-सरस्वती
🕉लद्दाख- दो दिवसीय विराट हिमालय चिंतन शिखर वार्ता का शुभारम्भ लद्दाख में हुआ। जिसमें मुख्य अतिथि एवं प्रमुख वक्ता के रूप में स्वामी चिदानन्द सरस्वती, इमाम उमर अहमद इलियासी, भिक्खू संघसेना, साध्वी भगवती सरस्वती, डाॅ वन्दना शिवा, अनिल जोशी तथा अध्यात्म, विज्ञान, पर्यावरण जगत के शिखरस्थ वार्ताकारों डब्ल्यू डब्ल्यू एफ, सेना के आर्मी जनरल, विभिन्न धर्मो के धर्मगुरू एवं अनेक संस्थाओं ने सहभाग किया।विराट हिमालय चिंतन शिखर वार्ता को सम्बोधित करतेे हुये परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा, ’’हिमालय, भारत का माथा, मुकुट, ताज, प्रहरी, शिखर और रक्षा कवच है। जिस हिमालय ने हमें चिंतन करने के संस्कार, संस्कृति, सभ्यता, विरासत और गौरवशाली इतिहास दिया आज उसके लिये चिंता करने की अवश्यकता है। लद्दाख हो या गंगा का गोमुख के ग्लेश्यिर हो सभी स्थानों पर एक जैसी समस्यायें सामने आयी है।
क्लाइमेंट चेज के कारण हमारे ग्लेश्यिर पिघलते जा रहे है, कहीं बाढ़ है तो कहीं सूखा है और कहीं अत्यधिक वर्षा है। उन्होने कहा कि केदारनाथ की त्रासदी हो या केरल की बाढ़ सभी स्थानों पर लोग समस्याओं का सामना कर रहे है परन्तु इस समस्या का समाधान नहीं मिल पा रहा है। अब समय आया है कि हमें मिलकर इस समस्या का समाधान निकालना होगा क्योंकि ’समस्या हम है तो समाधान भी हम है’। उन्होने कहा कि हिमालय, नदियों एवं पर्यावरण संरक्षण कि दिशा में अनेक संस्थायें अपने-अपने स्तर पर कार्य कर रही है परन्तु अब सभी को मिलकर एक मंच से कार्य करना होगा। दुनिया में ऐसी कोई समस्या नहीं है जिसका समाधान न हो उन्होने सभी से आह्वान किया कि आईये मिलकर अपने विराट हिमालय को संरक्षित करे। हिमालय ने हमें 30 हजार करोड़ की वार्षिक मिट्टी, जल, शुद्ध प्राणवायु और जड़ी-बूटियाँ और उससे भी अधिक हिमालय ने हमेशा शत्रुओं से हमारी रक्षा की है। आज भी हिमालय भारत की ढाल बनकर खड़ा है। जीवन, जागृति और जीवटता प्रदान करने वाला हमारा हिमालय उपेक्षित न रहे अतः विशेष तौर पर हिमालय की छत्रछाया में भरण-पोषण करने वाले राज्य मिलकर हिमालय रूपी विराट अस्तित्व को संरक्षित और सुरक्षित रखे।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती एवं डाॅ अनिल जोशी ने सुझाव दिया कि 9 सितम्बर, हिमालय दिवस को पूरे देश में मनाया जाये तथा इसे अन्तर्राष्ट्रीय दिवस घोषित करने हेतु यूएनओ द्वारा स्वीकृति के लिये भी प्रयत्न किया जाये। स्वामी चिदानन्द सरस्वती के इस सुझाव को हिमालय चिंतन शिखर वार्ता में उपस्थित सभी ने स्वीकृति प्रदान की। स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि ’’दुर्लभं भारते जन्म, हिमालये तत्र दुर्लभं’’ भारत में जन्म लेना बहुत ही सौभाग्य की बात है लेकिन उससे भी दुर्लभ है हिमालय, में जन्म लेना परन्तु यह हमारा सौभाग्य है कि हमें यह अवसर प्राप्त हुआ। उन्होने कहा हिमालय हमारा प्रहरी है अब हमें हिमालय का प्रहरी बनना होगा क्योंकि हिमालय बचेगा तो हम बचेंगे, हिमालय बचेगा तो गंगा बचेगी, हिमालय है तो जल, जीवन और कल है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि केरल में जड़ी-बूटी और मसालों के कारण विश्व स्तरीय पर्यटन आकार ले रहा है और हमारे यहां पलायन आकार ले रहा है अतः क्याें न हम अपने यहां पर भी हिमालय की जड़ी-बूटियों का सही उपयोग करे ताकि पलायन भी रूकेगा और पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा।
ग्लोबल इण्टरफेथ वाश एलायंस की अन्तर्राष्ट्रीय महासचिव साध्वी भगवती सरस्वती ने कहा कि मैं जब भारत आयी तो मेरा सबसे पहला आकर्षण हिमालय और गंगा थी, उस
आकर्षण में मुझे सदा के लिये यहां बांध लिया। हिमालय चिंतन शिखर वार्ता में स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने वहां उपस्थित सभी लोगों को संकल्प कराया कि हम हिमालय के लिये सब मिलकर कार्य करेंगे, सभी ने खडे़ होकर दोनों हाथों को उठाकर संकल्प किया। उन्होने कहा कि ’’संघे शक्ति कलियुुगे’’ सभी मिलकर कार्य करे और अपने उन वैदिक मंत्रों को साकार करे ’संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम्।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने घोषणा की कि 9 सितम्बर हिमालय दिवस को गंगा के पावन तट पर परमार्थ निकेतन ऋषिकेश में मनाया जायेगा। जिसमें हेस्को, जीवा, गंगा एक्शन परिवार, परमार्थ निकेतन और अन्य संस्थायें मिलकर आयोजित करे हिमालय चिंतन शिखर वार्ता के समापन अवसर पर स्वामी चिदानन्द सरस्वती और मुख्य इमाम डाॅ इमाम उमर अहमद इलियासी ने मिलकर राष्ट्रगान गाया और इस मंच से शान्ति, एकता और भाईचारा का संदेश दिया। उन्होने कहा कि अगर हम मिलकर रहेगे तो दुनिया की कोई भी बुरी ताकत इस देश पर नहीं पड़ सकती है। हम सभी को मिलकर कार्य करना होगा मिलकर राष्ट्रगान गाना होगा तथा मिलकर राष्ट्र की एकता के लिये कार्य करना होगा
जम्मू कश्मीर की धरती पर यह एक अद्भुत नजारा था जब विभिन्न धर्मों के धर्माचार्यों एवं अनुयायियों ने मिलकर राष्ट्रगान गाया तो वहां का माहौल ही बदल गया। स्वामी जी महाराज ने कहा कि दिलों में शान्ति, बन्दूक की नोंक पर नहीं मिलती बल्कि शान्ति तो भारतीयता में, राष्ट्रगान में और राष्ट्रीय ध्वज के सम्मान में समाहित है। हथियार, दहशत तो पैदा कर सकते है परन्तु प्यार से उठा हाथ, शान्ति और अपनत्व का संदेश देता है आईये इसी संदेश के साथ आगे बढे़।
हिमालय चिंतन शिखर वार्ता में इमाम उमर अहमद इलियासी , भिक्खू संघसेना, हिमालय की बेटी डाॅ वन्दना शिवा, हेस्को के प्रमुख, अनिल जोशी, काॅप्र्स कमांडर, 14 कोर जनरल एस के उपाध्याय, मेजर जनरल यश मोर, जनरल आॅफिसर कमांडिंग, लेह सब ऐरिया, कर्नल एस के शर्मा, कमांडर, लद्दाख सकाउट्स रेजिमेंटल सेंटर, लेह, ब्रिगेड सोढ़ी, स्टेशन कमांडर लेह एवं सेना के अन्य अधिकारी, पर्यावरणविद् एवं विभिन्न धर्मांे के अनेक अतिथियों ने सहभाग किया।
क्लाइमेंट चेज के कारण हमारे ग्लेश्यिर पिघलते जा रहे है, कहीं बाढ़ है तो कहीं सूखा है और कहीं अत्यधिक वर्षा है। उन्होने कहा कि केदारनाथ की त्रासदी हो या केरल की बाढ़ सभी स्थानों पर लोग समस्याओं का सामना कर रहे है परन्तु इस समस्या का समाधान नहीं मिल पा रहा है। अब समय आया है कि हमें मिलकर इस समस्या का समाधान निकालना होगा क्योंकि ’समस्या हम है तो समाधान भी हम है’। उन्होने कहा कि हिमालय, नदियों एवं पर्यावरण संरक्षण कि दिशा में अनेक संस्थायें अपने-अपने स्तर पर कार्य कर रही है परन्तु अब सभी को मिलकर एक मंच से कार्य करना होगा। दुनिया में ऐसी कोई समस्या नहीं है जिसका समाधान न हो उन्होने सभी से आह्वान किया कि आईये मिलकर अपने विराट हिमालय को संरक्षित करे। हिमालय ने हमें 30 हजार करोड़ की वार्षिक मिट्टी, जल, शुद्ध प्राणवायु और जड़ी-बूटियाँ और उससे भी अधिक हिमालय ने हमेशा शत्रुओं से हमारी रक्षा की है। आज भी हिमालय भारत की ढाल बनकर खड़ा है। जीवन, जागृति और जीवटता प्रदान करने वाला हमारा हिमालय उपेक्षित न रहे अतः विशेष तौर पर हिमालय की छत्रछाया में भरण-पोषण करने वाले राज्य मिलकर हिमालय रूपी विराट अस्तित्व को संरक्षित और सुरक्षित रखे।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती एवं डाॅ अनिल जोशी ने सुझाव दिया कि 9 सितम्बर, हिमालय दिवस को पूरे देश में मनाया जाये तथा इसे अन्तर्राष्ट्रीय दिवस घोषित करने हेतु यूएनओ द्वारा स्वीकृति के लिये भी प्रयत्न किया जाये। स्वामी चिदानन्द सरस्वती के इस सुझाव को हिमालय चिंतन शिखर वार्ता में उपस्थित सभी ने स्वीकृति प्रदान की। स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि ’’दुर्लभं भारते जन्म, हिमालये तत्र दुर्लभं’’ भारत में जन्म लेना बहुत ही सौभाग्य की बात है लेकिन उससे भी दुर्लभ है हिमालय, में जन्म लेना परन्तु यह हमारा सौभाग्य है कि हमें यह अवसर प्राप्त हुआ। उन्होने कहा हिमालय हमारा प्रहरी है अब हमें हिमालय का प्रहरी बनना होगा क्योंकि हिमालय बचेगा तो हम बचेंगे, हिमालय बचेगा तो गंगा बचेगी, हिमालय है तो जल, जीवन और कल है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि केरल में जड़ी-बूटी और मसालों के कारण विश्व स्तरीय पर्यटन आकार ले रहा है और हमारे यहां पलायन आकार ले रहा है अतः क्याें न हम अपने यहां पर भी हिमालय की जड़ी-बूटियों का सही उपयोग करे ताकि पलायन भी रूकेगा और पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा।
ग्लोबल इण्टरफेथ वाश एलायंस की अन्तर्राष्ट्रीय महासचिव साध्वी भगवती सरस्वती ने कहा कि मैं जब भारत आयी तो मेरा सबसे पहला आकर्षण हिमालय और गंगा थी, उस
आकर्षण में मुझे सदा के लिये यहां बांध लिया। हिमालय चिंतन शिखर वार्ता में स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने वहां उपस्थित सभी लोगों को संकल्प कराया कि हम हिमालय के लिये सब मिलकर कार्य करेंगे, सभी ने खडे़ होकर दोनों हाथों को उठाकर संकल्प किया। उन्होने कहा कि ’’संघे शक्ति कलियुुगे’’ सभी मिलकर कार्य करे और अपने उन वैदिक मंत्रों को साकार करे ’संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम्।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने घोषणा की कि 9 सितम्बर हिमालय दिवस को गंगा के पावन तट पर परमार्थ निकेतन ऋषिकेश में मनाया जायेगा। जिसमें हेस्को, जीवा, गंगा एक्शन परिवार, परमार्थ निकेतन और अन्य संस्थायें मिलकर आयोजित करे हिमालय चिंतन शिखर वार्ता के समापन अवसर पर स्वामी चिदानन्द सरस्वती और मुख्य इमाम डाॅ इमाम उमर अहमद इलियासी ने मिलकर राष्ट्रगान गाया और इस मंच से शान्ति, एकता और भाईचारा का संदेश दिया। उन्होने कहा कि अगर हम मिलकर रहेगे तो दुनिया की कोई भी बुरी ताकत इस देश पर नहीं पड़ सकती है। हम सभी को मिलकर कार्य करना होगा मिलकर राष्ट्रगान गाना होगा तथा मिलकर राष्ट्र की एकता के लिये कार्य करना होगा
जम्मू कश्मीर की धरती पर यह एक अद्भुत नजारा था जब विभिन्न धर्मों के धर्माचार्यों एवं अनुयायियों ने मिलकर राष्ट्रगान गाया तो वहां का माहौल ही बदल गया। स्वामी जी महाराज ने कहा कि दिलों में शान्ति, बन्दूक की नोंक पर नहीं मिलती बल्कि शान्ति तो भारतीयता में, राष्ट्रगान में और राष्ट्रीय ध्वज के सम्मान में समाहित है। हथियार, दहशत तो पैदा कर सकते है परन्तु प्यार से उठा हाथ, शान्ति और अपनत्व का संदेश देता है आईये इसी संदेश के साथ आगे बढे़।
हिमालय चिंतन शिखर वार्ता में इमाम उमर अहमद इलियासी , भिक्खू संघसेना, हिमालय की बेटी डाॅ वन्दना शिवा, हेस्को के प्रमुख, अनिल जोशी, काॅप्र्स कमांडर, 14 कोर जनरल एस के उपाध्याय, मेजर जनरल यश मोर, जनरल आॅफिसर कमांडिंग, लेह सब ऐरिया, कर्नल एस के शर्मा, कमांडर, लद्दाख सकाउट्स रेजिमेंटल सेंटर, लेह, ब्रिगेड सोढ़ी, स्टेशन कमांडर लेह एवं सेना के अन्य अधिकारी, पर्यावरणविद् एवं विभिन्न धर्मांे के अनेक अतिथियों ने सहभाग किया।
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