मोरारी बापू पहुँचे परमार्थ निकेतन
ऋषिकेश- विश्व विख्यात श्रीराम कथा मर्मज्ञ सन्त मोरारी बापू परमार्थ निकेतन पहुँचे। परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष, गंगा एक्शन परिवार के प्रणेता एवं ग्लोबल इन्टरफेथ वाश एलायंस (जीवा) के संस्थापक-अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती की अगुवाई में आश्रम के सेवकों, आचार्यों तथा ऋषिकुमारों ने मोरारी बापू का दिव्य स्वागत एवं अभिनन्दन किया। स्वामी चिदानन्द सरस्वती और पूज्य मोरारी बापू ने अध्यात्म, सामाजिक, समरसता, सद्भाव, स्वच्छता एवं पर्यावरण संरक्षण जैसे अनेक विषयों पर विस्तृत चर्चा की। साथ ही स्वामी ने मोरारी बापू जी को किशनगंज, बिहार में सम्पन्न हुये एकता, समरसता और सद्भाव कार्यक्रम के विषय में जानकारी दी समाज में एकता और समरसता बनायें रखने के लिये उनसे सहयोग की भी प्रार्थना की। गंगा स्वच्छता एवं पर्यावरण संरक्षण के मुद्दों पर भी विशेष चर्चा हुई।मोरारी बापू ने स्वामी चिदानन्द सरस्वती द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न प्रकल्पों और परम तपस्वियों के क्षेत्र स्वर्गाश्रम से चलाए जा रहे क्रियाकलापों की सराहना की। हर दम क्रियाशील रहने वाले स्वामी के लिये मंगल कामना की। स्वामी ने उन्हे पुनः ऋषिकेश, रामकथा में आने का निमंत्रण दिया। साथ ही 2019 में प्रयागराज में होने वाले पवित्र महाकुम्भ के अवसर पर होने वाले पर्यावरण हितैषी जन जागरण अभियान एवं कार्यक्रम में उपस्थिति एवं आशीर्वाद हेतु उन्हें आमंत्रण दिया।
स्वामी ने बापूजी से गंगा, यमुना, गोमती सहित विभिन्न नदियों की स्वच्छता के अभियान में भी सक्रिय साथ देने का आह्वान किया।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने इस मौके पर कहा कि ऋषिकेश व हरिद्वार सहित उत्तराखण्ड के धार्मिक नगरों, चारों धामों पंच-प्रयागों में सड़कों पर गायों के निराश्रित रूप से घूमने को रोकने तथा विश्वविख्यात इन आध्यात्मिक नगरों को गन्दगी मुक्त करने की महती आवश्यकता है। गोधामों की स्थापना करके इस जरूरत को शीघ्र पूरा किया जा सकता है। उन्होंने विश्व के मूर्धन्य सन्त श्रीरामचरितमानस के प्रकाण्ड विद्वान श्री मोरारी बापू के सान्निध्य में उत्तराखण्ड हित के इन मुद्दों पर हुई चर्चा को महत्वपूर्ण बताया और कहा कि गोधामों व वेदधामों की स्थापना, गंगा किनारे जैविक शौचालयों के निर्माण तथा दोनों तटों पर जैविक खेती जैसे प्रयासों में सभी पूज्य संतो की सक्रियता एवं एकजुटता की आवश्यकता है।
स्वामी ने कहा कि विश्व की तमाम सभ्यताओं और संस्कृतियों का प्रादुर्भाव एवं विकास किसी न किसी नदी के तट पर हुआ है। नदियाँ हमेशा से ही किसी भी राष्ट्र की अर्थव्यवस्था का आधार स्तम्भ रही हैं। मानव-समाज सदा ही नदियों का ऋणी है। अतः इन पावन नदियों का जन्मदायिनी माता की भाँति सम्मान करना चाहिये। मानव-सभ्यता के विकास में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली इन नदियों को अवैज्ञानिक विकास का भयंकर दुष्परिणाम भी भुगतना पड़ा है।
वर्तमान समय में पर्यावरण प्रदूषण के कारण अनेकों नदियों का अस्तित्व समाप्त होने के कगार पर है। गंगा भी इससे अछूती नहीं है। नदियों के तटों पर विकसित हुए कल-कारखानों का अवशिष्ट तथा नगरों की गन्दगी लगातार प्रवाहित होने के कारण इनका अमृतमय जल लगातार प्रदूषित होता जा रहा है। अपने धारा के वेग से जन-समुदाय को जीवन देने वाली गंगा आज जीर्ण-शीर्ण हो गयी है। वर्षों से मानव-समाज का उद्धार करती चली आ रही गंगा आज अपने स्वयं के उद्धार के लिए निरीह अवस्था में स्वार्थी मनुष्यों का मुँह ताक रही है। अतः समाज को पर्यावरण संरक्षण के लिये जाग्रत करने हेेतु संत समाज को एक साथ आकर कार्य करना होगा।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने मोरारी बापू को पर्यावरण का प्रतीक रूद्राक्ष का पौधा भेंट किया।
स्वामी ने बापूजी से गंगा, यमुना, गोमती सहित विभिन्न नदियों की स्वच्छता के अभियान में भी सक्रिय साथ देने का आह्वान किया।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने इस मौके पर कहा कि ऋषिकेश व हरिद्वार सहित उत्तराखण्ड के धार्मिक नगरों, चारों धामों पंच-प्रयागों में सड़कों पर गायों के निराश्रित रूप से घूमने को रोकने तथा विश्वविख्यात इन आध्यात्मिक नगरों को गन्दगी मुक्त करने की महती आवश्यकता है। गोधामों की स्थापना करके इस जरूरत को शीघ्र पूरा किया जा सकता है। उन्होंने विश्व के मूर्धन्य सन्त श्रीरामचरितमानस के प्रकाण्ड विद्वान श्री मोरारी बापू के सान्निध्य में उत्तराखण्ड हित के इन मुद्दों पर हुई चर्चा को महत्वपूर्ण बताया और कहा कि गोधामों व वेदधामों की स्थापना, गंगा किनारे जैविक शौचालयों के निर्माण तथा दोनों तटों पर जैविक खेती जैसे प्रयासों में सभी पूज्य संतो की सक्रियता एवं एकजुटता की आवश्यकता है।
स्वामी ने कहा कि विश्व की तमाम सभ्यताओं और संस्कृतियों का प्रादुर्भाव एवं विकास किसी न किसी नदी के तट पर हुआ है। नदियाँ हमेशा से ही किसी भी राष्ट्र की अर्थव्यवस्था का आधार स्तम्भ रही हैं। मानव-समाज सदा ही नदियों का ऋणी है। अतः इन पावन नदियों का जन्मदायिनी माता की भाँति सम्मान करना चाहिये। मानव-सभ्यता के विकास में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली इन नदियों को अवैज्ञानिक विकास का भयंकर दुष्परिणाम भी भुगतना पड़ा है।
वर्तमान समय में पर्यावरण प्रदूषण के कारण अनेकों नदियों का अस्तित्व समाप्त होने के कगार पर है। गंगा भी इससे अछूती नहीं है। नदियों के तटों पर विकसित हुए कल-कारखानों का अवशिष्ट तथा नगरों की गन्दगी लगातार प्रवाहित होने के कारण इनका अमृतमय जल लगातार प्रदूषित होता जा रहा है। अपने धारा के वेग से जन-समुदाय को जीवन देने वाली गंगा आज जीर्ण-शीर्ण हो गयी है। वर्षों से मानव-समाज का उद्धार करती चली आ रही गंगा आज अपने स्वयं के उद्धार के लिए निरीह अवस्था में स्वार्थी मनुष्यों का मुँह ताक रही है। अतः समाज को पर्यावरण संरक्षण के लिये जाग्रत करने हेेतु संत समाज को एक साथ आकर कार्य करना होगा।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने मोरारी बापू को पर्यावरण का प्रतीक रूद्राक्ष का पौधा भेंट किया।
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