गैरसैंण राजधानी के समर्थन में निकाला मशाल जुलूस
देहरादून-- राज्य गठन के 17 साल बाद भी उत्तराखंड राज्य को अब तक स्थाई राजधानी नसीब नहीं हुई है , उत्तराखंड की स्थाई राजधानी गैरसैण को घोषित न किये जाने से आक्रोशित उत्तराखण्ड की जनता का गुस्सा अब सडकों पर मशाल बन कर धधकने लगा है।इसका एक नजारा 17 फरवरी की शाम को नेताओं व नौकरशाही की ऐशगाह बनी देहरादून में देखने को मिला। 9 फरवरी को संसद की चैखट पर उत्तराखण्डियों द्वारा प्रधानमंत्री मोदी से राजधानी गैरसैंण घोषित करने के लिए किये गये संसद कूच की गूंज से परेशान उत्तराखण्ड की सरकार संभल भी नहीं पाई थी कि देहरादून में गैरसैण
राजधानी निर्माण अभियान के बैनर तले संयुक्त तौर पर दर्जनों सामाजिक संगठनों ने गाँधी पार्क से शहीद स्मारक स्थल तक विशाल मशाल जुलूस निकाला। सैकडों मशाले हाथ में ले कर, जनगीतों व राजधानी गैरसैंण निर्माण के गगनभेदी नारे लगाते हुए जलसैलाब ने कूच किया तो लोगों के जेहन में राज्य गठन आंदोलन की यादें ताजा हो गयी। इस मशाल जुलूस में आंदोलनकारियों ने सरकार को दो टूक चेतावनी दी कि बजट सत्र में राजधानी गैरसैंण को घोषित करें नहीं तो जनता ऐसे निकम्मी सरकार को राजधानी गैरसैंण घोषित कराने के लिए राज्य गठन के आंदोलन की तर्ज पर व्यापक जनांदोलन छेड़ेगी।इस मशाल जुलूस में राज्य गठन आंदोलन के शहीदों के सपनों को साकार करने की राजधानी गैरसैंण बनाने के लिए उत्तराखंड आंदोलन की तरह व्यापक जनांदोलन छेड़ने का संकल्प लिया गया। आंदोलनकारियों ने इस बात के लिए अभी तक की भाजपा व कांग्रेस की सरकारों की कड़ी भर्त्सना की.देहरादून में सत्ता और प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा कुण्डली मार कर बैठे रहने से उत्तराखण्ड के सीमान्त व पर्वतीय जनपद आज शिक्षा, रोजगार व स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित होने के कारण पलायन के दंश से मर्माहित हैं, जिन्होने अपने चहुंमुखी विकास, सम्मान व हक हकूकों की रक्षा के लिए अभिभाजित राज्य की के अमानवीय सरकारों के दमन सह कर भी राज्य आंदोलन को जीवंत रख कर राज्य गठन को मजबूर किया। सीमान्त व पर्वतीय जनपदों की देहरादून में कुण्डली मार कर बैठे नेताओं व नौकरशाहों ने अपनी अय्याशी के लिए उत्तराखंड की जनांकांक्षाओं, शहीदों के सपनो व राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रतीक गैरसैंण को राजधानी न बनाकर देश व प्रदेश के हितों पर कुठाराघात किया है। अन्य पर्वतीय एवं हिमालयी राज्यों की राजधानी पर्वतीय क्षेत्र में स्थित है। अब जब गैरसैंण विधानसभा में शीतकालीन, ग्रीष्मकालीन सत्र आयोजित होने के बाद अब बजट सत्र भी आयोजित हो रहा है तो ऐसे में क्यों प्रदेश के हुक्मरान जनभावनाओं, के अनुरूप गैरसैंण को राजधानी घोषित नहीं कर रहे है।मशाल जुलूस में भाग लेने वाले सामाजिक संगठनों में जहां देहरादून सहित उत्तराखण्ड की अलकनंदा पिंडर घाटी विकास समिति, वीर चंद्र सिंह गढ़वाली विकास समिति, पर्वतीय विकास मंच, बद्री केदार विकास समिति, उत्तराखंड आंदोलनकारी मंच, विभिन्न छात्र संगठन, अखिल गढ़वाल सभा, नैनीडांडा विकास समिति, उत्तराखंड रैफरी फुटबॉल एसोसिएशन, उत्तराखंड जनमंच, उत्तराखंड बैंक एसोसिएशन, नव भारत संघ, अपना परिवार, कूर्माचल विकास परिषद्, गढ़ सेना, पूर्व सैनिक अर्ध सैनिक संगठन, ग्यारह गांव हिंदवाण, डांडी काणठी क्लब, धाद संस्था, मैती संस्था, उत्तराखंड नव निर्माण मंच, उफ्तारा संस्था, उत्तराखंड फुटबॉल अकादमी के अलावा दिल्ली की सबसे बडी सामाजिक संगठन उत्तराखंड एकता मंच दिल्ली ने मशाल जुलूस में भागेदारी निभाई।
गैरसैण राजधानी निर्माण अभियान के रघुबीर बिष्ट, सचिन थपलियाल, देवसिंह रावत, रविंद्र जुगरान, पी. सी. थपलियाल, हेमा देवराड़ी , प्रदीप कुकरेती, लक्ष्मी प्रसाद थपलियाल, मोहन रावत उत्तराखंडी, अनिल पंत, बी एस. रावत, जगमोहन मेहंदीरत्ता, जयदीप सकलानी, पुष्कर नेगी, पुरूषोत्तम भट्, लूसुन टोडरिया, अनिल रावत, विकास नेगी, विजय बौड़ाई, कैलाश जोशी, कमल रजवार, ललित जोशी, महेंद्र रावल,ट, सूरवीर राणा, अनिल पंत, दिगमोहन नेगी, सुरेन्द्र हालसी, शशिमोहन कोटनाला, अभिराज शर्मा आदि बड़ी संख्या में छात्रों, नौजवानों, महिलाओं, पत्रकारों, रंगकर्मियों ने प्रमुखता से भाग लिया।
राजधानी निर्माण अभियान के बैनर तले संयुक्त तौर पर दर्जनों सामाजिक संगठनों ने गाँधी पार्क से शहीद स्मारक स्थल तक विशाल मशाल जुलूस निकाला। सैकडों मशाले हाथ में ले कर, जनगीतों व राजधानी गैरसैंण निर्माण के गगनभेदी नारे लगाते हुए जलसैलाब ने कूच किया तो लोगों के जेहन में राज्य गठन आंदोलन की यादें ताजा हो गयी। इस मशाल जुलूस में आंदोलनकारियों ने सरकार को दो टूक चेतावनी दी कि बजट सत्र में राजधानी गैरसैंण को घोषित करें नहीं तो जनता ऐसे निकम्मी सरकार को राजधानी गैरसैंण घोषित कराने के लिए राज्य गठन के आंदोलन की तर्ज पर व्यापक जनांदोलन छेड़ेगी।इस मशाल जुलूस में राज्य गठन आंदोलन के शहीदों के सपनों को साकार करने की राजधानी गैरसैंण बनाने के लिए उत्तराखंड आंदोलन की तरह व्यापक जनांदोलन छेड़ने का संकल्प लिया गया। आंदोलनकारियों ने इस बात के लिए अभी तक की भाजपा व कांग्रेस की सरकारों की कड़ी भर्त्सना की.देहरादून में सत्ता और प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा कुण्डली मार कर बैठे रहने से उत्तराखण्ड के सीमान्त व पर्वतीय जनपद आज शिक्षा, रोजगार व स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित होने के कारण पलायन के दंश से मर्माहित हैं, जिन्होने अपने चहुंमुखी विकास, सम्मान व हक हकूकों की रक्षा के लिए अभिभाजित राज्य की के अमानवीय सरकारों के दमन सह कर भी राज्य आंदोलन को जीवंत रख कर राज्य गठन को मजबूर किया। सीमान्त व पर्वतीय जनपदों की देहरादून में कुण्डली मार कर बैठे नेताओं व नौकरशाहों ने अपनी अय्याशी के लिए उत्तराखंड की जनांकांक्षाओं, शहीदों के सपनो व राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रतीक गैरसैंण को राजधानी न बनाकर देश व प्रदेश के हितों पर कुठाराघात किया है। अन्य पर्वतीय एवं हिमालयी राज्यों की राजधानी पर्वतीय क्षेत्र में स्थित है। अब जब गैरसैंण विधानसभा में शीतकालीन, ग्रीष्मकालीन सत्र आयोजित होने के बाद अब बजट सत्र भी आयोजित हो रहा है तो ऐसे में क्यों प्रदेश के हुक्मरान जनभावनाओं, के अनुरूप गैरसैंण को राजधानी घोषित नहीं कर रहे है।मशाल जुलूस में भाग लेने वाले सामाजिक संगठनों में जहां देहरादून सहित उत्तराखण्ड की अलकनंदा पिंडर घाटी विकास समिति, वीर चंद्र सिंह गढ़वाली विकास समिति, पर्वतीय विकास मंच, बद्री केदार विकास समिति, उत्तराखंड आंदोलनकारी मंच, विभिन्न छात्र संगठन, अखिल गढ़वाल सभा, नैनीडांडा विकास समिति, उत्तराखंड रैफरी फुटबॉल एसोसिएशन, उत्तराखंड जनमंच, उत्तराखंड बैंक एसोसिएशन, नव भारत संघ, अपना परिवार, कूर्माचल विकास परिषद्, गढ़ सेना, पूर्व सैनिक अर्ध सैनिक संगठन, ग्यारह गांव हिंदवाण, डांडी काणठी क्लब, धाद संस्था, मैती संस्था, उत्तराखंड नव निर्माण मंच, उफ्तारा संस्था, उत्तराखंड फुटबॉल अकादमी के अलावा दिल्ली की सबसे बडी सामाजिक संगठन उत्तराखंड एकता मंच दिल्ली ने मशाल जुलूस में भागेदारी निभाई।
गैरसैण राजधानी निर्माण अभियान के रघुबीर बिष्ट, सचिन थपलियाल, देवसिंह रावत, रविंद्र जुगरान, पी. सी. थपलियाल, हेमा देवराड़ी , प्रदीप कुकरेती, लक्ष्मी प्रसाद थपलियाल, मोहन रावत उत्तराखंडी, अनिल पंत, बी एस. रावत, जगमोहन मेहंदीरत्ता, जयदीप सकलानी, पुष्कर नेगी, पुरूषोत्तम भट्, लूसुन टोडरिया, अनिल रावत, विकास नेगी, विजय बौड़ाई, कैलाश जोशी, कमल रजवार, ललित जोशी, महेंद्र रावल,ट, सूरवीर राणा, अनिल पंत, दिगमोहन नेगी, सुरेन्द्र हालसी, शशिमोहन कोटनाला, अभिराज शर्मा आदि बड़ी संख्या में छात्रों, नौजवानों, महिलाओं, पत्रकारों, रंगकर्मियों ने प्रमुखता से भाग लिया।
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