कोरियाई दल पहुंच देवसंस्कृति में भारतीय संस्कृति से हुआ रूबरू
हरिद्वार -दक्षिण कोरिया का तीस सदस्यीय दल देवसंस्कृति विश्वविद्यालय पहुंचा। जिसका प्रमुख लक्ष्य भारतीय संस्कृति की प्राचीन एवं मूलभूत अवधारणा को जानना, योगाभ्यास के माध्यम से शारीरिक व मानसिक दृढ़ता को जीवन में अपनाना है। मेहमानों को भारतीय संस्कृति, योग व आयुर्वेद के प्रशिक्षण व मार्गदर्शन के लिए योग विभाग तथा सांस्कृतिक प्रकोष्ठ से जुड़े आचार्यों की अलग-अलग टीम बनाई गयी थी।
दल को संबोधित करते हुए देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति डॉ. चिन्मय पण्ड्या ने कहा कि भारतीय ऋषियों ने योग व ध्यान के माध्यम से कई सिद्धियाँ प्राप्त की थी। साथ ही वे आयुर्वेद के माध्यम से अपने स्वास्थ्य को सुदृढ़ बनाये रखते थे। आज भी इनकी महत्ता कायम है। जरुरत है तो केवल विश्वास के साथ व्यावहारिक जीवन में उतारने की। उन्होंने देवसंस्कृति विश्वविद्यालय की अवधारणाओं, संकल्पनाओं से मेहमानों को अवगत कराया। इस अवसर पर प्रतिकुलपति डॉ. पण्ड्या ने दक्षिण कोरियाई दल को युगसाहित्य एवं उपवस्त्र भेंटकर सम्मानित किया।अपने संदेश में कुलाधिपति श्रद्धेय डॉ. प्रणव पण्ड्या ने कहा कि भारतीय संस्कृति सार्वभौमिक सत्यों पर खड़ी है और इसी कारण वह सब ओर गतिशील होती है। कोई भी संस्कृति की अमरता इस बात पर भी निर्भर करती है कि वह कितनी विकासोन्मुखी है।अपने प्रवास के दौरान दक्षिण कोरियाई दल विश्वविद्यालय के विभिन्न प्रकल्पों का भ्रमण कर भारतीय संस्कृति, योग, आयुर्वेद, स्वावलंबन, रीसाइक्लिंग, गौशाला में औषधि निर्माण आदि का अध्ययन किया। मेहमानों को डॉ. अरुणेश पाराशर, डॉ. उमाकांत इंदौलिया की टीम ने भ्रमण कराया।
दल को संबोधित करते हुए देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति डॉ. चिन्मय पण्ड्या ने कहा कि भारतीय ऋषियों ने योग व ध्यान के माध्यम से कई सिद्धियाँ प्राप्त की थी। साथ ही वे आयुर्वेद के माध्यम से अपने स्वास्थ्य को सुदृढ़ बनाये रखते थे। आज भी इनकी महत्ता कायम है। जरुरत है तो केवल विश्वास के साथ व्यावहारिक जीवन में उतारने की। उन्होंने देवसंस्कृति विश्वविद्यालय की अवधारणाओं, संकल्पनाओं से मेहमानों को अवगत कराया। इस अवसर पर प्रतिकुलपति डॉ. पण्ड्या ने दक्षिण कोरियाई दल को युगसाहित्य एवं उपवस्त्र भेंटकर सम्मानित किया।अपने संदेश में कुलाधिपति श्रद्धेय डॉ. प्रणव पण्ड्या ने कहा कि भारतीय संस्कृति सार्वभौमिक सत्यों पर खड़ी है और इसी कारण वह सब ओर गतिशील होती है। कोई भी संस्कृति की अमरता इस बात पर भी निर्भर करती है कि वह कितनी विकासोन्मुखी है।अपने प्रवास के दौरान दक्षिण कोरियाई दल विश्वविद्यालय के विभिन्न प्रकल्पों का भ्रमण कर भारतीय संस्कृति, योग, आयुर्वेद, स्वावलंबन, रीसाइक्लिंग, गौशाला में औषधि निर्माण आदि का अध्ययन किया। मेहमानों को डॉ. अरुणेश पाराशर, डॉ. उमाकांत इंदौलिया की टीम ने भ्रमण कराया।
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