अपनी भाषा का सम्‍मान आवश्‍यक है, क्‍योंकि भाषा के साथ संस्‍कृति भी चलती है -उषा वधवा

देहरादून-भारतीय पेट्रोलियम संस्‍थान  में एक सितंबर से चली आ रही हिंदी माह-2017 की गतिविधियों का समापन समारोह आयोजित किया गया। दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का विधिवत उद्घाटन करती समारोह की मुख्‍य अतिथि, हिंदी साहित्‍यकार उषा वधवा ने अपने हिंदी सीखने से लेकर हिंदी लेखन में सक्रिय होने की यात्रा पर प्रकाश डाला और कहा कि गांधी  ने 1914 में ही कहा था कि हिंदी जन-मानस की भाषा है । इसका विश्‍व में तीसरा स्‍थान है । अत: इसके प्रयोग में ईमानदारी होनी चाहिए, मात्र रस्‍म अदायगी नहीं। हिंदी कई भाषाओं-बोलियों, यहां तक कि भारत में बाहरी  आक्रांताओं की शब्‍दावली से भी पुष्‍ट हुई है, क्‍योंकि भाषा एक बहती हुई नदी है,  जो सभी को समेट कर चलती है । विदेशी व देशी भाषाओं की शब्‍दावली से समृद्ध होकर हिंदी अपने आधुनिक रूप में है । समय के साथ-साथ तकनीक के विस्‍तार से इसमें परिवर्तन अवश्‍यंभावी है । इसमें तकनीकी शब्‍दों का अनुवाद न कर इन्‍हें जस-का-तस अपनाया जाना चाहिए । किंतु खिचड़ी भाषा से बचकर भाषा का शुद्व रूप अपनाया जाना चाहिए । अपनी भाषा का सम्‍मान आवश्‍यक है, क्‍योंकि भाषा के साथ संस्‍कृति भी चलती है । संस्‍कृति को भूलना नहीं चाहिए । देश में आपसी संपर्क व आपसी भावनाओं के आदान-प्रदान के लिए एक सामान्‍य भाषा आवश्‍यक है , और यह कार्य  हिंदी करती है ।इससे पूर्व कार्यक्रम का संचालन करते हुए उषा वधवा  का परिचय  एम सी रतूडी़, वरिष्‍ठ हिंदी अधिकारी ने दिया । डॉ अंजन रे, निदेशक, सीएसआइआर-भापेसं ने अपने स्‍वागत भाषण में साहित्‍य व कलाओं में रूचि के लिए परिवार के वातावरण को महत्‍वपूर्ण बताया ।मुख्‍यअतिथि ने इस अवसर पर हिंदी माह की गतिविधियों के रूप में आयोजित विभिन्‍न प्रतियोगिताओं के विजेताओं के साथ ही अपना सरकारी काम-काज मूल रूप से हिंदी में  करने वाले कर्मचारियों को भी पुरस्‍कृत किया । समारोह का समापन  जसवंत राय, प्रशासन नियंत्रक के धन्‍यवाद- प्रस्‍ताव के साथ हुआ । इस अवसर पर उषा  वधवा के कथा-संग्रह ‘ऐसा क्‍यों है’ को भी इच्‍छुक पाठकों को उपलब्‍ध कराया गया । कार्यक्रम के संचालन में राजभाषा अनुभाग के  देवेन्‍द्र राय व तिलक कुमार का विशेष सहयोग रहा ।

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