प्लाज्मा दान करना दाता के लिए पूरी तरह से सुरक्षित

ऋषिकेश–कोरोना वायरस कोविड -19 महामारी वर्तमान में मानव जाति की सबसे बड़ी दुश्मन बन चुकी हैं।जिसके खिलाफ संपूर्ण विश्व लड़ रहा है। हालांकि समाज में कोविड-19 से स्वस्थ हुए लोगों को "कोरोना वाॅरियर्स " के नाम से संबोधित किया जाने लगा है और कर रहे हैं।मगर उनकी कोरोना वायरस के विरुद्ध यह लड़ाई अस्पताल से छुट्टी मिलने के साथ समाप्त नहीं होनी चाहिए।
ऐसे में कोविड संक्रमण से उपचार के बाद मुक्त हुए लोग प्लाज्मा दान करके गंभीर रोगियों की बीमारी में मदद कर सकते हैं।जिसे "कॉनवेलेसेंट प्लाज्मा थेरेपी" के नाम से जाना जाता है।शुक्रवार को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स  के रक्तकोष विभाग के तत्वावधान में एक विशेष परामर्श सत्र का आयोजन किया गया, जिसमें कोविड -19 बीमारी से उबर चुके छह व्यक्तियों को खासतौर से शामिल किया गया। यह सभी लोग एम्स के हेल्थ केयर वर्कर हैं।
जिसमें एक चिकित्सक व अन्य पांच नर्सिंग ऑफिसर हैं। परामर्श सत्र में एम्स संस्थान के विशेषज्ञ चिकित्सकों द्वारा उन्हें इस प्रक्रिया के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई। इस दौरान कोविड संक्रमण से मुक्त हुए सभी छह लोगों ने जरूरतमंद रोगियों के लिए प्लाज्मा दान करने पर अपनी सहमति जताई। इस अवसर पर एम्स निदेशक पद्मश्री प्रोफेसर रवि कांत ने कोविड19 संक्रमण से उबरने वाले लोगों से कहा कि जिन एंटीबॉडीज ने आपको कोविड -19 से जीतने में मदद की, अब दान किए गए प्लाज्मा से मिलने वाले एंटीबॉडी से गंभीर बीमारी वाले रोगियों की मदद की जाएगी। ​उन्होंने कहा कि  आप लोग सिर्फ प्लाज्मा डोनर ही नहीं हैं बल्कि "लाइफ डोनर" हैं।
एम्स निदेशक पद्मश्री प्रोफेसर रवि कांत ने कहाकि कॉनवेलेसेंट प्लाज्मा एंटीबॉडी प्रदान करने का काम करता है, जो संक्रमित व्यक्तियों में वायरस को बेअसर करता है। उन्होंने बताया कि जब कोई व्यक्ति किसी भी सूक्ष्म जीव से संक्रमित हो जाता हैं। तो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली इसके खिलाफ लड़ने के लिए एंटीबॉडी का उत्पादन करने का काम करती है। यह एंटीबॉडीज बीमारी से उबरने की दिशा में अपनी संख्याओं में वृद्धि करती  हैं। और वांछनीय स्तरों तक वायरस के गायब होने तक अपनी संख्या में सतत वृद्धि जारी रखती हैं। निदेशक प्रो. रवि कांत ने बताया कि पहले से संक्रमित होकर स्वस्थ हुए व्यक्ति में निर्मित एंटीबॉडी, एक रोगी में सक्रिय वायरस को बेअसर कर देगा, साथ ही उसकी रिकवरी में तेजी लाने में मदद करेगा।
इस अवसर पर ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन एंड ब्लड बैंक विभागाध्यक्ष डा. गीता नेगी ने कहा कि कोई भी कोरोना संक्रमित व्यक्ति जो नेगेटिव आ चुका हो, वह नेगेटिव आने के 28 दिन बाद प्लाज्मा डोनेट कर सकता है। जिसके लिए एक एंटीबॉडी टेस्ट किया जाएगा तथा रक्त में एंटीबॉडी का लेवल देखा जाएगा। यह एंटीबॉडी प्लाज़्माफेरेसिस नामक एक प्रक्रिया द्वारा प्लाज्मा के साथ एकत्र किए जाते हैं। इस प्रक्रिया में, पहले से संक्रमित होकर स्वस्थ हुए व्यक्ति का पूरा रक्त प्लाज्मा तथा अन्य घटक एफेरेसिस मशीन द्वारा अलग किया जाता है। प्लाज़्मा (एंटीबॉडी युक्त) को कॉनवेलेसेंट प्लाज़्मा के रूप में एकत्र किया जाता है और अन्य लाल रक्त कोशिकाएं, श्वेत रक्त कोशिकाएं और प्लेटलेट्स जैसे अन्य घटक प्रक्रिया के दौरान रक्तदाता में वापस आ जाते हैं। इस प्रक्रिया द्वारा प्लाज्मा दान करना दाता के लिए पूरी तरह से सुरक्षित हैं।उन्होंने बताया कि इससे उसके स्वास्थ्य पर कोई असर नहीं पड़ता है।इस सत्र में संकायाध्यक्ष शैक्षणिक प्रो. मनोज गुप्ता, डीन हॉस्पिटल अफेयर्स प्रो. यूबी. मिश्रा, उप चिकित्सा अधीक्षक डॉ. अनुभा अग्रवाल, डॉ. दलजीत कौर, डॉ. आशीष जैन, नोडल ऑफिसर डॉ. पीके पांडा, डा. एके सेंगर,अखिल, डॉ. पनदीप कौर, डॉ.  ईश्वर प्रसाद, डॉ. सारिका अग्रवाल, सुश्री अंजू ढौंडियाल आदि ने प्रतिभाग लिया ।

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