जलाशयों के निर्माण के लिए नाबार्ड को आगे आना चाहिए-मुख्यमंत्री
देहरादून–एक स्थानीय होटल में नाबार्ड द्वारा स्टेट क्रेडिट सेमिनार 2020-21 का आयोजन में मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कहा है कि पर्वतीय खेती के लिए सिंचाई की सुविधा पर ध्यान केंद्रित करना होगा। इसके लिए जलाशय विकसित करने हांगे। क्लस्टर आधारित खेती और जैविक उत्पादों के सर्टिफिकेशन की व्यवस्था भी किसानों की आय को बढ़ाने के लिए बहुत जरूरी है। मुख्यमंत्री एक स्थानीय होटल में नाबार्ड द्वारा आयोजित स्टेट क्रेडिट सेमिनार 2020-21 में सम्बोधित कर रहे थे।मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखण्ड भौगोलिक विषमताओं वाला प्रदेश है।
पर्वतीय खेती अधिकांशतः असिंचित है। लिफ्ट सिंचाई बहुत खर्चीली होती है। इसलिए ग्रेविटी आधारित पेयजल व सिंचाई के लिए पानी की आपूर्ति के लिए जलाशयों का निर्माण जरूरी है। सूखते जलस्त्रोतों को देखते हुए वर्षा जल संचयन महत्वपूर्ण है। नदियों के पुनर्जीवन के लिए भी जलाशय आवश्यक हैं। राज्य सरकार ने इस दिशा में शुरूआत की है। पिथौरागढ़, चम्पावत, अल्मोड़ा, पौड़ी, चमोली, देहरादून आदि जिलों में जलाशय व झीलें विकसित की जा रही हैं। इसका आने वाले समय में बहुत फायदा होगा। इन जलाशयों के निर्माण की फंडिंग के लिए नाबार्ड को आगे आना चाहिए।मुख्यमंत्री ने कहा कि किसानों की आय को बढ़ाने और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए बहुत सी कोशिशें प्रारम्भ की गई है।
किसानों को व्यक्तिगत रूप से 1 लाख तक व समूह को 5 लाख तक का कृषि ऋण बिना ब्याज के उपलब्ध कराया जा रहा है।कृषि मंत्री सुबोध उनियाल ने कहा कि वर्तमान राज्य सरकार ने खेती के क्षेत्र में कई पहल की है। यही कारण है लगातार दो बार कृषि कर्मण पुरस्कार सहित पिछले 2 वर्षों में 6 पुरस्कार उत्तराखण्ड को मिले हैं। आर्गेनिक खेती में हम काफी आगे बढ़ चुके हैं।इंटीग्रेटेड एग्रीकल्चर से बढ़ेगी किसानों की आय,हार्टीकल्चर के लिए काश्तकारों को मिले मध्यम व दीर्घ अवधि के ऋण उपलब्ध कराने होंगे। पर्वतीय क्षेत्रों में नहरों की मरम्मत और जंगली जानवरों से बचाने के लिए खेतों की फेंसिंग भी जरूरी है। किसानों के उत्पाद खराब न हों, इसके लिए शीतगृहों की व्यवस्था करनी होगी। ऐसी व्यवस्था भी करनी होगी जिससे किसानों को उनके उत्पादों की अच्छी कीमत मिले। राज्य सरकार ने इसके लिए कोशिशें शुरू की हैं। घाटियों को उत्पाद विशेष की घाटी के तौर पर विकसित करने के प्रयास कर रहे हैं। नाबार्ड के मुख्य महाप्रबंधक सुनील चावला ने बताया कि वर्ष 2020-21 के लिए नाबार्ड द्वारा उत्तराखण्ड की प्राथमिकता क्षेत्र हेतु कुल ऋण सम्भाव्यता 24,656 करोड़ रूपए आंकलित की गई है। जबकि वर्ष 2019-20 में यह 23,423 करोड़ रूपए थी। इस वर्ष के स्टेट फोकस पेपर का विषय ‘उच्च तकनीकी से कृषि’ है। उच्च तकनीक वाली कृषि भविष्य की कृषि है जिसमें जैव विविधता और जैव-प्रौद्योगिकी द्वारा संचालित बीज रोपण सामग्री आौर अन्य बेहतर इनपुट शामिल होंगे, जो सूक्ष्म सिंचाई, पर्यावरण के अनुकूल स्वचालन और मशीनीकरण, नैनो तकनीक के उपयोग, जलवायु पूर्वानुमान, जीपीएस, रोबोट, पायलट रहित ट्रैक्टर, ड्रोन और अन्य मशीनरी और कृषि के लिए सामान्य उपकरण, संरक्षित कृषि, मृदा रहित शहरी खेती, हाईड्रोपोनिक्स, एरोपोनिक्स, एक्वापोनिक्स, किसानों की आय बढ़ाने के लिए आई-टेक ग्रीनहाउस पर बल देती है।
कार्यक्रम में स्टेट कापरेटिव बैंक के अध्यक्ष दान सिंह रावत, सचिव आर मीनाक्षी सुन्दरम, रिजर्व बैंक के क्षेत्रिय निदेशक राजेश कुमार सहित विभिन्न बैंकों, एनजीओ, स्वयं सहायता समूहों के प्रतिनिधि उपस्थित थे।
पर्वतीय खेती अधिकांशतः असिंचित है। लिफ्ट सिंचाई बहुत खर्चीली होती है। इसलिए ग्रेविटी आधारित पेयजल व सिंचाई के लिए पानी की आपूर्ति के लिए जलाशयों का निर्माण जरूरी है। सूखते जलस्त्रोतों को देखते हुए वर्षा जल संचयन महत्वपूर्ण है। नदियों के पुनर्जीवन के लिए भी जलाशय आवश्यक हैं। राज्य सरकार ने इस दिशा में शुरूआत की है। पिथौरागढ़, चम्पावत, अल्मोड़ा, पौड़ी, चमोली, देहरादून आदि जिलों में जलाशय व झीलें विकसित की जा रही हैं। इसका आने वाले समय में बहुत फायदा होगा। इन जलाशयों के निर्माण की फंडिंग के लिए नाबार्ड को आगे आना चाहिए।मुख्यमंत्री ने कहा कि किसानों की आय को बढ़ाने और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए बहुत सी कोशिशें प्रारम्भ की गई है।
किसानों को व्यक्तिगत रूप से 1 लाख तक व समूह को 5 लाख तक का कृषि ऋण बिना ब्याज के उपलब्ध कराया जा रहा है।कृषि मंत्री सुबोध उनियाल ने कहा कि वर्तमान राज्य सरकार ने खेती के क्षेत्र में कई पहल की है। यही कारण है लगातार दो बार कृषि कर्मण पुरस्कार सहित पिछले 2 वर्षों में 6 पुरस्कार उत्तराखण्ड को मिले हैं। आर्गेनिक खेती में हम काफी आगे बढ़ चुके हैं।इंटीग्रेटेड एग्रीकल्चर से बढ़ेगी किसानों की आय,हार्टीकल्चर के लिए काश्तकारों को मिले मध्यम व दीर्घ अवधि के ऋण उपलब्ध कराने होंगे। पर्वतीय क्षेत्रों में नहरों की मरम्मत और जंगली जानवरों से बचाने के लिए खेतों की फेंसिंग भी जरूरी है। किसानों के उत्पाद खराब न हों, इसके लिए शीतगृहों की व्यवस्था करनी होगी। ऐसी व्यवस्था भी करनी होगी जिससे किसानों को उनके उत्पादों की अच्छी कीमत मिले। राज्य सरकार ने इसके लिए कोशिशें शुरू की हैं। घाटियों को उत्पाद विशेष की घाटी के तौर पर विकसित करने के प्रयास कर रहे हैं। नाबार्ड के मुख्य महाप्रबंधक सुनील चावला ने बताया कि वर्ष 2020-21 के लिए नाबार्ड द्वारा उत्तराखण्ड की प्राथमिकता क्षेत्र हेतु कुल ऋण सम्भाव्यता 24,656 करोड़ रूपए आंकलित की गई है। जबकि वर्ष 2019-20 में यह 23,423 करोड़ रूपए थी। इस वर्ष के स्टेट फोकस पेपर का विषय ‘उच्च तकनीकी से कृषि’ है। उच्च तकनीक वाली कृषि भविष्य की कृषि है जिसमें जैव विविधता और जैव-प्रौद्योगिकी द्वारा संचालित बीज रोपण सामग्री आौर अन्य बेहतर इनपुट शामिल होंगे, जो सूक्ष्म सिंचाई, पर्यावरण के अनुकूल स्वचालन और मशीनीकरण, नैनो तकनीक के उपयोग, जलवायु पूर्वानुमान, जीपीएस, रोबोट, पायलट रहित ट्रैक्टर, ड्रोन और अन्य मशीनरी और कृषि के लिए सामान्य उपकरण, संरक्षित कृषि, मृदा रहित शहरी खेती, हाईड्रोपोनिक्स, एरोपोनिक्स, एक्वापोनिक्स, किसानों की आय बढ़ाने के लिए आई-टेक ग्रीनहाउस पर बल देती है।
कार्यक्रम में स्टेट कापरेटिव बैंक के अध्यक्ष दान सिंह रावत, सचिव आर मीनाक्षी सुन्दरम, रिजर्व बैंक के क्षेत्रिय निदेशक राजेश कुमार सहित विभिन्न बैंकों, एनजीओ, स्वयं सहायता समूहों के प्रतिनिधि उपस्थित थे।
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