पुलिस की अनोखी खोज ठेंगा

देहरादून–वो आवारा जिसे सब सड़क छाप कहते थे वह अपने हुनर से अखबारों और टी वी  की सुर्खी बन गया, हम बात कर रहें हैं। उत्तराखंड पुलिस के डॉग दस्ते में शामिल फुर्तीले एवमं घ्राण शक्ति में सभी डॉग  पर भारी पड़ने वाले 'ठेंगा' की। हाँ जी वही ठेंगा जिसने पारखी नजरों को सम्मान दिया और नस्लों को ठेंगा ; उत्तराखंड पुलिस के 2019 में किये इस प्रयोग ने सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा।
अब तक पुलिस के डॉग स्क्वायड टीम में जर्मन शैपर्ड, लैबरा, गोल्डन रिटीवर जैसे विदेशी नस्ल के स्वानों को रखा जाता था। जिनकी खरीद पर लाखों का खर्च आता था। इनकी ट्रेनिंग से लेकर रखरखाव में भी पुलिस को सालाना लाखों खर्च करने पड़ते थे, पर ठेंगा इस मामले में अलग है। जिसने सड़कों में कूड़े के ढेरों से उठकर राज्य स्थापना दिवस में मुख्य अतिथि के स्वागत तक  का सफर तय किया ।  अल्प प्रशिक्षण में साक्ष्य को सूंघकर अपराधियों तक पहुंचने के कौशल को देखकर श्वान विशेषज्ञ भी दंग है। आमतौर में स्निफर डॉग की ट्रेनिंग आईटीबीपी ट्रेनिंग सेंटर में होती है।  परन्तु ठेंगा को देहरादून में  निरीक्षक कमलेश पन्त के मार्गदर्शन में कांस्टेबल रामदत्त पाण्डेय द्वारा  ट्रेनिंग दी गयी है।बड़ी तेजी से सीख रहे ठेंगा ने साबित किया कि नस्लों से कुछ नही होता हौसला बुलन्द होना चाहिए,  जबरदस्त फुर्तीला 08 महीने का ठेंगा पुलिस परिवार में शामिल होने वाला प्रथम स्ट्रीट डॉग है एस डी आर एफ महानिरीक्षक संजय गुंज्याल  ने कहाकि मेरे द्वारा ''ठेंगा'' नाम रखने के पीछे एक पौराणिक घटना को आधार बनाने की कोशिश की गयी। "ठेंगा" उस कटे हुए एकलव्य के हांडमांस के अंगूठे का प्रतीक भर है, जो तत्कालीन समाज मे राजपरिवार या राजपुत्र अर्जुन को ही अजेय और सर्वश्रेष्ठ बनाने की जिद में तब तार्किकता एवं न्याय का दम घोटा गया और जिसके लिये कोई बोलने वाला ना था ,उसे प्रशिक्षण के योग्य तक भी ना तब समझा गया और सामाजिक असमानता को पोषित करने का दोषी तत्कालीन समाज रहा है।आखिर क्यों गुरुद्रोण के इस 'सिस्टम' में एक लायक को उस इनायत का हकदार नहीं बनाया गया , जो मात्र अर्जुन और राजपुत्रो के लिये था? ढर्रे से अलग असमानता को नियति मानने से इनकार करता विद्रोही सोच युक्त वह कटा 'निर्जीव-सा-अंगूठा' आज उस 'पुरा-सोच' को ठेंगा दिखाने की कोशिश में, पुलिस परिवार के सम्मानित सदस्य बनने की जद्दोजहद में देहरादून में प्रक्षिणाधीन है । इस प्रशिक्षण से स्थानीय गली के देसी नस्ल के "ठेंगा" की घ्राणशक्ति को यकीनन एक दिशा और दशा मिली है।

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