आज भी जीवित है अंग्रेजों के जमाने का टोल बोर्ड

देहरादून– दिलचस्प कहानी महिपाल नेगी की जुबानी जब हम कुछ साथी राजपुर देहरादून के क्रिस्चियन रिट्रीट सेंटर में एक सेमिनार के बाबत रुके थे, सुबह उठे तो  मॉर्निग वाक पर चल दिए चार साथियों साहब सिंह सजवाण, राजेंद्र नेगी, यशपाल नेगी और मैंने तय किया कि जिधर हरियाली ज्यादा दिखे चल दो, सेंटर के गेट से हम सामने बाईं ओर की सड़क पर चल दिये एक किलोमीटर ही चले होंगे तो पता लगा यह पुराने राजपुर का ही इलाका है ,
और यहीं से मसूरी नगर पालिका की सीमा शुरू हो जाती है , सामने लगे लाल रंग के दो बड़े बोर्ड पर नजर गई तो चौंके , अंग्रेजों के ज़माने के बोर्ड, जो  11जनवरी 1929 से वहीँ जमें  हुए हैं ,मसूरी म्युनिस्पल  के बोर्ड ये बोर्ड दिलचस्प जानकारी से भरे है ,अंग्रेजों के ज़माने में यहीं से मसूरी जाने का रास्ता था केवल 6 मील अर्थात 10 किमी की दूरी यहाँ पर टोल टैक्स और चुंगी पड़ती थी डंडी, डोली, घोड़े, खच्चर सवारी एक रु आठ आना बोझा वाले घोड़े का 5 आना सभी जानवरों पर टैक्स पैदल बोझा वाले से एक आना और 6 पैसा अर्थात 14 पैसा की चुंगी मोटर और रिक्शे की सवारी,
साईकिल और बाईसाइकिल पर एक रु आठ आना अर्थात डेढ़ रु  बगल में ही उर्दू में भी यही जानकारी देने वाला बोर्ड भी लगा है एक तीसरा बोर्ड भी वहां पर है जिन्होने यह बोर्ड देखा होगा और आप में से भी कईयों को शायद कुछ खाश न लगा हो लेकिन थोडा सोचें तो ये कुछ बातें क्या खास नही लगती
89 साल बाद यह अब भी सुरक्षित है इसका पेंट ज्यादा नहीं मिटा और यह एक इतिहास की जानकारी दे रहा है यह भी कि इस पुराने रास्ते से मसूरी केवल 10 किमी दूर है झड़ीपानी तक यह भी कि मसूरी नगरपालिका की सीमा अंग्रेजों के
ज़माने से ही अब तक भी देहरादून तक है, देहरादून से मसूरी नगरपालिका क्षेत्र तक हमने मोर्निंग वाक कर दी इस सड़क को ट्रेकिंग के साथ पर्यटन के लिए प्रचारित करना चाहिए
 जानकारी मिली कि इस पर बाइक सवार अब भी चल देते हैं पैदल भी लोग मसूरी से आ जाते हैं  एक बार इस बोर्ड को निकालने कोई वहां गया तो जिस मकान के पीछे यह है उन्होंने नहीं निकालने दिया पूछने पर पता चला कि ये तो टिहरी के पड़िया गाँव के भंडारी  हैं आपको यह ही बताता चलूँ कि मसूरी उत्तर भारत की पहली नगर पालिका हैl यह सन 1850 में बनी थी और इसके पहले चेयरमैन थे मेजर फ्रूट थे,

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