उत्तराखंड में ट्रैकिंग प्रतिबंध से लोगों की आजीविका खतरे में

 देहरादून–आली- बेदिनी- बागजी बुगयाल संकर्षण समिति द्वारा उत्तराखंड राज्य एवं अन्य के खिलाफ दाखिल जनहित याचिका पर माननीय उत्तराखंड हाईकोर्ट के हालिया फैसले के प्रकाश में एटीओएआई पर्यावरणीय गाइडलाइंस पर बहस का स्वागत करता है, उम्मीद है कि फैसले के नतीजे के
    तौर पर वह जारी हो जाएंगी।
 एटीओएआई फैसले का संज्ञान लेता है; हालांकि उम्मीद है कि व्यापक मुकदमेबाजी राज्य, सभी हितधारकों और संगठनों के बिना को इस तरह के मामले में पक्ष बनाए बिना ही इस तरह की दलीलें उदारवादी फैसले का कारण बन रही हैं। नतीजतन, इन पीआईएल और उन पर आए फैसलों की वजह से न केवल उत्तराखंड के लोगों का सामाजिक-आर्थिक स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है बल्कि उत्तराखंड राज्य के पर्यटन की प्रतिष्ठा भी प्रभावित होती है। इसके अलावा इस तरह के फैसलों के पीछे प्रभाव, लाभ या क्षति निर्धारित करने के लिए डेटा, वैज्ञानिक अनुसंधान, या स्थापित अध्ययनों पर भी नहीं दिया जाता है; जो एक निर्णायक फैसले तक पहुंचने से पहले एक नपी-तुली बहस का कारण बन सकता है,       
              

उत्तराखंड में उपरोक्त ट्रीलाइन ट्रैकिंग पर पूर्ण प्रतिबंध ट्रैकिंग पर्यटन पर निर्भर लाखों हितधारकों के जीवन को प्रभावित करता है। सिर्फ ट्रैक ऑपरेटर और कंपनियां पीड़ित नहीं हैं, बल्कि गाइड, कुक, हेल्पर्स, पोर्टर्स और खच्चर वाले, ढाबा मालिक, होटल मालिक और छोटे होम स्टे, सराय, टैक्सी मालिक और ड्राइवर,दुकानदार और यह सूची जारी रहेगी, ये सभी प्रभावित हैं। ये राज्य के नागरिक हैं और इन लोगों की घर-घर शुरू की गई उद्यमिता की वजह से राज्य को उद्यमशीलता का सम्मान मिला है। हाईकोर्ट के इस निर्णय में हिमालय और भारतीय उपमहाद्वीप, भारत का राजपत्र, यूपी, जिला चमौली के गठन पर लिखी गई कई पुस्तकों और लेखों को उद्धृत करता है, जो 1979 में प्रकाशित हुई थी। जिसमें बताया गया है कि चमौली का गठन कैसे हुआ और उसे यह नाम कैसे प्राप्त हुआ। जर्मन संरक्षणवादी पीटर वोहलेबेन और उनकी पुस्तक द हिडन लाइफ ऑफ ट्रीज का उद्धरण देता है। उनका कहना है कि पहाड़ी पर्यटन के मौजूदा स्तर और प्रभाव पर डेटा व शोध द्वारा समर्थित इसके प्रभाव पर एक विस्तृत अध्ययन, अधिक संतुलित निर्णय लेने में मदद करता।
  एटीओएआई के अध्यक्ष स्वदेश कुमार ने कहा, इस मामले में अचानक इस तरह की प्रतिक्रिया उत्तराखंड में पूरे पर्यटन उद्योग को नुकसान पहुंचा रही है। हम प्रभावित क्षेत्रों में स्थायी निर्माण रोकने के लिए माननीय उच्च न्यायालय के फैसले की सराहना करते हैं। हालांकि, मुझे लगता है कि ट्रैकिंग गतिविधियों के लिए राज्य में आने वाले लोगों की संख्या पर प्रतिबंध लगाना चाहिए और गतिविधियों को प्रतिबंधित नहीं किया जाना चाहिए।
स्थानीय समुदायों के लिए इन ट्रैकर्स से होने वाली आय पर एक अध्ययन होना चाहिए, साथ ही राज्य की अर्थव्यवस्था इस तरह के प्रतिबंध से कितनी प्रभावित होगी, यह भी अध्ययन का विषय है। हम नियमों की बेतहाशा अनदेखी करने वालों को दंडित करने का समर्थन करते हैं। हालांकि, कुछ लोगों की मूर्खता के कारण हजारों लोगों की आजीविका को दांव पर नहीं लगाना चाहिए।
एक्वाटेरा एडवेंचर्स के वैभव कला ने कहा यह हमारी राष्ट्रीय विरासत है और इस तक पहुंच है और इसका रखरखाव सभी उपयोगकर्ताओं का दायित्व होना चाहिए। हर गुजरने वाला सप्ताह बताता है कि बहुत देर हो चुकी है। तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है। पंजीकृत कंपनियां और गाइड बेहद जरूरी हैं। नो ऑपरेशन = नो एक्सेस लागू होना चाहिए। आउटडोर रहने के विशेषाधिकार के साथ उसके रख-रखाव के लिए भुगतान भी साथ आना चाहिए। इस जाल में फंसने से बचाने के लिए संख्या सीमित होनी चाहिए। यह वास्तव में काफी आसान है। आउटडोर आपकी कंपनी को एक बहुराष्ट्रीय निगम बनाने को लेकर नहीं है। यह मूलभूत बातों के बारे में अधिक है कि यह कैसे किया जाना चाहिए। सुरक्षित, छोटा और टिकाऊ।"  
इस प्रतिबंध का एक अन्य पहलू यह भी है कि यह पर्वतारोहण के खेल को प्रभावित करता है। उत्तराखंड राज्य में पर्वतारोहण की लंबी और गर्वित परंपरा रही है और एवरेस्ट पर चढ़ाई की ट्रेनिंग भी यहीं दी जाती है। स्वीकार्य रूप से प्रमुख संस्थान नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग बंद भी हो सकता है। 

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