यौन और प्रजनन स्वास्थ्य के लिये धर्म आधारित दृष्टिकोण पर चर्चा

ऋषिकेश- परमार्थ निकेतन, संगठन (जीवा) की अन्तर्राष्ट्रीय महासचिव साध्वी भगवती सरस्वती  को संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष द्वारा मानव अधिकार के परिपेक्ष्य में यौन और प्रजनन स्वास्थ्य के लिये धर्म आधारित दृष्टिकोण पर आधारित कार्यक्रम में आमंत्रित किया गया। इस कार्यक्रम में ट्यूनीशिया, कोस्टारिका, केन्या, मोजाम्बिक, बोत्सवाना, अंगेला, जाम्बिया, स्वीडन, वियतनाम, सियरा लियोन, बांग्लादेश, थाईलैण्ड, उरग्वे, चिली आदि देशों के प्रतिनिधि, धर्म आधारित समुदायों के प्रतिनिधि एवं अन्तर्राष्ट्रीय योजनाबद्ध पितृत्व महासंघ आई पी पी  एफ के प्रतिनिधियों ने सहभाग किया।इस दो दिवसीय कार्यक्रम में यान्त्रिक उपागम के इतर मानव अधिकारों के परिपेक्ष्य से सेक्सुअल एवं प्रजननपूर्ण स्वास्थ्य के लिये धर्म आधारित उपाय पर विशद चर्चा सम्पन्न हुई।जनसंख्या और विकास पर संयुक्त राष्ट्र संघ के 51 वें सत्र में अतिरिक्त
कार्यक्रम सतत रूप से सुरक्षित नगरों, मानव गतिशीलता एवं अतंर्राष्ट्रीय प्रवासन पर भी चर्चा की। इस कार्यक्रम का उद्देश्य सेक्सुअल एवं प्रजननपूर्ण स्वास्थ्य के अधिकारों से युक्त प्रावधानों वाले एजेण्डा को बल प्रदान करने हेतु धर्मगुरूओं एवं धर्म आधारित संगठनों को एक मंच पर लाना है।युद्ध, प्राकृतिक आपदा एवं अन्य आपातकालीन स्थितियों के दौरान सेक्सुअल एवं प्रजननयुक्त स्वास्थ्य सम्बन्धी जरूरतों को नजरअंदाज किया जा सकता है। प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव में गर्भवती महिलायें अपने जीवन के लिये संकटपूर्ण जटिलताओं का जोखिम उठाती हैं तथा वे परिवार नियोजन से वंचित हो सकती है तथा अवांछित रूप से गर्भ धारण कर सकती हैं। महिलायें एवं युवावर्ग यौन हिंसा, शोषण एवं एच आई वी के संक्रमण का शिकार हो सकती हैं। अतः धर्म आधारित संगठन, एफ बी ओं यथा धार्मिक संस्थायें एवं धर्म से प्रेरित गैर सरकारी संगठन आपातकालीन स्थिति में स्वास्थ्य सेवायें उपलब्ध कराने में अहम भूमिका निभा सकती हैं। इस दो दिवसीय कार्यक्रम में डिवाइन शक्ति फाउण्डेशन की अध्यक्ष साध्वी भगवती सरस्वती  ने सहभाग कर अपने विचार व्यक्त कि जीवा की अन्तर्राष्ट्रीय महसचिव साध्वी भगवती सरस्वती ने कहा, सेक्सुअल एवं प्रजननपूर्ण स्वास्थ्य का सम्बन्ध केवल गर्भपात, परिवार नियोजन व एल जी बी टी के अधिकारों तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह महिलाओं के अन्दर निहित मानवता को एक सूत्र में गूंथने वाला है। यह गरिमा के साथ जीने के अधिकार से जुड़ा है। सुरक्षित शौच करने का अधिकार; शुद्ध जल ग्रहण करने का अधिकार; मासिक धर्म के दौरान स्वच्छ रहने के अधिकार को प्रकट करता है। पक्षपातपूर्ण गर्भपात के सन्दर्भ में उन्होने कहा कि यह मामला धार्मिक नहीं है। धर्मगुरू यह नहीं कहते कि लड़के-लड़कियों से बेहतर होते हैं। यह मामला वास्तव में आर्थिक संकट से उत्पन्न होता है जहां लड़कों को सम्पत्ति और लड़कियों को जिम्मेदारी समझा जाता है। इसका समाधान यही है कि सभी संगठन, संस्थायें एवं सरकारी संस्थायें मिलकर गरीबी का निस्तारण करें। उन्होने न केवल नारी बल्कि धरती की रक्षा की भी बात कहीं।संयुक्त राष्ट्र संघ के आकड़ों के अनुसार 2040 तक अनेक शरणार्थी जल की कमी व जलवायु परिवर्तन के कारण होंगे। जब लोग पलायन के लिये मजबूर होते है तो सबसे ज्यादा महिलाओं एवं बच्चों के स्वास्थ्य पर असर पड़ता है। यही कारण है कि हम महिलाओं के अधिकारों के लिये मिलकर कार्य कर रहे हैं।  डाॅ डैनियल लेगटके, जर्मन आयोग आॅफ जस्टिस एंड पीस ने कहा, ’मानव संसाधन के सार्वभौम घोषण की प्रथा के अनुरूप यौन और प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकारों को समझना आवश्यक है।’ संयुक्त राष्ट्र संघ की ईकाइ यूएनएफपीए द्वारा आयोजित कार्यक्रम है जो महिलाओं व बच्चों के स्वास्थ्य से जुड़ा हैं। इस कार्यक्रम में डाॅ रमीज एलकाबारो, संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष के कार्यक्रम के निदेशक, अलाना आर्मिटेज, पूर्वी यूरोप और मध्य एशिया के लिये संयुक्त राष्ट्र जनसंख्य निधि के क्षेत्रीय निदेशक, डाॅ अजीजा करम, धर्म और विकास संयुक्त राष्ट्र इंटर एजेंसी टास्क फोर्स के प्रमुख, डाॅ डैनियल लेगटके, न्यायमूर्ति और शान्ति के जर्मन आयोग मानवाधिकार कार्यालय, बिशप स्टीफन काजिम्बा, युगांडा हेन्द्रिका ओकडो, विश्व वाईडब्ल्यूसीए ग्लोबल मैनेजन फाॅर सेक्स एंड रिप्रोडक्टिव हेल्थ एंड राइट्स, डाॅ लिडिया मावानी, धर्मशास्त्र के निदेशक, मोनिका विलार्ड, संयुक्त धर्म पहल की संयुक्त राष्ट्र प्रतिनिधि एवं अन्य विशिष्ट गण उपस्थित थे।

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