पुरस्‍कारों की होड़ में दरबारी चाटुकारिता की सारी हदें तोड़ते-शशि शर्मा

देहरादून-- ‘अन्‍वेषा’ द्वारा ‘मुक्तिबोध की कहानियों और कविताओं का पाठ और साहित्‍य के विविध पक्षों पर बातचीत’ का कार्यक्रम देहरादून के प्रेस क्‍लब में आयोजित हुआ। कार्यक्रम की मुख्‍य वक्‍ता दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय की प्राध्‍यापिका शशि शर्मा रहीं। इस कार्यक्रम की अध्‍यक्षता वरिष्‍ठ साहित्‍यकार और ऐक्टिविस्‍ट त्रेपन सिंह चौहान व ऐक्टिविस्‍ट गीता गैरोला ने किया।शशि शर्मा ने साहित्‍य के विविध पक्षों पर बातचीत रखते
 हुए कहा कि वर्तमान दौर में साहित्‍य की चुनौतियाँ बहुत गम्‍भीर हैं। साहित्‍य को जहां जनाकांक्षाओं को, जनता की उम्‍मीदों और संघर्षों को अभिव्‍यक्‍त करना चाहिए, वहीं, इसके उलट, साहित्‍यकारों का बड़ा हिस्‍सा पद-पीठ-पुरस्‍कारों की होड़ में दरबारी चाटुकारिता की सारी हदें तोड़ता जा रहा है। भारतीय मध्‍यवर्गीय बौद्धिक तबका साहित्‍य की भूमिका को समझते हुए भी नयी पीढ़ी के बीच साहित्‍य की गम्‍भीरता और उसकी ज़रूरत का अहसास नहीं करवा पाता है। आज के दौर में साहित्‍यकारोंऔर संस्‍कृतिकर्मियों का बड़ा कर्तव्‍य यह है कि वे साहित्‍य को आम पाठकों और विशेषकर, नौजवानों तक पहुँचायें और साहित्यिक-सांस्कृतिक अभिरुचि
को पैदा करने के लिए तमाम रचनात्‍मक गतिविधियों और जन-सांस्कृतिक गतिविधियों का सिलसिला शुरू करें। तभी आज का साहित्‍य वर्तमान फासीवादी दौर में जनप्रतिरोध की उम्‍मीदों- आकांक्षाओं को नेतृत्‍व दे सकता है।इसके साथ ही शशि जी ने मुक्तिबोध की कविताओं और ‘नयी ज़‍िन्‍दगी’ कहानी का पाठ किया। इसके बाद मुक्तिबोध के लेखन शैली की दुरूहता, जटिलता, शाब्दिक बिम्‍बों, प्रतीकों, रूपकों पर चर्चा हुई। चर्चा में हम्‍माद फारूकी, डी.एन.तिवारी, संजीव घिल्डियाल, रंजीता, डा.विद्या सिंह, राकेश अग्रवाल, अपूर्व आदि शामिल रहे।गीता गैरोला ने कहा कि मुक्तिबोध का व्‍यक्तिगत जीवन खुद भी कठिनाइयों और संघर्षों में बीता लेकिन उसके बावजूद उन्‍होंने कोई वैचारिक समझौता किये बगैर और पद-पीठ-पुरस्‍कार के पीछे भागे बगैर लेखन किया।
 लेकिन यह भी एक सच है कि मुक्तिबोध के लेखन में स्‍त्री विमर्श को उतनी प्रमुखता नहीं मिली जितनी मिलनी चाहिए थी।वरिष्‍ठ साहित्‍यकार त्रेपन सिंह चौहान ने कहा कि मुक्तिबोध की रचनाएं अपनी दुरुहता व जटिलता के बावजूद आम जनता के जीवन संघर्ष की रचनाएं हैं। मुक्तिबोध ताउम्र वैचारिक संघर्ष करते रहे और जनता के साथ खड़े रहे इसीलिए आज हम मुक्तिबोध का याद कर रहे हैं और उनकी रचनाओं पर बात कर रहे हैं। जो लेखक केवल पद-प्रतिष्‍ठा और नाम के लिए लिखते हैं वो इतिहास बन जाते हैं और जो जनता के लिए रचते हैं और जनसंघर्षों के साथ खड़े होते हैं वो सदियों की सीमाओं को तोड़ देते हैं।

कार्यक्रम मे हम्‍माद फारूखी, अश्‍वनी त्‍यागी, कुलदीप, वीरेन्‍द्र सिंह नेगी, बच्‍ची राम कौंसवाल, सोनिया नौटियाल, कल्‍पना बहुगुणा, मंजू काला, विजय भट्ट, गीतिका, सतीश धौलाखण्‍उी, रामाधार, मोती, फेबियन आदि उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन कविता कृष्‍णपल्‍लवी ने किया।

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