दिन में एक बार ही लोगों को खाना मिलता हैं
देहरादून- उत्तराखंड की अस्थाई राजधानी देहरादून के राजपुर थाने की चौकी जाखन चौकी के क्षेत्र में पॉश कॉलोनी जाखन कि हैप्पी कॉलोनी से लगी गब्बर सिंह बस्ती में लॉक डाउन के बाद से ही वहाँ पर रहने वाले मजदूरों को खाने की समस्या मुंहबॉय खड़ी हैं। बस्ती में लगभग 400 से 500 लोग रहते हैं।वही छोटे बच्चे भी हैं जो खाने के लिए मां बाप को कहते हैं और दूधमुहे बच्चे भी हैं। जिन्हें दूध व पोस्टिक आहार की भी जरूरत होती हैं। लेकिन लॉक डाउन की वजह से उन्हें यह सब चीजें उपलब्ध नहीं हो पा रही हैं।वही लगे लोग कहते है की दिन में केवल एक ही बार खाना नसीब होता हैं।
लोगों ने कहाकि सरकारी मदद हमे नहीं मिली रही हैं। और उन्होंने कहा कि हमे बड़े घर वाले कुछ खाने पीने को थोड़ा बहुत दे देते हैं। लेकिन ना ही किसी नेता ने और ना ही जिला प्रशासन ने हमारे पर ध्यान दिया हैं। ऐसा इन लोगों का कहना हैं। जबकि यहां पर दोपहर का खाना प्रशासन व पुलिस के द्वारा जो की लगभग डेढ़ सौ पैकेट बना हुआ भोजन इस बस्ती में दिन में एक बार लोगों को बांटा जाता हैं। जबकि यहां पर काफी मजदूर व अन्य लोग रहते हैं।और कुछ ऐसे भी है जो लॉक डाउन होने की वजह से यहां पर फँसे हुऐ हैं।
यहां पर ज्यादातर मजदूरी करने वाले मजदूर अपने परिवार के साथ रहते हैं किराये के कमरों पर और इनके छोटे-छोटे बच्चे भी हैं। वही कुछ घरों में तो पांच-छः मजदूर रहते हैं। इन लोगों का कहना है कि एक पैकेट खाने से कैसे हमारी 24 घंटे की भूख मिटेगी। ना ही हमें अभी तक कच्चा राशन का पैकेट मिले हैं। जबकि सरकार कुछ भी हम लोगों के बारे में नहीं सोच रही हैं। आखिर क्यों नहीं पहुंच रही है इन लोगों के पास सरकारी मदद,वही इन लोगों का कहना है कि अगर कुछ दिन ओर ऐसे ही भूखे रहे तो मरने तक की नौबत भी आ जायेगी है।
लोगों ने कहाकि सरकारी मदद हमे नहीं मिली रही हैं। और उन्होंने कहा कि हमे बड़े घर वाले कुछ खाने पीने को थोड़ा बहुत दे देते हैं। लेकिन ना ही किसी नेता ने और ना ही जिला प्रशासन ने हमारे पर ध्यान दिया हैं। ऐसा इन लोगों का कहना हैं। जबकि यहां पर दोपहर का खाना प्रशासन व पुलिस के द्वारा जो की लगभग डेढ़ सौ पैकेट बना हुआ भोजन इस बस्ती में दिन में एक बार लोगों को बांटा जाता हैं। जबकि यहां पर काफी मजदूर व अन्य लोग रहते हैं।और कुछ ऐसे भी है जो लॉक डाउन होने की वजह से यहां पर फँसे हुऐ हैं।
यहां पर ज्यादातर मजदूरी करने वाले मजदूर अपने परिवार के साथ रहते हैं किराये के कमरों पर और इनके छोटे-छोटे बच्चे भी हैं। वही कुछ घरों में तो पांच-छः मजदूर रहते हैं। इन लोगों का कहना है कि एक पैकेट खाने से कैसे हमारी 24 घंटे की भूख मिटेगी। ना ही हमें अभी तक कच्चा राशन का पैकेट मिले हैं। जबकि सरकार कुछ भी हम लोगों के बारे में नहीं सोच रही हैं। आखिर क्यों नहीं पहुंच रही है इन लोगों के पास सरकारी मदद,वही इन लोगों का कहना है कि अगर कुछ दिन ओर ऐसे ही भूखे रहे तो मरने तक की नौबत भी आ जायेगी है।
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