आधुनिक शोध भारतीय ज्ञान परम्परा पर आधारित हो

देहरादून–दून विश्वविद्यालय के प्रबन्धशास़्त्र विभाग द्वारा शोध छात्रों के लिये आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला के उद्घाटन सत्र को सम्बोधित करते हुए दून विश्वविद्यालय के कुलपति डा0 चन्द्रशेखर नौटियाल ने कहा कि भविष्य के पूर्वानुमान व आगणन के लिये शोध प्रविधि का चयन शोधार्थियों के लिये महत्वपूर्ण कदम है।यदि पूर्वानुमान सटीक व सही समय पर हो तो मानव कल्याण एवं सामाजिक उत्थान के
कार्यक्रम कारगर तरीके से नियोजित एवं संचालित किये जा सकते हैं। शोध का विषय मात्र उपाधि प्राप्त करने तक ही सीमित नहीं होना चाहिये यह जीवन पर्यन्त चलने वाला विषय है। इसलिये इस तरह के कार्यशालाओं से सीखी हुई तकनीक ताउम्र व्यक्ति को जीवन के पथ पर अग्रसर करने में सहायक होती है। विशिष्ट अतिथि गुरूकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय हरिद्वार के प्रबन्धशास़्त्र के पूर्व संकायाध्यक्ष प्रो0एस सी धमीजा ने कहा कि आधुनिक शोध में भारतीय ज्ञान परम्परा का समावेश होना चाहिये। आज के वैश्विक परिवेश में पश्चिमी देशों के आधार पर विकसित माॅडल भारतीय समाज में सत प्रतिशत कारगर होंगे यह सत्य नहीं है। इसलिये हमें वैश्विक परिदृश्य के अनुरूप भारतीय ज्ञान परम्परा पर आधारित ज्ञान के माॅडल को विकसित करने की दिशा में कार्य करना होगा। इस अवसर पर गौतम बुद्व विश्वविद्यालय नोयडा के प्रो0 शुभोजीत बनर्जी ने अनुसंधान के क्षेत्र में दर्शन विज्ञान के महत्व को प्रदर्शित करते हुए जीवन के हर क्षेत्र में शोध परक कार्य संस्कृति अपनानी चाहिए। उन्होंने विभिन्न वैज्ञानिकों के जीवन दर्शन पर विस्तार से प्रकाश डाला। अतिथियों का स्वागत करते हुए विभागाध्यक्ष प्रो0 एच0सी0 पुरोहित ने विभाग की प्रगति आख्या प्रस्तुत की। कार्यक्रम का संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन डाॅ0 रीना सिंह ने किया। इस अवसर पर डाॅ0 गजेन्द्र सिंह, डाॅ0 आशीष सिन्हा, डाॅ0 सुधांशु जोशी, डाॅ0 प्राची पाठक, डाॅ0 स्मिता त्रिपाठी सहित विभाग के समस्त शोधार्थी उपस्थित थे। 

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