गंगोत्री से लेकर गंगासागर में गिरते नाले व अपशिष्ट-ओझा
ऋषिकेश-विश्वविख्यात कथा वाचक रमेश भाई ओझा गंगोत्री में आयोजित दिव्य कथा का समापन कर परमार्थ निकेतन पधारे। परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने रमेश भाई ओझा का सहृदय अभिनन्दन किया। दोनों आध्यात्मिक महात्माओं ने वेदान्त के साथ आध्यात्मिक और सामाजिक विषयों पर विशद चर्चा की। उन्होने कथाओं के माध्यम से समाज को एकता के सूत्र में बांधना, सामाजिक सद्भाव, सामंजस्यता, शान्ति एवं सौहार्दता के माध्यम से राष्टहित में कार्य करने हेतु युवा जागरण गतिविधियों पर जोर देने की बात कही।स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने 2019 के प्रयाग कुम्भ के विषय में चर्चा करते हुये कहा, महाकुम्भ के दौरान वहां उपस्थित सभी कथाकारों, अखाड़ों, संतों एवं अन्य सामाजिक संस्थाओं की समाज में व्याप्त सामाजिक और पर्यावरण से सम्बंधित समस्याओं के निवारण के लिये
जिम्मेदारी और जवाबदेही निश्चित की जानी चाहिये। साथ ही गंगोत्री से लेकर गंगासागर तक गंगा में गिरते नाले; गंगा के तटों पर अपशिष्ट निस्तारण गंगा में कैमिकल युक्त अपशिष्ट को प्रवाहित करना तथा संतों द्वारा गंगा में जल समाधि लेना आदि जैसे विषयाें पर कुम्भ के दौरान खुलकर चर्चा होनी चाहिये जिससे संताें के माध्यम से आम जनसमुदाय को जाग्रत किया जा सके।स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कुम्भ के दौरान अतंर धार्मिक गतिविधियों को बढ़ावा देने की बात कहीं। आध्यात्मिकता के माध्यम से सभी धर्मों को एकजुट किया जा सकता है। आध्यात्मिकता सभी धर्मो को स्वीकार करने पर जोर देती है अतः कुम्भ के दौरान राष्ट्रवाद की भावना को बढ़ावा देने के लिये हिन्दू, मुस्लिम, सिख और अन्य धर्मो के साझा इतिहास के गौरवशाली क्षणों को युवाओं के साथ साझा किया जाना चाहिये जिससे सामाजिक समावेशी मानसिकता का विकास हो सकता है। कुम्भ के दौरान एवं सामान्य
अवसरों पर सांस्कृतिक, सामाजिक और कथाओं के मंच से शान्ति, सद्भाव, समरसता और स्वच्छता को बढ़ावा देने वाले संदेशों को प्रसारित करना नितांत आवश्यक है। उन्होने कहा कि इन विषयों पर निरंतर संवाद और चर्चा होनी चाहिये ताकि युवाओें में स्वच्छ मानसिकता का विकास हो सके। रमेश भाई ओझा ने कहा कि कथा के माध्यम से जन समुदाय के विचारों में विलक्षण परिवर्तन किया जा सकता है साथ ही युवाओं के विचारों को एक सकारात्मक दिशा प्रदान की जा सकती है। व्यक्ति, समाज की एक छोटी इकाई अगर राष्ट्र की युवा पीढ़ी में बदलाव आ जाये तो समय के साथ सकारात्मक बदलाव की यह बयार पूरे समाज को एक नई दिशा प्रदान कर सकती है। उन्होने कहा कि आगामी महाकुम्भ को ’युवा जागृति कुम्भ’ के रूप में मनाया जा सकता है।स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कुम्भ मेला में सहभाग करने वाली सभी संस्थाओं और समुदायों से आह्वान किया कि वे निर्मल और अविरल नदियों के लिये सहयोग प्रदान करें क्योकि जब तक नदियाँ जीवित है तभी तक सृष्टि पर महाकुम्भ है।
जिम्मेदारी और जवाबदेही निश्चित की जानी चाहिये। साथ ही गंगोत्री से लेकर गंगासागर तक गंगा में गिरते नाले; गंगा के तटों पर अपशिष्ट निस्तारण गंगा में कैमिकल युक्त अपशिष्ट को प्रवाहित करना तथा संतों द्वारा गंगा में जल समाधि लेना आदि जैसे विषयाें पर कुम्भ के दौरान खुलकर चर्चा होनी चाहिये जिससे संताें के माध्यम से आम जनसमुदाय को जाग्रत किया जा सके।स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कुम्भ के दौरान अतंर धार्मिक गतिविधियों को बढ़ावा देने की बात कहीं। आध्यात्मिकता के माध्यम से सभी धर्मों को एकजुट किया जा सकता है। आध्यात्मिकता सभी धर्मो को स्वीकार करने पर जोर देती है अतः कुम्भ के दौरान राष्ट्रवाद की भावना को बढ़ावा देने के लिये हिन्दू, मुस्लिम, सिख और अन्य धर्मो के साझा इतिहास के गौरवशाली क्षणों को युवाओं के साथ साझा किया जाना चाहिये जिससे सामाजिक समावेशी मानसिकता का विकास हो सकता है। कुम्भ के दौरान एवं सामान्य
अवसरों पर सांस्कृतिक, सामाजिक और कथाओं के मंच से शान्ति, सद्भाव, समरसता और स्वच्छता को बढ़ावा देने वाले संदेशों को प्रसारित करना नितांत आवश्यक है। उन्होने कहा कि इन विषयों पर निरंतर संवाद और चर्चा होनी चाहिये ताकि युवाओें में स्वच्छ मानसिकता का विकास हो सके। रमेश भाई ओझा ने कहा कि कथा के माध्यम से जन समुदाय के विचारों में विलक्षण परिवर्तन किया जा सकता है साथ ही युवाओं के विचारों को एक सकारात्मक दिशा प्रदान की जा सकती है। व्यक्ति, समाज की एक छोटी इकाई अगर राष्ट्र की युवा पीढ़ी में बदलाव आ जाये तो समय के साथ सकारात्मक बदलाव की यह बयार पूरे समाज को एक नई दिशा प्रदान कर सकती है। उन्होने कहा कि आगामी महाकुम्भ को ’युवा जागृति कुम्भ’ के रूप में मनाया जा सकता है।स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कुम्भ मेला में सहभाग करने वाली सभी संस्थाओं और समुदायों से आह्वान किया कि वे निर्मल और अविरल नदियों के लिये सहयोग प्रदान करें क्योकि जब तक नदियाँ जीवित है तभी तक सृष्टि पर महाकुम्भ है।
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