जर्मन हिंदी अनुवाद विषय पर कार्यशाला का आयोजन

देहरादून – स्विट्जरलैंड के 800 की आबादी की वाले छोटे से गांव लोरेन में जर्मन हिंदी अनुवाद विषय पर 5 दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला में जर्मनी में रह रहे हिंदी भाषा के विद्वान एकत्रित हुए और उन्होंने जर्मन भाषा से हिंदी और हिंदी से जर्मन भाषा के अनुवाद को बेहतर बनाने के विभिन्न तरीकों पर चर्चा की।कार्यक्रम के मुख्य अतिथि, जाने माने स्विस लेखक पीटर स्टाम ने कहा कि दुनिया की तमाम भाषाओं से अनुवाद अंग्रेजी भाषा में होता है। उसके बाद उन पुस्तकों का अनुवाद अन्य यूरोपीय भाषाओं में किया जाता है। उन्होंने दुनिया की दूसरी भाषाओं का सीधा अनुवाद जर्मन भाषा में किए जाने पर जोर दिया। साथ ही उन्होंने कहा कि अनुवादक को मुमकिन हो सके, तो लेखक के साथ सीधा संवाद स्थापित करना चाहिए। इससे अनुवाद के बाद भी लेख की आत्मा बची रहे, इसकी संभावना बनी रहती है।
उन्होंने बताया कि उनकी पुस्तकों का 37 भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। अनुवादकों से लगातार बातचीत करते रहने पर उन्हें आभास रहता है कि उनके विचारों को अनुवादक किस तरह अन्य भाषा में बुन रहा है। इस कार्यशाला में भाग लेने के लिए भारत में जर्मन भाषा जानने वाले चार युवाओं को स्कालरशिप प्रदान कर स्विट्जरलैंड के लोरेन बुलाया गया। इसमें ईशानी जोशी, पुणै, नेहा कौशिक, पी.एच.डी. स्कॉलर, जे.एन.यू और सरिता, पी.एच.डी स्कालर, दिल्ली विश्वविद्यालय, आलोक नैथानी, दून विश्वविद्यालय शामिल थे.  लेखकों, अनुवादकों व प्रकाशकों के साथ भी विचार विमर्श किया गया। भारतीय लेखकों में मंगलेश डबराल, गीतांजलिश्री, संजीव कुमार, हंस यूरगीन बाम्स सहित कई साहित्यकारों ने कार्यशाला को स्काइप्स के माध्यम से भी संबोधित किया।    इस कार्यशाला का आयोजन ट्रांलेशन हाउस, लोरेन ने किया। इस कार्यशाला में 11 जर्मन व हिंदी भाषा के विशेषज्ञों ने सीधे भाग लिया। इसमें भारत से पांच व जर्मनी से 6 अनुवादक शामिल रहें। संचालन नमिता खरे और हाइंस वेस्नर वेस्लर ने किया। कार्यक्रम में इनस फॉरनेल, युहाना हॉन, आल्मुट डेग्नर, क्रिस्टीना इयोस्टरहेल्ड, राइन होल्डशाइन मौजूद रहे।

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