गूगल ने चिपको आंदोलन की 45वीं जयंती पर .....
देहरादून-इस प्रदेश का दुर्भाग्य है कि जिस आंदोलन की जननी गौरा देवी रही उसको आज भी किसी राजनीतिक दल ने नमन तक नहीं किया वही गूगल ने बनाया चिपको को डूडल और उनका फोटो लगाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी क्योंकि गौरा देवी प्राकृतिक प्रेम और पर्यावरण की रक्षा के लिए पेड़ों को बचाने के लिए चिपको आंदोलन शुरू करके ठेकेदारों
के नाक में दम कर दिया था ,लेकिन इस प्रदेश का दुर्भाग्य हैं कि जिस आंदोलन की जननी गोरा देवी ने प्राकृतिक और पर्यावरण की रक्षा के लिए पेड़ों को बचाने के लिए कुछ ग्रामीण महिलाओं को लेकर चिपको आंदोलन शुरू किया, इसका उदाहरण है चमोली जिले के रैंणी गांव की महिलाओं ने गौरा देवी के नेतृत्व में पेड़ काट रहे ठेकेदारों को बिना पेड़ काटे वहां से जाने का मजबूर कर दिया और वे समूह में पेड़ों से लिपट गईं। प्रकृति तथा पर्यावरण के प्रति इस समर्पण को बाद में चिपको आंदोलन नाम दिया गया,
चिपको आंदोलन इसके बाद पूरे विश्व में फैल गया। इसी वजह से उत्तराखंड के इस आंदोलन के बहाने इस भूमि का पूरा विश्व नमन करता है। गूगल ने भी अपने डूडल में चिपको आंदोलन के 45वीं जयंती के रूप में समर्पित किया है। तथा और उस में सफलता भी पाई थी किया उत्तराखंड प्रकृति का कितना प्रेमी है, इसका उदाहरण है चिपको आंदोलन। हां यही दुर्भाग्य इस बात का भी है कि जो जननी थी चिपको आंदोलन की उसको गांधी शांति पुरस्कार या पद्म भूषण ना मिलकर किसी दूसरे व्यक्ति को इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया जोकि अपने आप में एक प्रश्न चिन्ह खड़ा या पैदा करता है ,
के नाक में दम कर दिया था ,लेकिन इस प्रदेश का दुर्भाग्य हैं कि जिस आंदोलन की जननी गोरा देवी ने प्राकृतिक और पर्यावरण की रक्षा के लिए पेड़ों को बचाने के लिए कुछ ग्रामीण महिलाओं को लेकर चिपको आंदोलन शुरू किया, इसका उदाहरण है चमोली जिले के रैंणी गांव की महिलाओं ने गौरा देवी के नेतृत्व में पेड़ काट रहे ठेकेदारों को बिना पेड़ काटे वहां से जाने का मजबूर कर दिया और वे समूह में पेड़ों से लिपट गईं। प्रकृति तथा पर्यावरण के प्रति इस समर्पण को बाद में चिपको आंदोलन नाम दिया गया,
चिपको आंदोलन इसके बाद पूरे विश्व में फैल गया। इसी वजह से उत्तराखंड के इस आंदोलन के बहाने इस भूमि का पूरा विश्व नमन करता है। गूगल ने भी अपने डूडल में चिपको आंदोलन के 45वीं जयंती के रूप में समर्पित किया है। तथा और उस में सफलता भी पाई थी किया उत्तराखंड प्रकृति का कितना प्रेमी है, इसका उदाहरण है चिपको आंदोलन। हां यही दुर्भाग्य इस बात का भी है कि जो जननी थी चिपको आंदोलन की उसको गांधी शांति पुरस्कार या पद्म भूषण ना मिलकर किसी दूसरे व्यक्ति को इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया जोकि अपने आप में एक प्रश्न चिन्ह खड़ा या पैदा करता है ,
Comments
Post a Comment