कल को सुरक्षित करने के लिये जल की सुरक्षा

ऋषिकेश--परमार्थ निकेतन में जल संसाधन, प्रबंधन एवं संरक्षण हेतु बैठक का आयोजन किया गया। परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष, ग्लोबल इण्टरफेथ वाश एलायंस के संस्थापक एवं गंगा एक्शन परिवार के प्रणेता स्वामी चिदानन्द सरस्वती  के साथ भारत सरकार जल विभाग के अधिकारी, उत्तराखण्ड सिंचाई विभाग के अधिकारीगण एवं विद्युत विभाग के अधिकारियाें ने जल की कमी से उत्पन्न होने वाली समस्याओं पर विशेष चर्चा की तथा जल संरक्षण के मुद्दों पर विचार मंथन किया गया।एस एन वर्मा  प्रबंध निदेशक उत्तराखण्ड जल विद्युत निगम, भारत सरकार, प्रमोद नारायण, निदेशक डेम सुरक्षा, पुनर्वास एवं केन्द्रीय जल आयोग, नदी विकास एवं गंगा कायाकल्प अधिकारी भारत सरकार, संदीप सिंघल, परियोजना निदेशक उत्तराखण्ड जल विद्युत निगम लिमिडेट, अजय कुमार सिंह चीला पावर हाऊस, डाॅ अविनाश जोशी देहरादून, डी राजकुमार बैराज ऋषिकेश, कुलश्रेष्ठ हरिद्वार, अमृता वर्मा एवं अन्य कई अधिकारियों ने बैठक में भाग लिया।बैठक में जल एवं विद्युत विभाग के अधिकारियों ने अपने विचार साझा किये। स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा जल समस्या एक वैश्विक समस्या है परन्तु भारत जैसे विकासशील देश के लिये जल के संरक्षण के साथ जल का पुनर्चक्रण नितांत आवश्यक है। उन्होने कहा कि जिस प्रकार वर्तमान समय में सरकार, समाज, संस्थायें एवं पूज्य संत स्वच्छता के लिये एक जुट होकर कार्य कर रहे है; जन समुदाय को स्वच्छता का प्रशिक्षण दिया जा रहा है उसी प्रकार जल के पुनर्चक्रण के लिये भी कार्यशालाओं का आयोजन कर हर भारतवासी को उसका प्रशिक्षण दिया जाये तब कुछ हद तक जल समस्या से निजात मिल सकती है। वैज्ञानिकों ने बताया की भारत मेें कुल ऊर्जा का 15.2 प्रतिशत ही नवीकरणीय ऊर्जा का योगदान है इसी प्रकार अपशिष्ट जल का केवल 2.2 प्रतिशत पुनर्नवीनीकरण किया जा रहा है इसलिये हमें जल के पुनर्चक्रण एवं पुनर्नवीनीकरण के लिये क्रान्ति की तरह कार्य करना होगा। मानवीय गतिविधियों के कारण जल का जो प्रदूषण हो रहा है उससे भूमिजल के साथ हमारे जल के भण्डार महासागर भी प्रदूषित हो रहे है। वैज्ञानिक, महासागरों के प्रदूषित होने का प्रमुख कारण नदियों को मान रहे है। सांइस पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में महासागर सफाई परियोजना के शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया है कि समुद्र में 5 ट्रिलियन पाउंड प्लास्टिक तैर रहा है और इसका दो-तिहाई हिस्सा विश्व की 20 सबसे ज्यादा प्रदूषित नदियों से आता है जो महासागरों के प्रदूषण के लिये जिम्मेदार प्लास्टिक का 67 प्रतिशत है। अध्ययन के आधार पर प्रदूषण के लिये चीन की यांग्त्जे नदी का अहम योगदान है। इस नदी द्वारा प्रतिवर्ष 727 मिलियन पाउंड प्लास्टिक को सागर में डंप किया जा रहा है तथा भारत की गंगा नदी द्वारा 98 मिलियन पाउंउ प्लास्टिक प्रतिमाह समुद्र में आ रहा है।
 समुद्री विशेषज्ञों के अनुसार इसी प्रकार प्लास्टिक समुद्र में गिरता रहा तो वर्ष 2050 तक वजन के हिसाब से समुद्र में मछलियों से अधिक प्लास्टिक होगा। प्लास्टिक के छोटे-छोटे टुकडे जिनकों माइक्रो प्लास्टिक कहा जाता है वे फूड चेन के द्वारा मानव शरीर और पर्यावरण में आ रहे है जिससे कैंसर व अन्य भयावह व्याधियाँ उत्पन्न हो रही है। अतः प्लास्टिक को जीवन से हटाने के लिये गंभीर प्रयास करने की जरूरत है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा, ’मनुष्य ने अपने जीवन को प्लास्टिक की विष वेल से लपेट रखा है और वही प्लास्टिक उसे चारों ओर से विकृत कर रहा है। अब प्रश्न जल का है जिसके बिना जीवन की कोई परिकल्पना नहीं की जा सकती। जल है तो जीवन है अतः जल की संस्कृति को समझकर जल स्रोतो एवं नदियों को अविरल एवं दीर्घजीवी बनाना होगा तभी मानव का कल सुरक्षित रह सकता है अन्यथा जल के बिना कल को; भविष्य को इतिहास में परिवर्तित होते देर नहीं लगेगी। उन्होने सभी संस्थाओं, सामाजिक संस्थाओं, समाज के लोगों और पूज्य संतों से आह्वान करते हुये कहा कि सभी को मिलकर जल संरक्षण क्रान्ति करने की आवश्यकता है। कल को सुरक्षित करने के लिये जल को सुरक्षित करना नितांत आवश्यक है।’
जल एवं विद्युत विभाग के अधिकारियों ने परमार्थ परिवार के सदस्यों से ग्लोबल इण्टरफेथ वाश एलायंस एवं गंगा एक्शन परिवार के माध्यम से जल प्रबंधन, जल की स्वच्छता एवं पर्यावरण स्वच्छता में सुधार लाने हेतु किये जा रहे व्यापक प्रयासों, विचारों एवं अनुभवों का आदान-प्रदान किया।


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