23 सालों से इंसाफ की आस में उत्तराखंड
देहरादून-- उत्तर प्रदेश से अलग बने उत्तरांचल बाद में उत्तराखंड में तीन सरकारों का कार्यकाल रहा चौथी सरकार का कार्यकाल चल रहा है मगर इंसाफ के नाम पर हर सरकार फेल रही है हमारे राज्य आंदोलनकारियों को नहीं मिला अभी तक इंसाफ आखिर जिन आंदोलनकारियों की चिता पर बने उत्तराखंड और उसमें राज कर रहे नेताओं को मुख्यमंत्री बनने का मौका मिलता रहा मगर उन्होंने कोई ठोस कदम नहीं उठाया इन 23 सालों में और सत्ता के नशे में चूर रहें हैं! इसलिए जहां पूरा देश 2 अक्टूबर को पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री व गांधी जयंती मनाता है। वही उत्तराखंड में लोगों के लिए यह एक काला दिन होता हैं।
उत्तराखंड राज्य के लिए किये आन्दोलन में 2 अक्टूबर 1994 का दिन काला दिन के रूप में इतिहास में दर्ज है. मुजफ्फर नगर चौराहे पर अन्दालोंकरियो के साथ दुराचार और जुल्म की कहानी आज भी अपने अंजाम को तरस रही है क्योकि इसके दोषियों को आज भी सजा नही मिली है।
1994 उत्तराखण्ड राज्य एवं आरक्षण को लेकर छात्रों ने सामूहिक रूप से आन्दोलन किया। मुलायम सिंह यादव के उत्तराखण्ड विरोधी वक्तव्य से क्षेत्र में आन्दोलन तेज़ हो गया। उत्तराखण्ड क्रान्ति दल के नेताओं ने अनशन किया। उत्तराखण्ड में सरकारी कर्मचारी पृथक राज्य की माँग के समर्थन में लगातार तीन महीने तक हड़ताल पर रहे तथा उत्तराखण्ड में चक्काजाम और पुलिस फ़ायरिंग की घटनाएँ हुईं। उत्तराखण्ड आन्दोलनकारियों पर मसूरी और खटीमा में पुलिस द्वारा गोलियाँ चलाईं गईं। संयुक्त मोर्चा के तत्वाधान में 2 अक्टूबर, 1994 को दिल्ली में भारी प्रदर्शन किया गया। इस संघर्ष में भाग लेने के लिये उत्तराखण्ड से हज़ारों लोगों की भागीदारी हुई। प्रदर्शन में भाग लेने जा रहे आन्दोलनकारियों को मुजफ्फर नगर में बहुत प्रताड़ित किया गया और उन पर पुलिस ने गोलीबारी की और लाठियाँ बरसाईं तथा महिलाओं के साथ दुराचार और अभद्रता की गयी। इसमें अनेक लोग हताहत और घायल हुए। इस घटना ने उत्तराखण्ड आन्दोलन की आग में घी का काम किया। अगले दिन तीन अक्टूबर को इस घटना के विरोध में उत्तराखण्ड बंद का आह्वान किया गया जिसमें तोड़फोड़, गोलीबारी तथा अनेक मौतें हुईं।
उत्तराखंड राज्य के लिए किये आन्दोलन में 2 अक्टूबर 1994 का दिन काला दिन के रूप में इतिहास में दर्ज है. मुजफ्फर नगर चौराहे पर अन्दालोंकरियो के साथ दुराचार और जुल्म की कहानी आज भी अपने अंजाम को तरस रही है क्योकि इसके दोषियों को आज भी सजा नही मिली है।
1994 उत्तराखण्ड राज्य एवं आरक्षण को लेकर छात्रों ने सामूहिक रूप से आन्दोलन किया। मुलायम सिंह यादव के उत्तराखण्ड विरोधी वक्तव्य से क्षेत्र में आन्दोलन तेज़ हो गया। उत्तराखण्ड क्रान्ति दल के नेताओं ने अनशन किया। उत्तराखण्ड में सरकारी कर्मचारी पृथक राज्य की माँग के समर्थन में लगातार तीन महीने तक हड़ताल पर रहे तथा उत्तराखण्ड में चक्काजाम और पुलिस फ़ायरिंग की घटनाएँ हुईं। उत्तराखण्ड आन्दोलनकारियों पर मसूरी और खटीमा में पुलिस द्वारा गोलियाँ चलाईं गईं। संयुक्त मोर्चा के तत्वाधान में 2 अक्टूबर, 1994 को दिल्ली में भारी प्रदर्शन किया गया। इस संघर्ष में भाग लेने के लिये उत्तराखण्ड से हज़ारों लोगों की भागीदारी हुई। प्रदर्शन में भाग लेने जा रहे आन्दोलनकारियों को मुजफ्फर नगर में बहुत प्रताड़ित किया गया और उन पर पुलिस ने गोलीबारी की और लाठियाँ बरसाईं तथा महिलाओं के साथ दुराचार और अभद्रता की गयी। इसमें अनेक लोग हताहत और घायल हुए। इस घटना ने उत्तराखण्ड आन्दोलन की आग में घी का काम किया। अगले दिन तीन अक्टूबर को इस घटना के विरोध में उत्तराखण्ड बंद का आह्वान किया गया जिसमें तोड़फोड़, गोलीबारी तथा अनेक मौतें हुईं।
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