उत्तराखण्ड भी पूर्णतः आर्गेनिक राज्य बन सकता हैं–राज्यपाल

टिहरी–राज्यपाल एवं कुलाधिपति बेबी रानी मौर्य ने टिहरी के रानीचैरी में वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली उत्तराखण्ड औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय भरसार के प्रथम दीक्षांत समारोह में प्रतिभाग किया। इस अवसर कुल 412 विद्यार्थियों को डिग्री वितरित की गई। 06 उत्कृष्ट विद्यार्थियों को स्वर्ण पदक, 06 विद्यार्थियों को रजत पदक तथा 06 विद्यार्थियों को कांस्य पदक वितरित किये गये। अपने दीक्षांत सम्बोधन में राज्यपाल  बेबी रानी मौर्य ने कहा कि औद्यानिकी, वानिकी और पर्वतीय कृषि के क्षेत्र में सक्षम मानव संसाधन प्रदान करना और नये लाभकारी शोध तथा अनुसंधान कार्य करना विश्वविद्यालय की प्राथमिकता होनी चाहिए। जलवायु परिवर्तन के साथ उद्यानों, वनों और कृषि प्रबंधन के कार्यों में चुनौती बढ़ी है। इसका सीधा असर हमारे किसानों पर पड़ा है। कृषि और बागवानी को पर्वतीय क्षेत्रों की आर्थिकी के लिये वरदान बताते हुए राज्यपाल बेबी रानी मौर्य  ने कहा कि यहाँ बेमौसमी सब्जियों और कई प्रकार के फलों के उत्पादन की असीम संभावनाएँ हैं। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड के पर्वतीय भू-भागों में बारह-अनाजा खेती प्रचलित रही है, जिसमें मंडुआ, कुट्टू, रामदाना, चैलाई और कई प्रकार की दालों की खेती की जाती है। अपने स्वास्थ्यवर्द्धक गुणों के कारण उत्तराखण्ड के उत्पादों की मांग देश-विदेश में होती है।


जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग पर बल देते हुए राज्यपाल ने कहा कि उत्तराखण्ड राज्य के लिए ‘जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग’ सहित जैविक कृषि के अन्य सभी माडलों की संभावनाओं पर पर्याप्त अध्ययन और शोध किया जाना जरूरी है। राज्य के पर्यावरण, वन, नदी-जल संपदा को रासायनिक पदार्थों से बचाते हुए, जैविक खेती को बढ़ावा देना समय की मांग है। सिक्किम का उदाहरण देते हुए राज्यपाल ने कहा कि उत्तराखण्ड भी पूर्णतः आर्गेनिक राज्य बन सकता है। उत्तराखण्ड के पर्वतीय अंचलों में कृषि को व्यवसाय से जोड़कर ही आर्थिक विकास के द्वार खोले जा सकते हैं। मुख्य फसलों के साथ-साथ फल, फूल, औषधीय वनस्पतियों आदि से सम्बन्धित व्यावसायिक गतिविधियों को बढ़ावा देना आवश्यक है। औद्यानिकी और वानिकी को रोजगार के अवसरों से जोड़ना होगा तभी पर्वतीय क्षेत्रों में पलायन की समस्या का समाधान किया जा सकता है। पर्वतीय कृषकों के लिए ऐसे माॅडल का निर्माण एवं समावेश करने की आवश्यकता है, जिससे कृषक अपने उत्पादों का आसानी से भण्डारण, प्रसंस्करण, विपणन कर सकें। कृषि एवं बागवानी के अतिरिक्त उत्तराखण्ड की वन सम्पदा भी मानवता के लिए एक वरदान है। वनों के बेहतर प्रबन्धन और वन क्षेत्रफल बढ़ाने के लिए लगातार प्रयास जरूरी है। 


राज्यपाल ने कहा कि विश्वविद्यालय को उत्तराखण्ड में वृक्षारोपण और जल संरक्षण की दिशा में एक विस्तृत कार्य योजना बनाकर कार्य करना चाहिए। अध्ययन और शोध कार्यों के साथ-साथ दूर-दराज के गावों में वृक्षारोपण और जल-स्रोतों के संरक्षण पर ठोस कार्य किया जाना जरूरी है। राज्यपाल बेबी रानी मौर्य  ने आह्वाहन किया कि वानिकी विश्वविद्यालय के प्रत्येक छात्र को प्रति वर्ष कम से कम पांच पौधों का रोपण कर उनकी देखभाल करनी चाहिए। विश्वविद्यालय को अपनी परीक्षा प्रणाली में विद्यार्थियों द्वारा वृक्षारोपण और देखभाल के लिए कुछ अंक देने की व्यवस्था भी करनी चाहिए जिससे उनका मनोबल बढ़ेगा और वे अधिक उत्साह के साथ इस कार्य को करेंगे। नयी परिस्थितियों के अनुसार कृषि फसलों, फसल-चक्रों में अपेक्षित परिवर्तनों पर शोध करना कृषि वैज्ञानिकों की प्राथमिकता होनी चाहिए। विधायक धन सिंह नेगी ने कहा कि सरकार जैविक कृषि को प्राथमिकता दे रही है। अधिकारी कृषि अनुसंधानो से समन्वय बनाकर राज्य के विकास को आगे बढ़ा सकते है। पदमश्री सुभाष पालेकर ने शून्य लागत अधिकतम उत्पादन खेती के बारे में जानकारी दी। इस अवसर पर कुलपति वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली उत्तराखण्ड औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय भरसार डा0 बीवीआरसी पुरूषोतम, कुलपति श्रीदेव सुमन उत्तराखण्ड विश्वविद्यालय डा0 यू0एस0 रावत, उपनिदेशक एन0एस0 राठौर तथा अन्य गणमान्य अतिथि, छात्र-छात्रायें, अभिभावक उपस्थित थे।

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