हथेली पर लाल निशान, मासिक धर्म के प्रति जागरूकता

ऋषिकेश– परमार्थ निकेतन गंगा तट आज राष्ट्र, पर्यावरण एवं जल संरक्षण, माँ गंगा सहित देश की सभी नदियों को समर्पित मानस कथा में परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती और जीवा की अन्तर्राष्ट्रीय महासचिव साध्वी भगवती सरस्वती ने विश्व महावारी दिवस पर मासिक धर्म स्वच्छता का संदेश दिया। इस अवसर पर यूनिसेफ के द्वारा रेड डाॅट कैंपेन चलाया जा रहा है जिसमें अपनी हथेली पर लाल निशाल लगाकर अपनी फोटो सोशल मीडिया पर शेयर करना। मासिक धर्म स्वच्छता और जागरूकता से तात्पर्य केवल महिलाओं और लड़कियों को सेनेटरी पैड का उपयोग करना और स्कूल बीच में न छोड़ने के प्रति जागरूक करने के अलावा साथ सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उपयोग के पश्चात सैनेटरी पैड का किस प्रकार निस्तारण करे।
अक्सर देखा गया है कि उपयोग के पश्चात खुला ही सैनेटरी पैड कूडा दान में डाल दिया जाता है। पुणे की एक रिपोर्ट के अनुसार स्वच्छता कार्यकर्ता पाॅच लाख से अधिक घरों से 6.5 लाख किलोग्राम कचरा इकट्ठा करते है जिसमें से 3 फीसदी सैनेटरी कचरा होता है, जिसका मतलब है कि वे हर दिन करीब 20 हजार किलोग्राम गंदे डायपर और सेनेटरी पैड सम्भालते है। ऐसे में सैनेटरी कचरा अलग करने में प्रतिदिन मक्खियों, कीड़ों और असहनीय गंध का सामना करना पड़ता है। इससे उन श्रमिकों को सिरदर्द, चक्कर, बुखार और अन्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है अतः सैनेटरी पैड और डाइपर का इस्तेमाल तो करे परन्तु उसके निस्तारण पर विशेष ध्यान दें।स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि ’’आज विश्व महावारी दिवस पर कहा कि ’’ये शर्म नहीं शान है नारी की पहचान है, यदि नारी स्वस्थ, माँ स्वस्थ तो देश स्वस्थ और स्वच्छता से सीधा-सीधा सम्बंध है मासिक धर्म का। यदि देश की मातायें और बेटियाँ स्वस्थ रहेगी तो बच्चे स्वस्थ रहेंगे; बच्चे स्वस्थ होगे तो देश स्वस्थ होगा क्योकि बीमार देश कभी प्रगति नही कर सकता है इसलिये इसके महत्व को समझे और स्वच्छ एवं स्वस्थ रहने का संकल्प करें।आज विश्व मासिक धर्म स्वच्छता दिवस के अवसर पर जीवा की अन्तर्राष्ट्रीय महासचिव साध्वी भगवती सरस्वती ने कहा कि समाज में फैली मासिक धर्म सम्बन्धी गलत अवधारणा को दूर करने और महिलाओं और किशोरियों को महावारी प्रबंधन सम्बन्धी सही जानकारी देना ही इसका उद्देश्य है। आंकड़े के अनुसार आज भी 50 प्रतिशत से ज्यादा किशोरियां मासिक धर्म के कारण स्कूल नहीं जाती हैं, महिलाओं को आज भी इस मुद्दे पर बात करने में झिझक होती है जबकि आधे से ज्यादा को तो ये लगता है कि मासिक धर्म कोई अपराध है।अब हमें अपनी चुप्पी तोड़नी होगी। वेबसाइट-इंस्टाग्राम इस बदलाव का ज्वलंत उदाहरण है।
विशेषज्ञों की राय में यह एक खूबसूरत और सराहनीय कदम है क्योंकि अब वक्त आ गया है कि इन बातों को लेकर हम अपनी चुप्पी तोड़े। आज के बदले परिवेश में लड़कियां बाहर निकल रही हैं, कभी पढ़ने के लिए तो कभी नौकरी के लिए, ऐसे में अगर वो मासिक धर्म को लेकर सकुचायी रहेंगी तो वक्त के साथ कैसे चल पाएंगी।मासिक-धर्म को लेकर गलत सोच आज भी देश के कई परिवारों में है यथा लड़कियों को मासिक धर्म के दौरान परिवार से अलग थलग कर दिया जाता है, मंदिर जाने या पूजा करने की मनाही होती है, रसोई में प्रवेश वर्जित होता है। यहां तक कि उनका बिस्तर अलग कर दिया जाता है और परिवार के किसी भी पुरुष सदस्य से इस विषय में बातचीत न करने की हिदायत दी जाती है।मासिक धर्म को लेकर डाक्टरों का मानना है कि मासिक धर्म के बारे में बताने वाली सबसे अच्छी जगहें स्कूल हैं, विद्यालय है जहां इस विषय को स्वच्छता से जोड़कर चर्चा की जा सकती है। इसके लिए जागरूक और उत्साही शिक्षकों की जरूरत है तथा माता अपनी बेटियों को अच्छे से मासिक धर्म से जुड़ी महत्वपूर्ण बातों के विषय में जानकारी दे सकें। मासिक धर्म कोई अपराध नहीं टीवी, इंटरनेट पर आज हर तरह की सामग्री मौजूद है जिसने लोगों की सोच मासिक धर्म के बारे में बदली है लेकिन अभी भी काफी लोग इस बारे में खुलकर बातें नहीं कर रहे हैं। लोगों को समझना होगा कि मासिक धर्म कोई अपराध नहीं है बल्कि प्रकृति की ओर से महिलाओं को दिया गया एक तोहफा है।

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