घर-घर में ढोल बजेंगे, बेटी-बेटा दोनो हमारी खुशी बनेंगे

देहरादून—राष्ट्रीय बालिका दिवस के अवसर पर रेसकोर्स स्थित गुरूरामराय पब्लिक स्कूल में जिलाधिकारी एस.ए मुरूगेशन द्वारा ‘बेटी बचाओ, बेटी पढाओ’ विषय पर आयोजित कार्यशाला का शुभारम्भ किया गया। कार्यक्रम में ‘बेटी बचाओ, बेटी पढाओ’ विषय पर भाषण प्रतियोगिता, नुक्कड़ नाटक, वाद-विवाद प्रतियोगिता, गीतगायन में अच्छा प्रदर्शन करने वाले बालक-बालिकाओं को पुरस्कार वितरण, रंगोली कार्यक्रम का आयोजन भी किया गया, जिसमें बालक-बालिकाओं सहित शिक्षक-शिक्षिकाओं और मुख्य अतिथि और विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रतिभाग कर रहे महानुभवों ने अपने विचार व्यक्त किये। ‘‘गर्भ से ही सबको पुकार रही है, माता पिता ईश्वर समाज। मुझे जन्म लेने दो, दुनिया में आने दो।।’’ ‘‘ कोख में ना मारो बाबुल, बेटी हूॅ तुम्हारी’ रूखी-सूखी रोटी देना, जो दोगे उसी पर पर गुजारा करूॅगी।।’’
यह सन्देश भावुक मन से रूॅदे कंठ से विद्यालय की बालिकाओं ने कार्यक्रम के दौरान देते हुए उस पुरूष प्रभूत्व समाज को संदेश देने की कोशिश की, कि - ‘‘ मै भी पढना चाहती हूॅ, मै भी बढना चाहती हूॅ।धर्म जाति, पंथ-संप्रदाय से उपर उठकर,सेवा देश की करना चाहती हॅू।’’जिलाधिकारी एस.ए मुरूगेशन ने कार्यक्रम के दौरान अपने सम्बोधन में ‘बेटी बचाओ, विषय को उपस्थित छात्रों के अन्तर्मन में उतारने के लिए सम्बोधन की शुरूआत में बच्चों से प्रश्न किये कि हम बालिका दिवस क्यों मना रहे हैं? ‘बेटी बचाओ, बेटी पढाओ’ के नारे की जरूरत क्यों आन पड़ी?जिलाधिकारी ने लिंगानुपात, जनगणना, चाल्र्स डार्विन के प्राकृतिक वरण (चयन) व उत्तरजीविता के सिद्धान्त, लिंगानुपात कम होने का कारण, पीसीपीएनडीटी एक्ट, पुरूष प्रभूत्व समाज में बेटियों के प्रति नकारात्मक सोच के कारण इत्यादि प्रश्न बच्चों से पूछे और बच्चों के द्वारा ही उनके उत्तर जानने चाहे। बड़ी उत्सुकता और जिज्ञासा से देखते हुए बच्चों को जिलाधिकारी ने उठाये गये सभी प्रश्नों के समाधान अपने माता-पिता , दादा-दादी, भाई-बहन, शिक्षकों की मदद से खोजने को प्रेरित करने के साथ ही स्वयं भी सभी प्रश्नों को विस्तार से समझाया। जिलाधिकारी ने कहा कि समाज में प्रति हजार में से वे 70-80 व्यक्ति हैं जो बेटियों को कोख में ही मार देते हैं और पूरे समाजको कलंकित करते हैं।
उन्होंने इतिहास पर दृष्टिपात करते हुए कहा कि समय के साथ बेटियों को मारने के तरीके भी बदले हैं। पहले जब अल्ट्रासाउण्ड तकनीक नही थी तो कुछ लोग बेटियों को पैदा होते ही मार देते थे। तकनीकी विकास के पश्चात गर्भ में ही मारने लगे और अगर गर्भ से किन्ही कारण बाहर आ जाय तो कुछ लोग बेटियों को कम पोषण देकर, अशिक्षित रखकर, अवसर न देकर सामाजिक कुरितियों के चलते मुख्यधारा में नही आने दे रहे हैं।, ऐसे लोग समाज के दुश्मन हैं और हमें ऐसे लोगों की पहचान करनी है। उन्होंने उदाहरण देते हुए समझाया कि आज हरियाणा-पंजाब जैसे राज्यों में लिंगानुपात इतना गिर चुका है कि यहां के अधिकतर लोग पूर्वोत्तर भारत बिहार और पहाड़ों की ओर दुल्हन ढूंढने के लिए भागते-फिर रहे हैं।जिलाधिकारी ने विभिन्न प्रतिस्पर्दाओं में राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिभाग करने वाली बालिकाओं तथा कविता पाठ व नुक्कड़ नाटक में अच्छा प्रदर्शन करने वाले बच्चों को पुरस्कृत करते हुए उन्हें प्रशस्ति पत्र भी प्रदान किये।दौरान उपस्थित शिक्षकों-शिक्षिकाओं ने भी बेटी सुरक्षा विषय पर केन्दित कविता पाठ से उपस्थित जन समूह का ध्यान आकर्षित किया।माना कि पुरूषों से तनिक कम ताकत है, पर मन की ताकत है मुझमें प्रेम भाव, समर्पण है। ना लगे गृहण मेरे जीवन में, मै सक्षम होना चाहती हूॅ। ‘‘अगर मेरा दुनिया में आना, तुम्हैं मंजूर नही। किसी दिन तड़पोगे बेटी को, वो दिन अब दूर नही।।’’ इस दौरान पीसीपीएनडीटी प्रकोष्ठ द्वारा तैयार की गयी लघु फिल्म भी बच्चों को दिखायी गयी, जिसके आंकड़े बहुत डरावने थे। भारत की आधी आबादी महिलाओं की अनपढ है। आधी बेटियों का विवाह 18 वर्ष से पूर्व कर दिया जाता है। हर एक घण्टे में 1 दहेज हत्या। 100 में से 40 महिलायें अपने पति द्वारा प्रताड़ित हो रही है। पिछले 20 वर्ष में 1 करोड़ बेटियाॅ गर्भ में मारी गयी। अर्थात ‘‘हुआ बेटा तो ढोल बजाया, हुई बेटी तो मातम मनाया’’। अगर यही हालात रहे तो बचपन माॅ के बगैर, घर पत्नी बगैर, आंगन बेटी के बगैर और संसार औरत के बगैर कैसे रहेगा? सोच अपनी बदलोगे तो फिर ‘‘घर-घर में ढोल बजेंगे, बेटी-बेटा दोनो हमारी खुशी बनेंगे।’’ इस संदेश को भारत के हर घर और कोने-कोने में प्रसारित करने की जरूरत है।मुख्य चिकित्साधिकारी एस.के गुप्ता, अपर मुख्य चिकित्साधिकाीर डाॅ संजीव दत्त, डाॅ वन्दना, डाॅ उत्तम सिंह चौहान, प्रधानाचार्य एस.जी.आर.आर कालेज प्रतिभा खत्री सहित बड़ी संख्या में स्कूली बच्चे और चिकित्सा विभाग के कार्मिक उपस्थित थे।

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