ओजोन परत के क्षय से दुष्प्रभावों पर चर्चा
देहरादून
वन अनुसंधान संस्थान ने विश्व ओजोन दिवस मनाया, जिसमें विविध कार्यकलापों का आयोजन किया गया तथा वन अनुसंधान सस्थान सम विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों एवं शोध छात्रों द्वारा भाग लिया गया।कार्यक्रम की शुरूआत संस्थान निदेशक डा सविता, भावसे के विश्व ओजोन दिवस पर संक्षिप्त परिचय द्वारा हुआ। उन्होने यूएनईपी-डब्ल्यू एम ओ की रिपोर्ट पर जिक्र करते हुए कहा कि ओजोन परत का पुर्नरोत्थान हो रहा है। हालांकि उन्होने ओजोन के भविष्य पर चिंता व्यक्त की जैसा कि सी ओ 2.सी एच 4 तथा एन 2ओ की निरंतर वृद्वि हो रही है जिससे 21वीं शताब्दी के अंत तक यह परत क्षय होने के कगार पर पहुंच जाएगी। उन्होने कहा कि ओजोन पर कार्य कर रहे वैज्ञानिकों ने इससे संबंधित मुद्दे उठाकर इस पर गहरी चिंता व्यक्त की है लेकिन जलवायु परिवर्तन के इस समय में वैज्ञानिकों को ग्रीनहाउस गैसों की वृद्वि को रोकने के तुरंत उपाय खोजने होंगे।
वन अनुसंधान संस्थान सम विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों ने आज की विलासितापूर्ण जीवनशैली तथा आधुनिक उपकरणों के अत्यधिक उपयोग से ओजोन परत पर पड रहा बुरा प्रभाव तथा इसकी सुरक्षा हेतु अपनी जीवनशैली में कैसे बदलाव करें पर ’नुक्कड नाटक, प्रस्तुत किए। भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद् के विभिन्न वक्ताओं ने ओजोन परत के क्षय होने के भयंकर परिणामों, ओजोन परत के क्षय होने के कारणों तथा ओजोन परत को क्षय होने से बचाने के उपाय की कार्यनीतियों के विषयों पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होने अपनी बात पर जोर देते हुए कहा कि एक भू क्षेत्र की विलासितापूर्ण जीवन से दूसरे क्षेत्र के लोगों के जीवन पर भी बुरा प्रभाव पडता है।इस अवसर पर ओजोन परत के क्षय के दुष्प्रभावों पर वन अनुसंधान संस्थान के लोगों तथा आम जनता में जागरूकता उत्पन्न करने के लिए इस विषय पर फोटों व पोस्टर भी प्रदर्शित किए गए। डा नीलू गेरा व एस डी शर्मा, उप महानिदेशक, भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद्, डा एन के उप्रेती- समूह समन्वयक,व अ सं,नीलिमा शाह, कुलसचिव, व अ सं, डा के पी सिंह, प्रचार एवं जनसम्पर्क अधिकारी, वन अनुसंधान संस्थान के विभिन्न प्रभागों के प्रमुख, व अ सं सम विश्वविद्यालय के डीन तथा कुलसचिव, भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद् तथा वन अनुसंधान संस्थान के कर्मचारी भी इस कार्यक्रम में उपस्थित रहे। अंत में व अ सं सम विश्वविद्यालय के डीन डा एच एस गिनवाल ने धन्यवाद ज्ञापन दिया।
वन अनुसंधान संस्थान ने विश्व ओजोन दिवस मनाया, जिसमें विविध कार्यकलापों का आयोजन किया गया तथा वन अनुसंधान सस्थान सम विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों एवं शोध छात्रों द्वारा भाग लिया गया।कार्यक्रम की शुरूआत संस्थान निदेशक डा सविता, भावसे के विश्व ओजोन दिवस पर संक्षिप्त परिचय द्वारा हुआ। उन्होने यूएनईपी-डब्ल्यू एम ओ की रिपोर्ट पर जिक्र करते हुए कहा कि ओजोन परत का पुर्नरोत्थान हो रहा है। हालांकि उन्होने ओजोन के भविष्य पर चिंता व्यक्त की जैसा कि सी ओ 2.सी एच 4 तथा एन 2ओ की निरंतर वृद्वि हो रही है जिससे 21वीं शताब्दी के अंत तक यह परत क्षय होने के कगार पर पहुंच जाएगी। उन्होने कहा कि ओजोन पर कार्य कर रहे वैज्ञानिकों ने इससे संबंधित मुद्दे उठाकर इस पर गहरी चिंता व्यक्त की है लेकिन जलवायु परिवर्तन के इस समय में वैज्ञानिकों को ग्रीनहाउस गैसों की वृद्वि को रोकने के तुरंत उपाय खोजने होंगे।
वन अनुसंधान संस्थान सम विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों ने आज की विलासितापूर्ण जीवनशैली तथा आधुनिक उपकरणों के अत्यधिक उपयोग से ओजोन परत पर पड रहा बुरा प्रभाव तथा इसकी सुरक्षा हेतु अपनी जीवनशैली में कैसे बदलाव करें पर ’नुक्कड नाटक, प्रस्तुत किए। भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद् के विभिन्न वक्ताओं ने ओजोन परत के क्षय होने के भयंकर परिणामों, ओजोन परत के क्षय होने के कारणों तथा ओजोन परत को क्षय होने से बचाने के उपाय की कार्यनीतियों के विषयों पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होने अपनी बात पर जोर देते हुए कहा कि एक भू क्षेत्र की विलासितापूर्ण जीवन से दूसरे क्षेत्र के लोगों के जीवन पर भी बुरा प्रभाव पडता है।इस अवसर पर ओजोन परत के क्षय के दुष्प्रभावों पर वन अनुसंधान संस्थान के लोगों तथा आम जनता में जागरूकता उत्पन्न करने के लिए इस विषय पर फोटों व पोस्टर भी प्रदर्शित किए गए। डा नीलू गेरा व एस डी शर्मा, उप महानिदेशक, भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद्, डा एन के उप्रेती- समूह समन्वयक,व अ सं,नीलिमा शाह, कुलसचिव, व अ सं, डा के पी सिंह, प्रचार एवं जनसम्पर्क अधिकारी, वन अनुसंधान संस्थान के विभिन्न प्रभागों के प्रमुख, व अ सं सम विश्वविद्यालय के डीन तथा कुलसचिव, भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद् तथा वन अनुसंधान संस्थान के कर्मचारी भी इस कार्यक्रम में उपस्थित रहे। अंत में व अ सं सम विश्वविद्यालय के डीन डा एच एस गिनवाल ने धन्यवाद ज्ञापन दिया।
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