भारतीय संस्कृति प्रेम, विश्वास, शान्ति और साहस का प्रतीक -स्वामी

ऋषिकेश-परमार्थ निकेतन गंगा तट पर आयोजित वेद वैभवम् एवं महारूद्र पारायण अनुष्ठान का समापन हुआ। दक्षिण भारत से आये  शर्मा शास्त्रीगल , वेद विद्वान और उनके अनुयायियों ने पांच दिनों तक गंगा स्नान, सत्संग, पूज्य संतों का दर्शन और वेद परिचर्चा का लाभ लिया। परमार्थ गंगा तट पर आयोजित वेद वैभवम् एवं महारूद्र पारायण के समापन अवसर पर परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती  ने दक्षिण भारत से आये वेद विद्वानों का रूद्राक्ष की माला पहनाकर अभिनन्दन किया तथा माता पृथ्वी की रक्षा हेतु अधिक से अधिक वृक्षारोपण करने हेतु प्रेरित किया।स्वामी चिदानन्द सरस्वती  ने ’’वेदो की महत्ता बताते हुये कहा कि वेदों से ही हमें जीने के स्वर मिले तथा वेदों ने ही हमें जिन्दगी को जानने का पाठ सिखाया है। मानव सभ्यता और संस्कृति को हमने वेदों से ही जाना है। आज वेदों का उद्घोष माँ गंगा के तट से हो रहा है यह बहुत ऐतिहासिक क्षण है। साथ ही स्वामी जी ने कहा कि अपने-अपने आराध्य की देव भक्ति करे, परन्तु देश भक्ति सर्वोपरि हो। उन्होने सभी युवाओं से आह्वान किया कि भारतीय संस्कृति प्रेम, विश्वास, शान्ति और साहस का प्रतीक है इसे आत्मसात कर जीवन में आगे बढ़ते रहे यही जीवन का सार हैा।’’
  शर्मा शास्त्रीगल  ने वेद वैभवम् की व्याख्या करते हुये बताया कि वेदों में नारियों को विशिष्ट एवं गरिमामय स्थान प्राप्त है। वेदों ने नारी को घर की साम्राज्ञी; देश की शासक तथा उनकी सामाजिक भूमिका का भी उत्कृष्ट चित्रण किया है। वेदों में नारी की शिक्षा-दीक्षा, गुण, कर्तव्य, अधिकारों की स्वतंत्रता का वर्णन मिलता है। उन्होने सभी से निवेदन किया की वर्तमान युग की नारियों को भी अपनी प्रतिभा को विकसित करने का पूरा अवसर दिया जाना चाहिये। शर्मा शास्त्रीगल  ने अवगत कराया कि आगामी वर्ष परमार्थ  गंगा तट पर प्रकृति विशाल महायज्ञ का आयोजन किया जायेगा। स्वामी चिदानन्द सरस्वती के पावन सन्निध्य में दक्षिण भारत से आये वेद विद्वानों ने विश्व स्तर पर जल की आपूर्ति हेतु वाटर ब्लेसिंग सेरेमनी सम्पन्न की। इस पावन अवसर पर जीवा की अन्तर्राष्ट्रीय महासचिव साध्वी भगवती सरस्वती , राम कथा मर्मज्ञ  मुरलीधर जी महाराज सपरिवार,  नन्दिनी त्रिपाठी एवं परमार्थ गुरूकुल के आचार्यगण, ऋषिकुमार और परमार्थ परिवार के सदस्य उपस्थित थे।


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