भौतिकता से दूर आध्यात्मिक वातावरण में परिणय सूत्र में बंधा रशियन जोड़ा
ऋषिकेश- परमार्थ गंगा तट पर सादगी, दिव्यता और वैदिक मंत्रों के उच्चारण के साथ रूस के सोची शहर से आया रशियन जोड़ विवाह सूत्र में बंधा। इस पावन अवसर पर परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष, गंगा एक्शन परिवार के प्रणेता और ग्लोबल इण्टरफेथ वाश एलांयस के संस्थापक स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने वर रूस्लान और वधु वेलोवाइवा को सुखी-समृद्ध जीवन का आशीर्वाद स्वरूप पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक रूद्राक्ष का पौधा दिया तथा दोनों को एक ही माला पहनाकर दो शरीर एक प्राण की तरह जीने का संदेश दिया।विवाह हेतु रूस से ऋषिकेश, परमार्थ गंगा तट पर इस जोड़े को भारतीय संस्कृति और संस्कारों की महिमा खींच लायी। भौतिकता से दूर आध्यात्मिक वातावरण में वेद मंत्रों के साथ रूस्लान और वेलोवाइवा के सात फेरे लेकर रूस की संस्कृति के साथ भारत की संस्कृति; गंगा की संस्कृति को भी आत्मसात किया।स्वामी चिदानन्द सरस्वती के पावन आशीर्वाद से परमार्थ गुरूकुल के आचार्यो एवं ऋषिकुमारों ने विवाह सम्पन्न किया।स्वामी
चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि ’’पूरी दुनिया में हिन्दू धर्म के अनुयायियों द्वारा अनेक सांस्कृतिक और पांरम्परिक उत्सव मनाये जाते है, उन सब में विवाह का उत्सव प्रमुख होता है। विवाह में केवल दो दिलों का नहीं बल्कि दो परिवारों का मेल होता है परन्तु आज माँ गंगा के तट पर दुनिया के दो देशों की संस्कृतियों का मिलन हो रहा है यह एक ऐतिहासिक अवसर है जब लोग गोवा के तट को छोड़कर गंगा के तट पर आ रहे है। उन्होने कहा कि जीवन की शुरूआत गंगा तट से शुरू हो तो जीवन भी गंगा सागर बन जाता है। गंगा तट अनेक संस्कृतियों का संगम है चाहे विवाह हो; वर्षगांठ हो या अन्य कोई उत्सव लोग शान्ति की तलाश में गंगा तट पर आने लगे है इससे हमारी संस्कृति; संस्कार; परिवार और परम्परायें बनी रहेगी। स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि भारतीय संस्कृति की जड़ों से जुड़ेगे तो व्यस्त रहते हुये भी मस्त रहेंगे स्वस्थ रहेंगे और आत्मिक शान्ति का अनुभव करेंगे और यही तो
सैलानियों के लिये उत्तराखण्ड का वरदान है।’’स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने पूरे विश्व में एक अभियान शुरू किया है जिसके अन्तर्गत लोग भारतीय संस्कृति, संस्कार और गंगा की संस्कृति से जुडे और दूसरों को भी जोड़े। इसके अनेक उदाहरण प्रतिदिन परमार्थ गंगा तट पर देखे जा सकते है।नवविवाहित रूस्लान और वेलोवाइवा ने कहा कि स्वामी चिदानन्द सरस्वती के सान्निध्य में रूस से ऋषिकेश आकर विवाह करना हमारे लिये ईश्वरीय वरदान से कम नहीं है। उन्होने कहा कि हमारे नये जीवन की शुरूआत पर आशीर्वाद स्वरूप पहला तोहफा स्वामी चिदानन्द सरस्वती द्वारा प्रदान किया दिव्य रूद्राक्ष का पौधा है। हम माँ गंगा के तट से संकल्प लेकर जायेंगे कि जहां भी जायेंगे पर्यावरण संरक्षण का संदेश एवं वृक्षारोपण को अपने जीवन का अभिन्न अंग बनायेंगे।’’इस अवसर पर परमार्थ गंगा तट पर अनेक देशी-विदेशी सैलानी, परमार्थ गुरूकुल के ऋषिकुमार और आचार्यगण उपस्थित थे।
चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि ’’पूरी दुनिया में हिन्दू धर्म के अनुयायियों द्वारा अनेक सांस्कृतिक और पांरम्परिक उत्सव मनाये जाते है, उन सब में विवाह का उत्सव प्रमुख होता है। विवाह में केवल दो दिलों का नहीं बल्कि दो परिवारों का मेल होता है परन्तु आज माँ गंगा के तट पर दुनिया के दो देशों की संस्कृतियों का मिलन हो रहा है यह एक ऐतिहासिक अवसर है जब लोग गोवा के तट को छोड़कर गंगा के तट पर आ रहे है। उन्होने कहा कि जीवन की शुरूआत गंगा तट से शुरू हो तो जीवन भी गंगा सागर बन जाता है। गंगा तट अनेक संस्कृतियों का संगम है चाहे विवाह हो; वर्षगांठ हो या अन्य कोई उत्सव लोग शान्ति की तलाश में गंगा तट पर आने लगे है इससे हमारी संस्कृति; संस्कार; परिवार और परम्परायें बनी रहेगी। स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि भारतीय संस्कृति की जड़ों से जुड़ेगे तो व्यस्त रहते हुये भी मस्त रहेंगे स्वस्थ रहेंगे और आत्मिक शान्ति का अनुभव करेंगे और यही तो
सैलानियों के लिये उत्तराखण्ड का वरदान है।’’स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने पूरे विश्व में एक अभियान शुरू किया है जिसके अन्तर्गत लोग भारतीय संस्कृति, संस्कार और गंगा की संस्कृति से जुडे और दूसरों को भी जोड़े। इसके अनेक उदाहरण प्रतिदिन परमार्थ गंगा तट पर देखे जा सकते है।नवविवाहित रूस्लान और वेलोवाइवा ने कहा कि स्वामी चिदानन्द सरस्वती के सान्निध्य में रूस से ऋषिकेश आकर विवाह करना हमारे लिये ईश्वरीय वरदान से कम नहीं है। उन्होने कहा कि हमारे नये जीवन की शुरूआत पर आशीर्वाद स्वरूप पहला तोहफा स्वामी चिदानन्द सरस्वती द्वारा प्रदान किया दिव्य रूद्राक्ष का पौधा है। हम माँ गंगा के तट से संकल्प लेकर जायेंगे कि जहां भी जायेंगे पर्यावरण संरक्षण का संदेश एवं वृक्षारोपण को अपने जीवन का अभिन्न अंग बनायेंगे।’’इस अवसर पर परमार्थ गंगा तट पर अनेक देशी-विदेशी सैलानी, परमार्थ गुरूकुल के ऋषिकुमार और आचार्यगण उपस्थित थे।
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