जल हैं तो कल हैं

देहरादून- जिस प्रकार से अमेरिका ने पेट्रोल के लिए  इतने युद्ध किए थे  ठीक आने वाले समय में जल के लिए भी  विश्व युद्ध हो सकते हैं  क्योंकि पूरी दुनियां में वर्तमान समय में भूजल का स्तर नीचे गिर रहा है और सतह पर जल भंडारण घट रहा है। इसलिए आने वाले वर्षों में पीने का पानी मिलना कठिन हो जाएगा। यदि इस संकट से बचना है तो पृथ्वी पर जल भंडारण और जल प्रबंधन की अपनी पुरानी परम्पराओं को फिर से जीवित करना होगा और भूजल पर से दबाव घटाना होगा। हमारे देश की सरकार इस ओर ध्यान नहीं दे रही है और ज्यादातर जमीनों पर वृक्षों का कटान हो रहा है जिसकी वजह से जंगल की जगह कंक्रीट के जंगल खड़े होते जा रहे हैं वही हमारे प्राकृतिक स्रोत तलाब भी धीरे-धीरे
विलुप्त हो रहे हैं जिसे कुएं आदि शामिल हैं पैसो के लालच में इंसान ने जंगल को काटकर कंक्रीट के जंगल खड़े कर दिए हैं  इसी कारण से वर्तमान स्थिति में तापमान भी बढ़ रहा है क्योंकि जब पेड़ ही नहीं है तो सूरज की सीधी किरणों को कौन रोकेगा पहले पेड़ हुआ करते थे तो  सूर्य की किरणें उन पेड़ों पर पड़ती थी जोकि सीधी धरती पर पड़ने नहीं देती थी हमें ध्यान रखना चाहिए कि पर्यावरण का सीधा सम्बन्ध हमारी संस्कृति से है और पर्यावरण को बचाने के लिए भारतीय संस्कृति को बचाना होगा। कुछ लोग जानते तो हैं परन्तु मानते नहीं कि पर्यावरण बिगड़ने के लिए मुख्य रूप से उत्तरदायी है भारतीय संस्कृति और जीवन शैली से बढ़ती दूरी।वर्तमान में वायुमंडल में कार्बनडाइआक्साइड की मात्रा बढ़ने से हिमखंड पिघल सकते हैं और समुद्र का जलस्तर बढ़ सकता है जिससे समुद्र के किनारे बसे नगर जलमग्न हो सकते हैं। कार्बनडाइआक्साइड को वृक्ष अपने भोजन के रुप में प्रयोग करके उसके बदले प्राणवायु देते हैं। इससे वृक्षों का महत्व समझ में आ जाना चाहिए।

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