गैरसैंण उत्‍तराखण्‍ड की आम जनता की माँग

श्रीनगर--नौजवान भारत सभा व स्‍त्री मुक्ति लीग द्वारा चलाये जा रहे ‘स्‍मृति संकल्‍प यात्रा, उत्‍तराखण्‍ड’ अभियान 10 मार्च से 13 मार्च तक श्रीनगर व उसके आस-पास के इलाकों में चला। इस दौरान जनसंपर्क, नुक्‍कड़ सभा द्वारा क्रांतिकारी विचारों का प्रचार करते हुए व्‍यापक पर्चा वितरण किया गया। इसके साथ ही ‘गैरसैंण’ को उत्‍तराखण्‍ड की राजधानी बनाये जाने को लेकर श्रीनगर में चल रहे आमरण अनशन पर बैठे आंदोलनकारियों को समर्थन दिया गया।इस आंदोलन के समर्थन में अपनी बात रखते हुए कविता कृष्‍णपल्‍लवी ने कहा कि, सबसे पहले तो हमें यह समझना होगा कि वे कौन से
तबके हैं जो ‘गैरसैंण’ को राजधानी नहीं बनने देना चाहते। इनमें सबसे पहले उत्‍तराखण्‍ड के तराई व मैदानी इलाकों के कारखानों के मालिक पूँजीपति, दूसरे इन्‍हीं इलाकों के समृद्ध फार्मर व कुलक, तीसरे भू-माफियाओं और बिल्‍डरों की लॉबी और चौथे नेताशाही-नौकरशाही तथा उच्‍च मध्‍यवर्ग के वे भ्रष्‍ट-विलासी लोग हैं जो दून घाटी में ऐश फरमा रहे हैं। ये सभी वर्तमान संसदीय बुर्जुआ राजनीति के खंभे हैं और किसी भी कीमत पर पहाड़ में राजधानी बनने देना नहीं चाहते।
गैरसैंण उत्‍तराखण्‍ड की आम जनता की माँग है, जिनकी ज़ि‍न्‍दगी पहाड़ों की अर्थव्‍यवस्‍था की तबाही से बरबाद हो गयी है। इस आंदोलन के लिए यह ज़रूरी है कि पूरे पहाड़ी क्षेत्र में संघर्ष समितियों का गठन किया जाना चाहिये। जबतक ‘गैरसैंण’ को राजधानी घोषित नहीं किया जाता तबतक नेताओं का पहाड़ में पूर्ण बहिष्‍कार किया जाना चाहिए। ‘गैरसैंण’ की लड़ाई धन शक्ति से जन शक्ति की लड़ाई है। जुझारू संकल्‍प शक्ति और संगठन बद्धता के द्वारा ही इसे लड़ा और जीता जा सकता है।
इस अभियान के दौरान नुक्‍कड़ सभा में अपनी बात रखते हुए नौजवान भारत सभा के फेबियन ने कहा कि, यह पूँजीवादी व्‍यवस्‍था श्रम और प्रकृति की लूट पर टिकी हुयी है। जबतक यह व्‍यवस्‍था रहेगी तबतक बहुसंख्‍यक आबादी अपनी बुनियादी अधिकारों से वंचित रहेगी। प्रकृति और संसाधनों की अकूत लूट के द्वारा इस पूँजीवादी साम्राज्‍यवादी व्‍यवस्‍था ने पर्यावरण के विनाश के साथ पूरे पृथ्‍वी पर जीवन के अस्तित्‍व को ही ख़तरे में डाल दिया है। आज आम मेहनतकशों, नौजवानों का संघर्ष इस पूरी पूँजीवादी-साम्राज्‍यवादी व्‍यवस्‍था के ख़ि‍लाफ है। भगतसिंह ने उसी दौर में ‘इंक़लाब ज़ि‍न्‍दाबाद और साम्राज्‍यवाद मुर्दाबाद’ का नारा दिया था। पूँजीवाद और साम्राज्‍यवाद को खतम किये बिना सच्‍चे अर्थों में एक शोषण-विहीन समतामूलक समाज की स्‍थापना की तरफ नहीं बढ़ा जा सकता है।

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